Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)

Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)
Prem Kahaniya...

Sunday 8 February 2015

तेरी मेरी कहानी


“सुमन जल्दी चल, लेट हो जायेंगे और अगर बस छुट गयी तो हो गया बंटाधार. दो घंटे बाद अगली बस है.”,दीप अपना बैग उठता हुआ बोला.
“चलती हूँ बाबा. मम्मी ने जो ज्वेलरी बोली थी वो तुम्हारे बैग में है ध्यान रखना. जैसे रुमाल भूलते हो वैसे ही उसे भी मत भूल जाना. वरना मम्मी मेरी जान निकल लेंगी.”,सुमन भी अपने हिस्से का बैग उठाती हुई बोली.
वो दोनों अपने बुआ के घर शादी में जा रहे थे जहाँ उनकी मम्मी पहले ही जा चुकी थीं. आज मेहंदी की रस्म थी इसलिए उन्हें सुबह 10 बजे तक पहुंचना था क्योंकि ज्वेलरी घर पर थी और मम्मी वहां; सो कई फ़ोन आ चुके थे. बगल के बस स्टॉप पर दोनों भाई-बहन पहुंचे और वहां से बस लिया और दो-तीन घंटे की यात्रा के बाद बनारस पहुँच गये. गनीमत था कि मम्मी दुल्हन के पास व्यस्त थीं तो वो बच गये वरना देर से पहुँचने का नाश्ता तो ज़रूर मिलता. आम घरों की तरह उन दोनों की सुध लेने के लिए कोई ख़ाली नहीं था. वो जिन्हें पहचानते थे उनको नमस्कार किया और अहाते में अनजान की तरह बैठ गये. जब बुआ आयीं तो उनके कहने पर किसी अनन्या नाम की लड़की ने थोड़ी सी चहलकदमी दिखाई. कोई सत्रह-अट्ठारह साल की लड़की, लाल रंग का कामदार लहंगा पहने, कांच की चूड़ियों वाले हाथों में एक ट्रे में मुरब्बा और दो गिलास पानी लेकर आई. कोहनी तक लगी मेहंदी साफ़ दिख रही थी; मानो दुल्हन कोई और ना यही हो. दीप की ज़ोर की लगी दो-तीन घंटे की प्यास गुम हो गयी थी. वो तो बस गोरे से मुखड़े पर गुलाबी रुखसारों को देखने में मगन था. ऊपर से चमकीले रंग की बिंदी, ऐसा लग रहा था चाँद ने आज लिंग-परिवर्तन कर दुल्हन की तरह ख़ुद को संवार लिया हो.
“आप इंदु मामी की बेटी हैं ना?” ,अनन्या ने सुमन से पूछा, “और ये आपके भैया हैं, राईट?’’
सुमन ने हामी में सर हिलाया और पूछा, “आपका नाम अनन्या हैं ना, बड़ी बुआ की बेटी?”
तीनों का आपस में परिचय हो गया लेकिन दीप कभी नीचे, कभी अनन्या के चेहरे और कभी उसके मेहंदी पर टकटकी लगाये हुए थे. उसका ध्यान तब टूटा जब सुमन ने एक मुरब्बा अपने पेट के हवाले किया और उसे भी ऐसा करने के लिए धीरे से चुटकी काटी क्योंकि वह अपने भैया की हालत भांप गयी थी. दीप झेंप सा गया. अनन्या उनके साथ बात-चीत में मशगुल हो गयी. उनका आपस में परिचय हुआ, मालूम चला कि अनन्या सुमन की बुआ की जेठानी की लड़की है. दीप के लिए अच्छा था कि उसे इस चाँद को अच्छे से देखने का मौक़ा मिल गया था. धीरे-धीरे बातचीत में दीप भी शामिल हो गया और उसका सारा फोकस अभी अनन्या पर था. वैसे स्वभाव से वह दिलफेंक (फ्लर्टी) नहीं था लेकिन सामने चीज़ ही ऐसी थी दिल कैसे नहीं मचलता. ऊपर से वह अपनी ज़िन्दगी में अकेला था. ग्रेजुएशन के फर्स्ट इयर में था मगर तनहा, वो इसलिए क्योंकि उसे आजकल के लड़कों की तरह आज तू, तो कल कोई और, परसों कोई और वाला क़िस्सा पसंद नहीं था. वो फ़िल्मों के जैसे, प्यार किया तो उसे मुक़ाम तक पहुँचाना है और एक-दुसरे के लिए जीना मरना है, ऐसे ख़यालात का था. बहरहाल था तो लड़का ही, सो हर खुबसूरत लड़की को देखकर उसका दिल भी धड़क ही जाता था.
                                         इसी बीच, मम्मी आ गयीं. दोनों से रास्ते का हाल-चाल पूछा और सुमन को अपने साथ ज्वेलरी निकाल कर देने के लिए बुला ले गयीं, उन्होंने अनन्या को भी दुल्हन के कमरे में किसी काम के लिए जाने को बोला लेकिन वो ख़ासकर दीप से बात करने के चक्कर में वहीं सामने डटी रही. अब कुछ ऐसा लगने लगा कि यह खिंचाव एक तरफ़ा नहीं है. यह चाँद सा चेहरा भी अपना दीदार करने वाले की तलाश में था और वो मिल गया सा लग रहा था.
“आप अभी ग्रेजुएशन कर रहे हैं. कौन से सब्जेक्ट से?”
“जी, मैथ्स से बीएससी कर रहा हूँ. और आप?”
“अभी बारहवीं में हूँ.”
“तो आगे की प्लानिंग क्या है? क्या बनना चाहती हैं?”
“मम्मी-पापा का मन है मेडिकल की तैयारी करुँगी.”
“आप फैशन डिजाइनिंग क्यों नहीं कर लेती हैं? और आप सुन्दर भी हैं...आई मीन दिखने में.”,दीप ने हिम्मत करके अनन्या की तारीफ़ तो कर दी लेकिन अंतिम में सकपका गया.
“क्यों, ऐसे अच्छी नहीं हूँ, बस दिखने में सुन्दर हूँ.”,अनन्या ने अपने शर्म से लाल चेहरे के ऊपर बनावटी हंसी के साथ बड़ी-बड़ी आँखों से शरारत करते हुए पूछा.
अब शर्माने की बारी दीप की थी. “नहीं मेरा मतलब ये है कि आप अच्छी हैं दिखने में भी और बात करने में भी. वैसे आपका लहँगा प्यारा है. ब्यूटीफुल!”,थोडा सा साहस दीप ने और दिखाया.
“और पहनने वाली?”,अनन्या का बस चले तो वो दीप को खोल के रख देती.
“जी...वो भी प्यारी हैं, बहुत प्यारी हैं.”,इतना बोलने के बाद दीप में और हिम्मत बाक़ी ना थी. वह ट्रे में रखे गिलास को गोल-गोल मेज पर ही घुमाने लगा जिससे उसकी थोड़ी सी घबराहट दूर हो जाये. क्योंकि असलियत में वह दोस्तों में तो शेर मगर लड़कियों के सामने फट्टू था.
“जी वैरी-वैरी थैंक यू, फिर मिलते हैं. बाई द वे यह आपकी लाल शर्ट बड़ी जंच रही है. कहीं ऐसा तो नहीं कि आप ने जानकर मेरी मैचिंग पहनी है. लाल शर्ट - लाल लहँगा...हें?”,अनन्या ट्रे में दीप के हाथ से गिलास ले कर रखती हुई बोली. वो तो वहाँ से चली गयी मगर हमारे दीप मियां के मुंह से आह निकल गयी.
*****
दोपहर के समय घर के लोग और मेहमान खाना खाने लगे. घर की कुछ औरतें सबको खाना खिलाने में लगी थीं. दीप अभी अपने हमउम्र लड़कों से बातें कर रहा था लेकिन उसकी नज़रें बार-बार लाल रंग के किसी चीज़ को देख कर बेचैन हो जाती थीं. मतलब कि वो अनन्या को तलाश रहीं थीं.
और वो तलाश पूरी हुई. अनन्या सुमन के साथ आई थी. “आप चलो, खाना खा लो. या एक काम करें...यहीं ले आते हैं.” इतना कहती हुई अनन्या सुमन के साथ खाना लाने चली गयी.
“सुमन, थोडा सा लाना. अभी खाने का मन नहीं है.”
“थाली भर के लायेंगे. देखें क्यों मन नहीं है खाने का.”, अनन्या ने टोका.
कुछ देर बाद अनन्या खाना लेकर आई और दीप के सामने रखकर बैठ गयी. वह दो प्लेट में खाना लायी थी; एक दीप के लिए और एक वो अपने और सुमन के लिए. दीप ने सुमन के बारे में पूछा तो अनन्या ने बताया कि वह मामी के पास से आ रही है और जब तक नहीं आती तब तक खाने के साथ पानी की चाहत मत रखना. दीप मुस्कुराते हुए खाना खाने लगा. तभी उसने जब देखा कि अनन्या तो खा ही नहीं रही है, तो उसने उसे कहते हुए छेड़ा, “क्यों, किस बात का इंतज़ार कर रही हो, मैं खाने को पूछूँगा, तुम भी ये चाहत मत रखना.”
“अच्छा, तो ये बात है! तो मैं चाहत क्यों रखूँ? लो खा ही लेती हूँ.” ,अनन्या दीप के थाली में ही खाने लगी. पूड़ी, आलू दम की सब्ज़ी और साथ में हलवा; खाना लज़ीज़ था और उसपर एक ख़ूबसूरत लड़की का साथ में खाना, सोने पर सुहागा होने वाली बात थी. यह कमरा अनन्या और उसकी बड़ी दीदी का था जिनकी शादी हो चुकी थी. सो अब उसमें उनकी शादी से पहले की तस्वीरें ही शेष थीं और बाक़ी सामानों पर अनन्या का कब्ज़ा था. सच है, लड़की अपने एक जीवन में दो ज़िन्दगी जीती है; एक अपने माँ के घर और एक जहाँ वो किसी की माँ बनती है.
“लोग कितने सेल्फिश होते हैं कि ख़ुद ही खाते हैं और दूसरों की तरफ देखते भी नहीं हैं!” ,दीप ने अनन्या को तिरछे देखते हुए बोला.
अनन्या समझ गयी थी दीप का इशारा किस ओर था, वह जैसे ही पूड़ी का एक टुकड़ा तोड़ कर सब्ज़ी में डुबाने को हुई कि पीछे से हल्की सी आहट सुनाई दी.
“भई, ये तो ग़लत है, आप लोग यहाँ खाए जा रहे हो और मुझे पूछा भी नहीं.” ,सुमन पानी लेकर आई थी.
“अरे नहीं सुमन, अनन्या जी तो तेरा वेट कर ही रही थीं. मुझे तो भूख लगी थी सो मैं इंतज़ार नहीं कर सकता था.” ,दीप ने अनन्या का बचाव किया.
“अच्छा वेट कर रही थीं, इसलिए मुँह चल रहा है और अगली पूड़ी वेटिंग में है.” ,सुमन ने भईया को घूरा.
दीप में अनन्या के पक्ष में बोलने का अब और साहस न हुआ, सोचा लड़कियां आपस में निपट ले तो बेहतर है. अनन्या अब अपने थाली में खाने लगी; तभी सुमन ने टोका, “कोई नहीं, उसमें भी खा लोगी तो कोई दिक्कत नहीं है, चिंता मत करो मैं पूड़ी और सब्ज़ी और ला दूंगी.”
दोनों की आँखों को शर्म से गड़ा देने के लिए इतना काफ़ी था. दोनों के हाथ रुक गए.
“अरे भाई, खाओ. शरमा तो ऐसे रहे हो जैसे पहले खा ही नहीं रहे थे. चलो मैं भी इसी में खाती हूँ.”
दीप मन ही मन सुमन पर कुढ़ भी रहा था कि बहुत बोलने लगी है, चल घर तेरी ख़बर लेता हूँ. लेकिन भविष्य से पहले जो वर्तमान में था उसपर फोकस करना दीप ने ज़्यादा बेहतर समझा.
दिन ढला, रात हुई और फिर शादी के चहल पहल में एक दिन के क़रीब चौदह खुबसूरत घंटे चुटकी में बीत गये. हम कई बार ख़ुशी के मौक़ों पर कुछ देर ठिठक कर सोचते हैं कि काश हम इस सीन को रिमोट दबा कर जीवन भर के लिए पॉज़ (रोक) कर सकते, लेकिन फिर जब दुःख के दिन याद आते हैं तो ध्यान आता है कि अगर वो गुज़रता चला गया तो इसे भी हम कैसे रोक सकते हैं.
*****
सुबह से ही घर में नए मेहमानों का आना लगा था. कई संजे- संवरे आ रहे थे तो कोई अपने साथ बड़ा सा सामान का बैग या सूटकेस लेकर पहुँच रहा था. घर पर ही शादी होने वाली थी सो फूल वालों और मंडप तथा टेंट वालों को सांस लेने की फुरसत नहीं थी. दीप के बुआ की लड़की की शादी थी सो उस अन्दर से बाहर और बाहर से अन्दर की ड्यूटी लगी थी जो कि उसे चाहिए भी थी. वैसे पिछले दिन वो मेहमान बना बैठा था आज मेज़बान बनने की बारी थी. हाँ, कोई सामान बाहर रसोइये को घटा, और इंतज़ामात में कोई कसर है तो उसके लिए दीप का दौड़ कर बाहर से अन्दर जाना अथवा अन्दर किसी को बाज़ार से कुछ ज़रुरत पड़ी तो उसके लिए मोटरसाइकिल दौड़ा कर ख़रीद लाना, आज वह कुछ ज़्यादा ही मेहनती हो गया था अमूमन आम दिनों में सब्ज़ी भी लाने के लिए उसकी मम्मी चिरौरी करती फिरती थीं. अच्छा था, अगर यह धुन ऐसे ही चढ़ी रही तो भविष्य में उसकी माँ को सुकून मिलने वाला था. इन सारे चहलकदमियों के दरम्यान अनन्या का उसे एक नज़र देख लेने या इसे अनन्या के तरफ मुस्कुरा देने की फ़ुर्सत ज़रूर मिल जा रही थी. घड़ी पर अगर नज़र पड़ती रहे तो उसकी रफ़्तार धीमी रहती है लेकिन अगर इन्सान उसके तरफ़ ध्यान का अवसर ही ना पा पाए तो वह बहुत जल्दी अपने चक्कर पूरे करती है. शाम के चार बज गये, बारात आने में बमुश्किल एक-सवा घंटे की देरी थी. तभी एक गाड़ी आकर रुकी. दीप के कानों में आवाज़ पड़ी कि बेटा गाड़ी में एक कार्टन में कांच का सामान है उसे संभाल कर रखवा दो वरना वो टूट जायेगा.
दीप जैसे ही गाड़ी के पास गया तो कुछ लोग उतरे, शायद चार-पांच होंगे. एक पैंतालिस की उम्र के फॉर्मल कपड़े पहने ऑफिसर टाइप अंकल और साथ में आंटी, उनके साथ एक आठ-दस साल का लड़का और उसके पीछे, जीन्स और ऊपर टॉप पहने एक शहरी लड़की. दीप की आँखे उसके टॉप पर लिखे लाइन पर पड़ीं, ‘गर्ल्स आर ब्यूटीफुल बाई बर्थ, एंड आई ऍम बाई हार्ट ऐज वेल!!’
“ओहो! क्या कॉन्फिडेंस है, चेहरे से ख़ूबसूरत, और दिल से भी.” ,दीप ने अपने मन में कहा. उसने टेंट वाले एक लड़के की मदद से वो कार्टन वहां से घर के उस कमरे में रखवाया जहाँ विदाई के समय दिए जाने वाले सारे सामान रखे थे, दरअसल उसमें ताजमहल का एक बड़ा सा नमूना शीशे में बनाया गया था. काफ़ी सुन्दर था क्योंकि रखते समय उसने कार्टन को ऊपर से खोलकर देख लिया.
‘वैसे सुन्दर होने के साथ सामान भी सुन्दर ले आई है. पता करते हैं ये है कौन?’ ,दीप के मन अब ये एक नया मिशन बन गया.
सभी चारों लोग अन्दर गये तो मानो गुम ही हो गये उसके बाद से क़रीब दो घंटे तक दीप ने उन्हें नहीं देखा. हाँ, अनन्या से दीदार तो हर कुछ पल में होता था कि क्योंकि जब भी किसी काम से दीप की आवाज़ उस भीड़ भरे घर में गूंजती, एक कोमल सी खुबसूरत काया ज़रूर प्रकट हो जाती थी. इस आपाधापी के बीच में कई बार दो चार लफ्ज़ गुफ्तगू भी हो जाती. हाँ, इस दरमयान दीप की नज़रों ने उस ब्यूटीफुल हार्ट वाली टॉप पहनी लड़की को ज़रूर ढूंढने की कोशिश की.
बारात दरवाज़े पर आ गयी. गाजे-बाजे की शोर से माहौल में गर्मी सी बढ़ गयी. मई का महिना और था पसीने ने भी परेशान करना शुरू कर दिया. दीप लगातार मेहनत के बाद से थक कर कुछ देर स्टैंड वाले पंखे के सामने खड़ा होकर हवा खा रहा था और कुछ गाना गुनगुना रहा था. पीछे कुछ और भी लोग इस तरीक़े से खड़े होकर हवा लेने की कोशिश कर रहे थे जो दीप के बगल से आ रही थी. दीप गाने में व्यस्त था और हवा खाने में, उसे और किसी की सुध भी ना थी.
“एक्सक्यूज़ मी, क्या आप थोड़ा साइड हो जायेंगे, थोड़ी सी हवा हमारे तरफ भी आ जाएगी.”
पीछे से आवाज़ पर पलट कर दीप ने देखा. एक परी सी लड़की, गहनों से लदी हुई, हलकी गुलाबी पलकें, आँखों में काजल, लम्बी नाक जो भौंह के बीच से शुरू होकर नीचे आकर गोल थीं, होठों पर हलकी सी ग्लॉस जो आजकल लिपस्टिक के जगह लड़कियां इस्तेमाल करती हैं, फिर दीप से क़रीब तीन इंच कम हरे रंग का कामदार लहंगा पहने दुबला सा शरीर; दीप की आँखें खुलीं और जुबान बंद हो गयी थी. वो गाना भूल गया था. आस-पास और भी लोग हैं लेकिन उसे इसकी सुध नहीं है. दीप का आजकल बड़ा अच्छा बीत रहा था, कल एक ख़ूबसूरत लड़की से मुलाकात हुई थी और आज परी ही सामने आ गयी थी.
“सॉरी, बट मुझे नहीं लगता की आप ऊँचा सुनते हैं?” ,दुबारा उसने बोला. उसकी बात में व्यंग्य था लेकिन कडवी दवा हम चीनी के साथ बड़ी आसानी से खा जाते हैं.
“ओह! माफ़ कीजिये.” ,दीप एक साइड को हो गया. वह बगल की एक कुर्सी पर बैठ गया. उसकी धड़कने काफ़ी तेज़ थीं.
“पाखी! तुम यहाँ हो, जाओ बुआ ढूंढ रहीं हैं, पूछ रही हैं फाउंडेशन किट किधर रखा है. एंड यहाँ हवा खाने की फुरसत नहीं है. तुम दिल्ली के नए फैशन जानती हो, तुम्हारी बहुत ज़रुरत है.” ,यह अनन्या थी, दौड़ते हुए आई थी और अचानक उसे देख कर हलकी सी चीख पड़ी थी. वह पाखी को लगभग खींचती हुई लौटी थी.
“बहुत बिज़ी लग रही हैं, थोड़ी देर हवा खा लीजिये, कुछ छूट नहीं जायेगा.” ,दीप अनन्या को देखकर बोल पड़ा.
“ओहो, तो जनाब यहाँ है और आपके पापा आपको बाहर पूछ रहे हैं, आप भी जाइये, मामी ने बुलाया है. कल दीदी चली जाएँगी फिर हवा खाइएगा, हम भी साथ देंगे.” ,अनन्या दीप को भी उठाती हुई बोली.
और इससे मिलिए, ये है मेरी बुआ की लड़की, पाखी. आप कह रहे थे न मुझे कि आप फैशन डिजाइनिंग में जाइये, ये है उसी में. अभी दिल्ली से पढाई कर रही है. मेरे बुआ-फूफा आज़मगढ़ में और ये रहती है दिल्ली में. भई, मैं तो मम्मी-पापा को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती.”...”और पाखी! ये हैं शालिनी दी के मामी के लड़के दीप. अभी सुमन से मिली थी न? उसी के भाई साब हैं.” ,अनन्या ने परिचय कराया.
“अब चलें? और हाँ, पाखी शालिनी दी के लिए काफ़ी ख़ूबसूरत सा गिफ्ट ले आई है. इसने अपने हाथों से बनाया है. मालूम है क्या है?...एक बड़ा सा ताजमहल! वाह, कितना ख़ूबसूरत है न वो! पाखी, मेरी शादी में भी ऐसे ही ख़ूबसूरत सा ताजमहल बनाएगी न? प्लीज़ ना.” ,सुमन बच्चों के जैसे शरारत करते हुए बोली.
“क्यों नहीं, तेरे लिए कोई और चीज़ बनाउंगी. ओके चल, वरना मम्मी गुस्सायेंगी. वैसे, नाईस तो मीट यू मि. दीप.” ,पाखी ने अपने शहरी तहज़ीब में बोलते हुए अपना हाथ आगे बढाया.
दीप फ़िल्म देख रहा था सो उसका हर एक सीन एन्जॉय कर रहा था. जैसे फिल्म देखते समय ताली बजाने के लिए हाथ अपने आप उठ जाते हैं वैसे ही पाखी से हाथ मिलाने के लिए भी अपने आप उठ गये. नाज़ुक से हाथ और ऊपर से उसमें पतली सी रेखा में रची मेहंदी, दीप का ध्यान उसने भी खींचा. बहरहाल, दो दिनों से मेहंदी दीप पर कुछ ज़्यादा ही असर कर रही थी.
“अच्छा तो मैडम जी ने बनाया है. दिल्ली से आईं हैं और फैशन डिजाइनिंग करती हैं...कुछ भी हो, जितनी ख़ूबसूरत है उतनी ख़ूबसूरत आर्ट भी बनायी है लेकिन बातों से तेज़ है. चलो, देखते हैं आगे क्या होता है.” ,दीप ख़ुद से फुसफुसाता हुआ बोला.
दुल्हे की घोड़ी दरवाज़े पर आई, घर की औरतें और लड़कियां दुल्हे की आरती उतारने के लिए पहुंची. सभी अतिथियों की आवभगत में लगे थे. दीप को भी सबका साथ देना पड़ा. हाँ मगर, अब उसकी निगाहों में दो चेहरे थे. एक जो उसे काफ़ी ख़ूबसूरत लगता था और एक वो जिसकी खूबसूरती के बारे में सोच ही नहीं पाया था कि उसके लिए कौन सी उपमा लगाये. आरती हो रही थी. पाखी सबसे आगे की कतार में खड़ी थी, उसके साथ अनन्या भी थी. दीप बार-बार उसकी तरफ देख ले रहा था. वह बस मुआयने में तैनात किया गया था कि व्यवस्था कैसी चल रही है, सो उसे इसके लिए भरपूर मौक़ा मिल रहा था. जब स्वागत के रस्म हो गये, उसके कुछ देर बाद ही दीप का अनन्या और पाखी से सामना हो गया.
“बड़ा घूर रहे थे आप, लड़की नहीं देखी क्या?” ,अनन्या आते ही बोली.
“अरे नहीं, मैं क्यों किसी को घूरने जाऊं.” ,दीप ने अपना बचाव किया.
“ध्यान रखिये, ये दिल्ली की लड़की है, हाथ नहीं आएगी. मैं बनारस की हूँ, मेरे पास भी दाल नहीं गलेगी, हाँ एक बार मौक़ा ज़रूर दे सकती हूँ.” ,पाखी के तरफ इशारा करके अनन्या हंसती हुई बोली. इस बात पर दोनों लड़कियां हंसने लगी और दीप को आँखें नीची कर लेनी पड़ीं. दोनों चले गये लेकिन अनन्या की वो बात उसके ध्यान में घुस गयी कि मैं एक मौक़ा दे सकती हूँ. उसके बुआ के लड़के की ज़िद पर वो अपने होने वाले जीजा जी के पास चला गया लेकिन दिमाग़ का फोकस इन्हीं बातों पर था.
रात को क़रीब 11.30 बजे इन्हें खाना खाने का मौक़ा मिला, बूफे सिस्टम था, मगर गाँव से बारात आई थी सो खाने के लिए टेबल भी लगवा दिया गया था. वो भी जल्दी-जल्दी में मंगवा के लगवाया गया क्योंकि एक दादा जी ने पुरे पंडाल में हडकंप मचा दिया. उनका कहना था कि ये कौन सा तरीका है खिलाने का कि भिखारियों के जैसे प्लेट लेकर टेबल-टेबल घूमते रहो और सामने वाला निकाल कर उसमे परोसेगा. हम तो साला सौ एकड़ के एकलौते मालिक हैं, पचास भिखारियों का रोज़ घर बैठा कर खाना खिलाते हैं और ख़ुद भिखारी बन कर खायेंगे. बेटी वालों को तहज़ीब नहीं है कि बेटों वालों की कैसे इज्ज़त करनी चाहिए.
              अनन्या सुमन के साथ दीप के लिए भी खाना लेकर आई. वो तीनों एक टेबल पर बैठ कर खाना खाने लगे. तभी पाखी अपने फ़ोन में कुछ करते हुए आई और अनन्या से पूछा, “तुमलोगों ने अब तक खाना नहीं खाया? और ये बैठ कर क्यों खा रहे हो? तुम भी उन दादा जी जैसे गंवार हो? बी मॉडर्न डिअर!”
“पाखी, आओ तुम भी खा लो. कहाँ ग़ायब थी तब से?” ,अनन्या अपना प्लेट लेकर खड़ा होती हुई बोली. दीप अभी भी बैठा था.
“अरे नहीं, नो स्पेस इन स्टमक फॉर मोर. सॉरी.” ,पाखी अपना पेट पकडती हुई बोली.
“अरे दी, खा लीजिये न?” ,सुमन ने भी चिरौरी की.
“ओके, गिन कर दो चम्मच खाऊँगी, थोड़ा सा ग्रेवी ले आओ, मटर भी ले आना.” ,पाखी अनन्या को मटर पनीर ले आने के लिए बोला, दीप भी उस प्लेट में शेयर कर रहा था. जब सब खड़े हो गये और यह बैठा रहा था तो ये दीप को अच्छा नहीं लगा. जब अनन्या प्लेट में और पुलाव लेकर आई तो उसने मना कर दिया.
“अब नहीं, मैं नहीं खाऊंगा, तुम लोग खाओ. मेरा पेट भर चुका है. आज दिन भर कुछ न कुछ खाता रहा हूँ.” ,दीप टिश्यू से अपना हाथ पोंछता हुआ बोला. इतना कहकर वो पानी पीने चला गया. ऐसे कहकर दीप का जाना पाखी को अच्छा नहीं लगा. वो शहर की बहुत तेज़ और एटीट्युड वाली लड़की थी, उसका ये करना उसे ऐसा लगा मानो दीप ने उसकी तौहीन कर दी हो. हालाँकि सबका उठ जाना और उसका वैसे ही बैठे रहना, दीप को भी बुरा लगा था. बात आई और गई लेकिन दोनों तरफ हल्का सा मैल रह गया. शादी की रात थी. उसके बाद दीप और पाखी का सामना ना के बराबर हुआ क्योंकि वह उससे बचने की कोशिश करता रहा.
अगले दिन शाम को दीप को घर लौटना था क्योंकि उसके दो दिन बाद से उसके बीएससी पार्ट वन की परीक्षा शुरू होने वाली थी. दोपहर में सबने बनारस के बहुप्रसिद्ध बी.एच.यू. में विश्वनाथ मंदिर घूमने कि योजना बनाई, इस योजना में जाने के लिए तैयार हुए, दीप, सुमन, अनन्या, उसकी अपनी दीदी, पाखी, उसका छोटा भाई और बगल का एक और लड़का. ये सब मंदिर में घुमने के बाद पार्क में बैठे और वहां शुरू हुआ बातचीत का दौर. वहां मालूम चला कि किसको क्या पसंद है और क्या नापसंद है? कौन कहाँ घूमा है और कहाँ घूमना चाहता है? बतंगड़ के बीच अन्त्याक्षरी भी हुई, आपस में एक दुसरे से सबकी नोंक-झोंक भी हुई लेकिन दीप और पाखी की न नज़रें ठीक से मिली न बातें. अप्रत्यक्ष रूप से पाखी दीप को इग्नोर करती रही और दीप उसे. ये बात अनन्या के भी समझ में आई लेकिन उसने इसपर कुछ ख़ास ग़ौर न किया या शायद बाद में पूछने के मक़सद से चुप रही.
*****
शाम की पैसेंजर ट्रेन से दीप घर वापस लौट आया. लौटकर वह अपने साथ बहुत कुछ लाया था. ढेरों मीठी यादें, गुदगुदाते पल और साथ में अनन्या का नंबर. बस एक चीज़ का उसे अफ़सोस था कि उसने बेमतलब में एक ख़ूबसूरत लड़की का दिल दुखा दिया था, हालाँकि उसे इस बात पर कभी ख़ुशी भी होती थी की अच्छा हुआ उसका घमंड तो कम किया. घर पहुँचते ही अनन्या ने रात को क़रीब नौ बजे फ़ोन किया और ये बताया कि वो दीप को मिस कर रही है. कुछ देर की हुई बात में दीप को महसूस हुआ कि अनन्या उसके तरफ कुछ ज़्यादा ही खिंच गयी है जबकि दीप इसपर इतना सोचना नहीं चाहता था. आकर्षण की शुरुआत थी सो वो भी लय में था. उसी बातचीत में मालूम चला कि पाखी दीप के बारे में अच्छा नहीं सोचती है. क्योंकि उसे शादी के दिन खाने के बीच से उठ कर चले जाना और दुसरे दिन अन्त्याक्षरी के बीच में पॉइंट्स के लेकर झगड़ पड़ना बुरा लगा है. दीप को अपने किये पर पछतावा हुआ.
दो दिन बाद सुमन भी मम्मी के साथ घर आ गयी. दीप ने सबसे पहले पाखी के बारे में अप्रत्यक्ष रूप से पूछा. उसे सुमन से भी मालूम चला कि पाखी को उसका बुरा बर्ताव रास नहीं आया. उसने दीप को उसकी बहन के सामने ही अकडू बोल दिया. अब दीप को लगने लगा था कि उसने अनजाने में एक छोटी सी चूक कर दी जिसका बड़ा परिणाम ये निकला कि उसने एक परी को नाराज़ कर दिया. उसने मन ही मन उससे माफ़ी मांगने का निश्चय कर लिया. उस दिन रात को जब अनन्या का फ़ोन आया तो उसने पाखी से माफ़ी मांगने के लिए उसका नंबर ले लिया. अगले दिन उसने शाम को कॉल किया.
“हेल्लो, आप पाखी बोल रहीं हैं, मैं दीप, आई एम सॉरी, मेरा मतलब आपको चोट पहुँचाना नहीं था. उस समय आप सब उठ कर खाना खाने लग गये थे और मैं अकेला बैठा रह गया था इसलिए मुझे बुरा लगा और मैं वहां से चला गया. अगले दिन आप पर थोडा गुस्सा था इसलिए पॉइंट्स के लिए लड़ बैठा.” ,उसने एक साँस में अपनी सफ़ाई दे दी.
“कोई नहीं, इट्स नॉट अ बिग डील. भूल जाओ. तुम्हें बुरा लगा सो तुम उठ कर चले गये. मुझे बुरा लगा सो मैंने अनन्या को बोल दिया कि तुममें काफ़ी अकड़ है. हिसाब बराबर. फॉरगेट इट. और सब ठीक है?” ,पाखी ने हलके में बोला.
“सीरियसली, आई ऍम सॉरी.” ,दीप इस बार माफ़ी मांगने के लहज़े में बोला.
“अरे, कोई बात नहीं यार. भूल जाओ. बाय.” ,पाखी ने इतना कहकर फ़ोन काट दिया.
उसका फ़ोन काटना इस बात का गवाह था कि उसके ईगो को चोट पहुँची है और वो इतनी आसानी से इस बात के लिए दीप को माफ़ नहीं करेगी. दीप को हिम्मत न हुई कि वो उसे दुबारा फ़ोन करे. कुछ देर बाद ही अनन्या का फ़ोन आ गया और वो फिर उससे बात करने में बिजी हो गया. अनन्या और उसकी बातचीत दस मिनट से शुरू होते-होते अब आधे-आधे घंटे तक होने लगी थी.
दो दिनों बाद अनन्या के कहने पर फिर दीप ने पाखी को फ़ोन लगाया. इस बार पाखी ने फ़ोन उठाया और उससे उसका हाल-चाल पूछा. दीप फिर माफ़ी मांगने के लगा. क्योंकि उसे सुकून चाहिए था कि अनन्या ने उसे माफ़ कर दिया है.
“ओके बाबा, माफ़ कर दिया. अब टेंशन मत लो और पेपर दो. एंड हाँ, तुम्हारे और अनन्या के बीच में तुम-तुम शुरू हुआ कि बस आप-आप ही चल रहा है?” ,पाखी अपने हमेशा के लहज़े में पूछती हुई बोली. उसका संकेत कहीं और था. क्योंकि आमतौर पर हर प्रेम कहानियों की शुरुआत आप जैसे औपचारिक शब्दों से होती है और जैसे-जैसे ही उसमें रवानगी आती है वह आप से तुम में बदल जाता है. हमारे भारतीय सभ्यता में और विशेषकर हिंदी भाषी इलाक़ों में ऐसा माना जाता हैं कि जहाँ नजदीकियां हैं वहां शब्दों का बहुत ध्यान मायने नहीं रखता.
“अरे नहीं, वो मेरी बुआ की जेठानी की लड़की है, मैं उससे ऐसा कुछ नहीं कर सकता, वो मेरी बहन हुई. और रही बात उससे बातचीत करने की तो, हमउम्र हैं इसलिए एक दोस्त के नाते बात कर लेते हैं.” ,दीप ने बोला हालाँकि उसे भी इस बात का शक होने लगा था कि अनन्या उसके बारे में कुछ सोचने लगी है.
“लेकिन, वो तुम्हारे बारे में कुछ अलग ही सोचती है. हालाँकि ये ग़लत है लेकिन मुझे लगता है कि तुम दोनों को इस बार बात करनी चाहिए. ओके, टॉक टू यू लेटर. बाय.” ,इतना कहकर पाखी ने फ़ोन कट दिया.
दीप को पाखी का आज का रवैया अच्छा लगा, लेकिन उसे बस अनन्या को समझाना था और अब उसने सोच लिया था कि वह उसे समझा कर रहेगा. उसने उसी समय अनन्या को फ़ोन किया और उससे सीधे-सीधे उसके दिल की बात पूछ ली. अनन्या ने भी ज़्यादा आनाकानी न करते हुए उसे सीधे-सीधे बता दिया कि वह उसे पसंद करने लगी है. दीप यह जानता था मगर उसके मुंह से सीधे शब्दों में सुन कर वो अवाक् सा रह गया.
“देखिये अनन्या, आप मेरे बुआ की जेठानी की लड़की हैं यानि मेरी बहन और हमारे बीच में ऐसा कुछ नहीं हो सकता. हम भाई-बहन हैं और उससे अधिक एक दोस्त; इसके आगे अगर आपने कुछ सोचा तो यह बहुत बड़ा पाप होगा. और मैं कोई पाप नहीं करना चाहता.” ,दीप ने भी साफ़ लहज़े में कहा.
“कैसी बात करते हैं? हम पहले दोस्त हैं और कम से कम दोस्ती तो रह ही सकती है, बाद में उससे आगे भी कुछ हो जायेगा.” ,अनन्या उसे मनाने पर लगी थी.
“ठीक है तो आज के बाद, हम दोस्त भी नहीं हैं और मुझे फ़ोन मत करना क्योंकि मैं आपसे बात नहीं करना चाहता. गुड बाय.” ,इतना कहकर दीप ने फ़ोन काट दिया. हालाँकि उसे ऐसा करके बुरा लगा लेकिन उसे सुकून था कि एक बहुत बड़ा पाप करने से ख़ुद को रोक लिया.
इसके बाद काफ़ी दिनों तक अनन्या और दीप के बीच मन-मन्नौवल चलती रही. अंत में वह कभी-कभी बात करने के लिए तैयार हो गया लेकिन उसने अनन्या के मन से प्यार का भूत हटाने की चेतावनी दे रखी थी. इस दरमयान उसने पाखी को भी संपर्क करने की कोशिश की और उससे कई दफ़ा बातें भी हुईं. दीप की ज़िन्दगी का यह दौर उथल-पुथल से भरा था. एक को उसने मन कर दिया था और दुसरे के वह क़रीब जाने की जुगत में था, दरअसल उसे पाखी पहले दिन से ही अच्छी लगने लगी थी लेकिन इस आकर्षण की पुख्ता नींव पड़ी तब, जब दीप ने बुआ की लड़की की शादी के विडियो में पाखी को दुबारा देखा. उसकी ख्यालों में, वही सुरमई आँखें और तीखी नज़रें और किसी भी बात पर उनका इतनी तेज़ी से चलना जैसे की पुराने ज़माने में तलवारबाज़ों की तलवारें चल रही हों जिनकी केवल चलने की सांय सी आवाज़ होती है और लक्ष्य की छाती छलनी हो जाती है, सबकी यादें ताज़ा हो गयीं. इधर पाखी भी दीप से बात करने में अच्छा महसूस करती थी. हफ्ते में कभी एक बार बात करने के अन्तराल में कमी आई और अब बातें दिन में कम से कम एक बार तो हो ही जाती थीं.
                      एक दिन दीप को पाखी ने फ़ोन किया. यह उसके लिए आश्चर्यजनक था क्योंकि ज़्यादातर दीप ही उसे कॉल लगाने की कोशिश करता लेकिन आज शाम को पांच बजे क़रीब पाखी ने फ़ोन किया. उसने बताया कि अनन्या बहुत परेशान है आज शायद उसे किसी कारण घर पर बहुत डांट मिली है और उसने तुम्हें फ़ोन किया तो तुमने भी डांट दिया. वो तुमसे कुछ सीरियस बात करना चाहती है. पाखी ने उसे ये भी सलाह दिया कि तुम्हें उसके प्यार को स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि तुम कोई पाप नहीं करोगे और कौन सी वो तुम्हारे अपने बुआ की लड़की है.
“पाखी, आप पागल हो क्या? मैं उसके साथ ऐसा कुछ नहीं करने वाला. वैसे शुरू में उसको लेकर थोडा सा अट्रैक्शन था लेकिन अब नहीं है.” ,दीप हलकी सी तेज़ आवाज़ में बोल पड़ा.
“आई नो, यू ऑल बॉयज़ आर सेम. पहले तो लड़की से बड़े प्यार से बात करते हो, उसके आगे पीछे घूमते हो, पट गयी तो बहुत बढ़िया और ना पटी तो उसका कैरेक्टर ही ढीला था. उससे सुन्दर दिखी तो उसका चक्कर शुरू. किसी को दिल से पसंद भी करते हो या यू ऑल आर लाइक डॉगी कि कभी इसके पीछे तो कभी उसके?” ,पाखी ने अपना दिल्ली वाला बोल्ड रूप दिखाया. वह उबल पड़ी थी.
“सॉरी पाखी, बट ऐसा नहीं है, और सारे लड़के एक जैसे नहीं होते. मेरा बस उसको लेकर अट्रैक्शन था. लेकिन आई लाइक यू!...रियली!!” ,दीप ने अपनी बात कहने में देर न लगाई क्योंकि वो नहीं चाहता था कि पाखी का और ग़ुस्सा निकले और उसके साथ-साथ पुरे लड़कों की बिरादरी पर बरसे. दीप को अनन्या से मालूम चला था कि पाखी लड़कों को एक दायरे तक ही अपने ज़िन्दगी में आने देना चाहती थी, वो नहीं चाहती थी कोई उसकी अपनी आज़ादी छीने.
“ओके, तो अब तुम्हारा अट्रैक्शन मेरे को लेकर है. कल मैं तुम्हारे लिए सीरियस हो गयी और उसके बाद मेरे से कोई अच्छी दिखी तो तुम उसके पीछे जाओगे, मुझे छोड़कर. स्टॉप इट दीप. गो एंड डू योर बिज़नेस...एंड डोंट ट्राई टू कॉल मी, गुड बाय!” इतना कहकर पाखी ने फ़ोन काट दिया.
दीप के पाँव तले ज़मीन खिसक गयी. उसका माथा सुन्न हो गया, कानों में आस-पास का काफ़ी आवाजें आ रहीं थीं लेकिन दीप उसका मतलब नहीं समझ पा रहा था क्योंकि जैसे शोर का कोई मतलब नहीं होता वैसे उनका भी कोई मतलब नहीं था. अन्दर सन्नाटा था, और ये तूफ़ान से पहले की शांति थी. अचानक फ़ोन की घंटी पर वो ख़ामोशी हलकी सी हटी, स्क्रीन पर देखा तो अनन्या का फ़ोन था. उसने फ़ोन काट दिया. और फिर उस ख़ामोशी ने फिर से ऐसे दीप को जकड़ा कि वो लगभग एक सप्ताह तक बेसुध सा रहा. ना खाने की फिक्र, ना अपना रोज़ का काम करने की चिंता, छुट्टियाँ थीं सो अपने कमरे में पड़ा छत के कोने में ताका करता था क्योंकि उस कोने में बारिश के पानी से सीलन के चलते पपड़ियाँ झड़ने को हो गयीं थीं. दीप अपनी हालत को कुछ उन पपड़ियों की स्थिति के नजदीक पाता. या सामने टेबल पर बिछे एक चादर पर बने दिल की आकृति में घुसे हज़ारों रेखाओं को निहारता रहता था क्योंकि उसके भी ह्रदय में भी ऐसे ही अनगिनत रेखाएं लिए तीर चुभे हुए उसे जान पड़ते. ऐसा तक़रीबन काफ़ी दिनों तक चला.
             एक दिन सुबह दस बजे के आसपास फ़ोन आया, यह दीप के घर के नंबर पर आया था जिसे उसकी मम्मी ने उठाया था और फिर वो फ़ोन सुमन ने ले लिया था और वो बात करने लगी. फ़ोन तो हमेशा ही आते थे, इससे दीप को क्या लेना देना था लेकिन इसबार उसको पूछा गया क्योंकि उसकी बहन यह कहते हुए कमरे में फ़ोन ले आई कि लो भईया बात करो. और यह कह कर फ़ोन थमा कर वह चली गयी. रविवार का दिन था और दीप का इस हालत में पड़े हुए एक महिना हो चला था. उसके घर वाले भी उसके परेशान होने की बात जान गये थे लेकिन कारण उनके समझ से बाहर था. अनन्या दीप के ज़िन्दगी से बहुत पहले जा चुकी थी लेकिन उसने अभी दीप के लिए एहसास जवान रखे थे.
“हेल्लो, दीप, प्लीज़ फ़ोन मत काटना, एक मिनट के लिए मेरी बात सुन लो. आई ऍम वैरी सॉरी.” ,यह पाखी थी.
“हाँ बोलिए, कुछ और सुनाना बाक़ी रह गया था क्या? जो एक महीने बाद याद आयी है?” ,दीप के मन में एक ग़ुस्सा था.
“आई एम रियली-रियली सॉरी, कान पकड़ कर सॉरी, उठ-बैठ के सॉरी बट प्लीज माफ़ कर दो. आई वॉज़ रौंग. आई लाइक यू टू.” ,पाखी को डर था कि कहीं दीप फोन ना काट दे. हालाँकि पुरे महीने के बीच उसने फ़ोन न लगाया था लेकिन उसे यह बात याद थी दीप में भी एक अपना एटीट्युड था. जब वह खाना खाने के लिए उठ जाने पर बुरा मान सकता था फिर इतनी बड़ी बात तो उसके लिए बहुत गंभीर मामला थी.

*****
“सॉरी शब्द जिसने बनाया, वो कितना महान है ना, उसको झुककर सलाम करना चाहिए, यह अंग्रेज़ी के पांच अक्षरों का शब्द कितने बड़े से बड़े से ज़ख़्म भर देता है, काफ़ी गहरी खाई भी पाट देता है और मीलों लम्बी दूरियां एक इसके बोलने से मिट जाती हैं. उस फ़ोन कॉल के बाद हमारे बीच नज़दीकी बढती गयी, शुरू के क़रीब डेढ़ साल लगे पाखी को अपने ज़ेहन से लड़कों के उस कमीने छवि को दिल से निकलने में और मेरे पर पूरा भरोसा करने में फिर मैंने उसे उसके जन्मदिन पर तोहफ़े के तौर पर ज़िन्दगी भर के लिए अपना प्यार देने का ऑफर दिया और उसने एक्सेप्ट कर लिया और देखिये संयोग कि उसका जन्मदिन प्यार के उत्सव के रूप में मनाये जाने वाले वैलेंटाइन सप्ताह में ही पड़ता है. आज वो कहती है कि दीप, चॉकलेट डे के दिन दिया गया प्यारे से तुम्हारे प्यार के चॉकलेट ने मेरी ज़िन्दगी में मिठास भर दी है. मैं ईश्वर से कुछ न मांगूंगी अगर ये मिठास पूरी ज़िन्दगी भर रही...”
“मैंने वादा किया था सो अब निभा रहा हूँ, और इसी महीने की चौदह तारीख़ को हम एक दुसरे के हो रहे हैं. आप आइयेगा ज़रूर. बहुत रिक्वेस्ट है आपसे.” ,दीप ने मुस्कुराते हुए कहा.
उनकी आँखों में एक अलग ही चमक है ये शायद वह ख़ुशी की है, जब हम कुछ ख़ुद से करते हैं और जीत जाते हैं, तो मिलती है. दीप मेरे से दिल्ली से बिहार जाने वाली ट्रेन में मिले हैं, मैं भी घर अपने चचेरे भैया की शादी में जा रहा हूँ. वो यहाँ अपने शादी के लिए चांदनी चौक से ख़ास शेरवानी लेने आये थे और कुछ पुराने अपने और पाखी के दोस्तों को निमंत्रण पत्र देने आये थे. संयोग था एक पत्र बच गया वो मेरे हिस्से आ गया. हा..हा..हा..ख़ुशी है कोई अपना प्यार पूरी ज़िन्दगी के लिए पा रहा है. मैं तो जाऊंगा इस ख़ुशी का गवाह बनने के लिए, आप भी आमंत्रित हैं...

                                                                 -    ©  अरुण तिवारी ‘प्रतीक’


                                                        
                       

1 comment:

  1. Best story written by you brother..love u for this..

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