Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)

Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)
Prem Kahaniya...

Thursday 30 January 2014

जब हम जवां होंगे...



“हाय, थक गया...ओफ्फ़ोह...उपर से ये इतनी गर्मी, अब भगवान् ही मालिक है. इस दिल्ली में रहना कितना मुश्किल है यार; बस का सफ़र-दिन भर की ड्यूटी-फिर बस का सफ़र. मैं तो उब गया हूँ इस लाइफ़ से...” ,हेमंत झल्लाता हुआ बोला. इतनी दूर चलने के बाद वह सीढियाँ चढ़ता हुआ चौथे फ्लोर पर पहुंचा था.
“अरे! धत तेरी की!! सुबह तो बर्तन भी धो कर नहीं गया था, वह भी धोने हैं, जूठन तो सूख गया होगा बर्तन में...खाना भी बनाना है. क्या बनाऊं?...चलो पहले कुछ देर सुस्ता लूं फिर सोचूंगा.” जैसे ही हेमंत ने ताला खोला उसे अचानक ध्यान आया की सुबह तो वह जल्दी में था, राशन के सामान की लिस्ट भी नहीं बना पाया था. सब्जी, आटा और सरसों तेल ख़त्म हो गया है, ख़रीद के लाना पड़ेगा. हेमंत पिछले साल ही एक किराये के कमरे में शिफ्ट हुआ था पहले वह हॉस्टल में रहता था लेकिन वहां खान-पान की ख़राब गुणवत्ता के चलते पापा के सुझाव पर अब वह अपने हाथ से बना कर खाने लगा था.
               फ़िलहाल, वह वैसे ही जूते पहने बस शर्ट को बदन से निकाल कर बगल में रखकर बिस्तर पर निढाल पड़ा था, शर्ट भी इसलिए निकाली थी क्योंकि परसों वही पहननी थी. उसने अपने बैग से मूंगफली का पैकेट निकाला और मूंगफली खाने लगा यह उसने आज ही लंच के टाइम में ख़रीदी थी जब मोहिका मैम के साथ मार्किट गया था. मोहिका मैम उसके ऑफिस में एच.आर.एम. हैं. दिखने में काफ़ी खुबसूरत हैं और कुंवारी भी. हेमंत को बड़ी प्यारी लगती हैं लेकिन दरअसल बॉस हैं इसलिए कुछ अधिक नहीं सोच पाता. लेकिन वह हेमंत को अच्छा और मेहनती एम्प्लोय समझती हैं और अब तो उनसे हेमंत की अच्छी ख़ासी पटने भी लगी है.
           हेमंत ने अपना लैपटॉप बैग से निकाला और उसे इन्टरनेट से कनेक्ट करता हुआ मूंगफली का स्वाद भी लेने लगा. दो दिन हो गए थे उसने फेसबुक लॉग इन नहीं किया था. क्योंकि उसे दो दिन तो समय ही नहीं मिला था. किसी नए कांसेप्ट पर प्रेजेंटेशन तैयार करने के चक्कर में वह रातों को ढंग से सो भी नहीं पाया था. फेसबुक के प्रोफाइल टूलबार पर 95 नोटिफिकेशन, 30 सन्देश और 5 फ्रेंड रिक्वेस्ट थे. हेमंत ने सबसे पहले फ्रेंड रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लिया. पांच में से एक रिक्वेस्ट एक लड़की का था. हेमंत ने उत्सुकतावश उस लड़की का प्रोफाइल खोला. उसका नाम एंजेल रश्मि और उस पर फोटो बार्बी डॉल का था. उसके बारे में बस इतना लिखा था कि वह डी.पी.एस. कानपुर से पढ़ी है और अभी आई.आई.एम. अहमदाबाद से एम.बी.ए. कर रही है. पिक्चर सेक्शन में क़रीब सौ से अधिक फोटो थे लेकिन एक में भी किसी लड़की का फोटो नहीं था जिससे हेमंत कुछ अनुमान लगा सके. हेमंत ने इस प्रोफाइल पर ज्यादा मत्था मारने की कोशिश नहीं की. हाँ, लेकिन एक बात हेमंत को उस लड़की के बारे में जानने के लिए उत्तेजित कर रही थी वह थी उस लड़की का नाम. आज कल फेसबुक पर ट्रेंड है, लोग अपने नाम के आगे पीछे उलजलूल से शब्द जोड़ते रहते हैं जैसे- अंकित कूल, रॉकिंग प्रियंका, राहुल रॉक्स, एंजेल नीरज वगैरह-वगैरह. बहरहाल, हेमंत इसलिए बेचैन हो रहा था क्योंकि रश्मि एक ऐसा नाम था उसके लिए, जिसे वह कहीं दूर भी फुसफुसाती सी आवाज़ में सुनता तो उसका दिल एक बार को धक् से ज़रूर कर जाता. यह संवेदनशीलता एक बार उसके लिए घोर परेशानी का कारण बन गयी क्योंकि एक बार हेमंत के ऑफिस में रश्मि नाम की कलीग की जॉइनिंग हुई और उसे इसके बगल का ही केबिन ही मिला. अब जब भी कोई रश्मि को पुकारता हेमंत का ध्यान भटक जाता और वह कुछ देर के लिए बेचैन हो उठता. यह वाकया कुछ दिन तक चला, उसके बाद हेमंत ने ख़ुद का केबिन वहां से ट्रांसफर करवाकर डिपार्टमेंट के दुसरी साइड में ले लिया.
                                 रश्मि हेमंत के साथ क्लास छह से पढने आई थी. धीरे-धीरे इनमें दोस्ती हुई और फिर अच्छी पटने लगी. छठीं क्लास से पहले हेमंत अंतर्मुखी प्रकृति का लड़का था लेकिन रश्मि के आने के बाद वह खुला-खुला सा रहने लगा. अब उसके भी काफ़ी सारे दोस्त बन गए और वह सभी कॉम्पीटिशन में भाग लेने लगा. अब रश्मि और हेमंत एक दुसरे के होमवर्क और क्लासवर्क में मदद देने लगे. यह दोनों एक सिम्पल दोस्त से अब बेस्ट फ्रेंड बन गए थे. वह स्कूल-बस से एक साथ ही घर आते-जाते. रश्मि के घर से क़रीब दो किलोमीटर बाद हेमंत का घर पड़ता था. इनकी अच्छी वाली दोस्ती के बारे में इनके घर वाले भी वाकिफ़ हो गए थे. क्लास में सामने के बेंच पर बैठना, लंच में टिफ़िन शेयर करना और बैठ कर बातें करना, बस में साथ-साथ गाने गुनगुनाना, स्कूल में हमेशा साथ-साथ रहना, इंटर-स्कूल प्रोग्राम्स में साथ-साथ हिस्सा लेना, अब हेमंत और रश्मि को एक दुसरे का साथ बहुत अच्छा लगता था. अगर किसी दिन दोनों में से एक भी अब्सेंट हो जाता तो एक का मन नहीं लगता.
                  लेकिन कहते हैं कि ज़्यादा नज़दीकी, दूरियों का कारण बनती है. हेमंत और रश्मि इतने क़रीब हो गए थे कि वह अब एक दुसरे पर अपना हक़ जमाने लगे थे साथ ही साथ उनकी आपस में ख्वाहिशें भी बढ़ गयीं थीं. नौवीं क्लास के सालाना परीक्षा में रश्मि ने क्लास को टॉप किया जबकि हेमंत जो कभी उसके एक रैंक आगे या पीछे रहता था वह इसबार टॉप तीन रैंक में भी शामिल नहीं हो पाया था. यह बात उसे बुरी लगी लेकिन जब उसके कुछ क्लासमेट उससे मज़ाक कर रहे थे तो रश्मि ने हँस दिया. रश्मि की यह हंसी हेमंत को अच्छी नहीं लगी बल्कि उसके ज़ख्म पर नमक का काम कर गयी. हेमंत उस समय वहां से तो चुप-चाप निकल गया लेकिन उसके मन में रश्मि को लेकर गुस्सा भर गया. एक दिन वह  स्कूल में ही रश्मि से देर तक झगड़ता रहा और इसके बाद से उनके बीच बातचीत बंद हो गयी. यहीं से इनके दोस्ती के बीच में दरार आ गयी. इसी बीच रश्मि का बर्थडे आया उसे सबने विश किया लेकिन हेमंत की विशिंग नहीं आई. बर्थडे पार्टी में सारे दोस्त आये लेकिन हेमंत नहीं आया क्योंकि रश्मि ने उसे यह सोचकर इनवाईट नहीं किया कि कहीं वह मना न कर दे क्योंकि उसने तो उसका जन्मदिन विश भी नहीं किया था. इधर हेमंत के लिए यह बात सबसे ज्यादा शौकिंग थी कि उसकी बेस्ट फ्रेंड बनने वाली रश्मि ने उसे पार्टी में बुलाया तक नहीं. इस घटना के बाद अब दोनों में कोई भी सुलह नहीं हो सकती थी. यह ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गई, इनके घर वाले भी इस बारे में जान गए और उन्होंने ने कोशिश की कि इनकी दोस्ती फिर रास्ते पर आ जाये मगर ऐसा नहीं हो सका.

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रात के 9:30 हो गए और हेमंत अभी भी फेसबुक से चिपका पड़ा था, बार-बार उस लड़की के प्रोफाइल को भी चेक कर ले रहा था और साथ ही साथ चैट बॉक्स के स्टेटस को भी. बीच-बीच में वह रश्मि के बारे में सोच कर ख्यालों में खो जाता. उसे इस नाम ने फिर परेशान कर दिया था और पुरानी बातें याद दिला दीं थीं. हेमंत सोचने लगा कि क्या मैं बचपन में रश्मि से प्यार करने लगा था? क्या वह भी मेरे को पसंद करती थी? हाँ पसंद तो करती ही थी अगर पसंद नहीं करती तो मेरे लिए उन लड़कों से झगड़ा क्यों कर बैठती जो मेरे पीठ पीछे मेरी बुराई कर रहे थे. अब भी याद है क्या बवाल खड़ा किया था उसने, टीचर को बुला लायी थी और उन्हें मुर्गा भी बनवाया था. उसकी क्लास में बहुत चलती थी, क्लास में क्या, स्कूल में भी उसकी खूब चलती थी क्योंकि स्कूल की सबसे होशियार और खुबसूरत लड़की तो वही थी ना, वैसे मैं भी कोई कम तो नहीं था. हाँ लेकिन तब बहुत मज़ा आता था जब सब लड़के मुझे देख कर जलते थे क्योंकि मेरी इतनी खुबसूरत और होशियार दोस्त थी. काश यह जो फ्रेंड रिक्वेस्ट आया है,मेरी रश्मि का हो तो कितना मज़ा आएगा. मेरी रश्मि...हाँ मेरी रश्मि, उसे मैं अपनी रश्मि कह सकता हूँ क्योंकि वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी. दोस्त...दोस्त तो तब तक थी जब तक कि उससे झगड़ा नहीं हुआ था, उसके बाद तो...
बीप...बीप की आवाज़ हुई और उसके फेसबुक टाइमलाइन के इनबॉक्स में एक मेसेज आया. हेमंत अचानक पुरानी खुबसूरत यादों से बाहर आ गया. यह मेसेज उसी एंजेल रश्मि का था, अब वह ऑनलाइन हो गई थी. मेसेज था- थैंक्स फॉर ऐडिंग मी, हाउ डू यू डू?
हेमंत के चेहरे पर एक मुस्कान बिखर गयी. उसने अब तक खाना नहीं खाया था और खाए भी कैसे, बनाया ही नहीं था और बनाये भी कैसे, सामान तो कुछ था ही नहीं. इस एंजेल रश्मि में अपनी रश्मि को ढूंढने चल पड़ा हेमंत उस मेसेज का जवाब देता हुआ बोला- इट्स ओके, मी फाइन एंड अबाउट उ? बाय द वे, क्या हम एक दुसरे को पहले से जानते हैं?
एंजेल रश्मि: नहीं तो, बट मुझे भी लगता है कि हम मिल चुके हैं?
हेमंत: फिर तुमने मुझे रिक्वेस्ट क्यों भेजा जब जानती नहीं तो?
एंजेल रश्मि: सॉरी फॉर दिस, वैसे मुझे लगा कि तुम अच्छे लड़के हो इसलिए मैंने भेजा. तुम चाहो तो ब्लाक कर सकते हो मुझे.
हेमंत: कोई बात नहीं, अब हम फ्रेंड बन ही गए हैं तो बातें करते हैं, क्यों???
एंजेल रश्मि: फ्रेंड कहाँ बने हैं अभी तो तुम ये नहीं जानते कि मैं कौन हूँ और या करती हूँ?
हेमंत: ऑफ़कोर्स जानता हूँ कि तुम रश्मि हो और कानपुर डी.पी.एस. से पढ़ी हो. अभी तुम आई.आई.एम.-ए से एम.बी.ए. कर रही हो और हम फेसबुक फ्रेंड हैं और क्या जानना ज़रूरी है?
एंजेल रश्मि: बस इतनी सी जानकारी से तुम मेरे दोस्त बन गए और कुछ भी जानते हो मेरे बारे में?
हेमंत: नो
एंजेल रश्मि: रियली???
हेमंत: याह, रियली.
एंजेल रश्मि: मिन्स, हेमंत यू रियली फॉरगॉट में, हाउ कैन यू डू दिस??
हेमंत: म...मैं समझा नहीं
एंजेल रश्मि: मतलब कि तुम उस रश्मि को भूल गए जिसे तुम अपना सबसे क़रीब और सबसे प्यारा मानते थे.
हेमंत: व्हाट? यू आर दैट रश्मि मिन्स माय रश्मि?
रश्मि: हे! डोंट से मी, माय रश्मि. झूठा शो ऑफ़ करने की ज़रूरत नहीं है, मैं जान गयी कि तुम जो कहते थे वो सब झूठ था. मैं तुम्हारी कुछ भी नहीं थी.
हेमंत: हे रश्मि! तुम ग़लत समझ रही हो. ऐसा कुछ भी नहीं है जो तुम सोच रही हो. आई रियली लव्ड यू
रश्मि: झूठ मत बोलो. तुम्हें सफाई देने की ज़रूरत नहीं है. और रही बात लव की तो वो तुम करते ही नहीं थे और अब तो और नहीं करते. करते तो चार साल हो गए, एक बार भी कांटेक्ट करने की कोशिश की?
हेमंत: डिअर, आई रियली लव यू. बट यू नो थोड़ी सी प्रॉब्लम थी इसलिए मैं तुम्हें  कांटेक्ट नहीं कर पाया.
रश्मि: चुप रहो, अब मेरा मुंह मत खुलवाओ. प्यार मुझसे करते थे और बंक मार कर डेट पर उस कलमुंही मॉडल के साथ जाते थे. स्टॉप लाइंग हेमंत.
रश्मि: क्यों क्या हुआ? रिप्लाई दो. मुझसे प्यार करते थे ना?? अब क्या हुआ???
हेमंत: डिअर, अभी तक तुम्हें उस बात पर विश्वास है मैंने तो तभी प्रूव कर दिया था, ऐसा कुछ नहीं था, शशांक ने तुम्हें मेरे खिलाफ भड़काया था क्यों कि वह तुम्हें पसंद करता था और वो चाहता था कि तुम मेरे बारे में ग़लत सोचो कि उसका काम बन जाये.
रश्मि: अच्छा वह तो मुझे पसंद करता था लेकिन कोयल भी मुझे चाहती थी क्या जिसने मुझे बताया था कि आज तुम उस मॉडल के साथ फ़िल्म देखने जा रहे हो.
हेमंत: कोयल, मुझसे चिढ़ती थी क्योंकि जब फिफ्थ क्लास में पढने आई थी तो उसका मेरा झगड़ा हो गया था और उसके बाद से तो तुमने भी देखा था कि वह मुझे टीचर से डांट पड़वाने के चक्कर में लगी रहती थी.
रश्मि: झूठे बहाने बनाने बंद करो. चीटर!
हेमंत: डिअर, मैं बहाने नहीं बना रहा, बिलीव मी.
रश्मि: ओके. अगर तुम मुझे प्यार करते थे तो फिर इतने दिनों तक कांटेक्ट क्यों नहीं किया, मेरा घर तो तुम्हारे घर से कोई खास दूर भी नहीं है.
हेमंत: तुम घर पर कहाँ थी? और तुम्हें मालूम नहीं कि क्या रूप होता था तुम्हारे पापा का मुझे देखकर, वो तो चबा जाते.
रश्मि: ओके एंड डोंट से माय पापा की वो चबा जाते, वो मैन ईटर नहीं हैं. एंड जब मैंने कांटेक्ट किया तब जाकर तुम्हें  मेरी याद आई और कहते हो आई रियली लव यू.
हेमंत: ओके डिअर, आई’म सॉरी, रियली रियली सॉरी. कान पकड़ के सॉरी, उठ बैठ के सॉरी. प्लीज़ फोरगिव मीइ इ इ इ इ इ इ......
रश्मि: ओके बाबा, बससस. माफ़ किया. आफ्टर आल, मैं जा रही हूँ डिनर करने. करना हो तो आ जाओ लेकिन मैं हॉस्टल में रहती हूँ. लड़कियों के बीच में बैठ कर खाना पड़ेगा.
हेमंत: नो प्रोब्लेम, मैं आ रहा हूँ, वेट...
रश्मि: ओके कमऑन हेमू...बाय गुड नाईट.
हेमंत: आई’म कमिंग   बाय....
दोनों फेसबुक से लॉग आउट हो गए. हेमंत को अचानक याद आया कि मैं तो बात करने के चक्कर में खाना ही भूल गया है और अब रात के दस से ऊपर हो गए हैं. इस समय अब क्या सामान खरीदने जाऊं, चलो खाना ही आर्डर कर देता हूँ...पिज़्ज़ा आर्डर कर देता हूँ क्योंकि आज उसे उसकी चाहत रश्मि मिल गयी थी और रश्मि जब भी खुश होती थी तो पिज़्ज़ा खाती थी स्कूल के दिनों में. हेमंत को अपने स्कूल के फिर वो सुनहरे दिन याद आ गए.

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हेमंत और रश्मि में झगड़ा होने के बाद उनके घर वालों  के साथ-साथ उनके दोस्तों ने भी काफ़ी कोशिश की लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. हाँ, अभी भी रश्मि के मन में हेमंत के लिए स्नेह और आकर्षण ज्यों का त्यों था लेकिन उसकी रुखाई रश्मि को आगे बढ़कर तनाव को कम करने से रोकती रही. वक़्त एक ऐसा मरहम है जो बड़े से बड़े ज़ख़्म को भर देता है. धीरे-धीरे हेमंत के मन में बैठी सारी घृणा धुलने लगी और अब उसे भी लगने लगा कि उसने रश्मि से दोस्ती तोड़ कर अच्छा नहीं किया है. हेमंत अब रश्मि से दोबारा दोस्ती करने के मौक़े तलाशने लगा. इसी बीच वे दसवीं क्लास पास कर गए. हेमंत ने अच्छा प्रदर्शन किया था और संयोग से इस बार वह रश्मि से तीन प्रतिशत ज्यादा नम्बरों से पास हुआ था. हालाँकि उसे यह बात मालूम नहीं थी कि रश्मि के नंबर उससे कम है.
''हेल्लो रश्मि! हाउ आर यू? मुझे लगता है कि हमें फिर से दोस्ती कर लेनी चाहिए बिकॉज़ मुझे तुम्हारे जैसे दोस्त की कमी फील होती है...फ्रेंड्स???'' ,हेमंत रश्मि के तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोला.
"गुड! वैरी गुड!! तुम यह क्यों नहीं कहते कि तुम्हें एक ऐसे दोस्त की ज़रूरत है जिसके नंबर तुमसे कम है और तुम उसपर अपना रोब जमाना चाहते है. मुझे तुम्हारी दोस्त बनने की ज़रूरत नहीं है, तुम्हारे तो बहुत सारे दोस्त हैं" ,रश्मि को लगा कि हेमंत पिछले साल की कसर पूरी करने के लिए आया है कि जब उसके नंबर उससे कम आए थे.
"रश्मि, मेरा कुछ ऐसा इरादा नहीं है. यू आर माय फ्रेंड. और मुझे नहीं मालूम कि तुम्हारे नंबर कितने हैं" ,हेमंत सफाई देता हुआ बोला.
"डोंट बी सिली हेमंत. भोला बनने की ज़रूरत नहीं है. जाओ बहुत सारी लड़कियां हैं उनसे दोस्ती कर लो, तुम तो घूमा करते हो न उनके साथ." ,रश्मि आगे बढती हुई बोली.
हेमंत को बड़ा बुरा लगा लेकिन ख़ुद पर गुस्सा भी आया कि वह बेकार में चला आया उससे उस समय दोस्ती करने जब वह इस बात से परेशान है कि उसके नम्बर अच्छे नहीं आये हैं. लेकिन हेमंत ने अपना प्रयास नहीं छोड़ा, वह भी उसी तरह रश्मि का पीछा करने लगा जैसे पिछली साल रश्मि ने उसका किया था. इधर रश्मि हेमंत से बदला लेना चाहती थी. इसलिए उसने एक अपने ही क्लास के लड़के मनीष से जो पैसे वाले घर से था और बदमाश भी, उससे दोस्ती कर ली. यह बात हेमंत के लिए नागवार गुजरी. अब वह और बेचैन रहने लगा. अब उसके मन में कोई और ही भावना जागने लगी थी. यानि कि वह शायद रश्मि को चाहने लगा था और किसी भी तरह से उसे पा लेना चाहता था. उसके इस पागलपंथी का ख़ुलासा सबके सामने हो गया और कुछ ऐसे तरीक़े से जैसा कि रश्मि ने कभी नहीं सोचा था और ना ख़ुद हेमंत ने भी.
          हुआ यों कि स्कूल में टिफ़िन की छुट्टी हुई थी और सारे बच्चे बाहर फील्ड में थे. सब अपने खेल-कूद और खाने में व्यस्त थे. इधर रश्मि क्लास में ही बैठी थी और मनीष और उसके दोस्तों के साथ गप्पे लड़ा रही थी. रश्मि मनीष के कुछ ज्यादा ही क़रीब बैठी थी जिसका शायद फ़ायदा वह उठाने की कोशिश कर रहा था हालाँकि रश्मि को अभी ऐसा कुछ मालूम ना चला था. हेमंत भी गनीमत से उस क्लासरूम में जा पहुंचा. वह यह दृश्य देखकर गुस्से से तमतमा उठा. वह तेज़ी से आया और रश्मि को वहां से खीचकर उठाता हुआ बोला, “रश्मि, डोंट डू लाइक दिस.”
“क्या ऐसा मत करो और तुमने मुझे ऐसे खींचने की हिम्मत कैसे की.” ,रश्मि उससे अपना हाथ छुड़ाती हुई बोली.
“मुझे मत तड़पाओ, मुझसे दोस्ती कर लो प्लीज, वरना मैं कुछ उल्टा-सीधा कर दूंगा.” ,हेमंत बोला.
“उल्टा-सीधा क्या कर दोगे और तुम्हारी औकात क्या है कि तुम मेरी दोस्त से इस तरह बिहैव करोगे.” ,मनीष बीच में पड़ते हुए बोला.
“तू चुप रह साले, बीच में पड़ेगा तो बहुत ग़लत होगा...”
“रश्मि प्लीज, मेरे से दोस्ती कर लो, प्लीज.”
“हेमंत तुम्हें क्या हो गया है. तुम पागल तो नहीं हो गए हो. चलो ठीक है, मैं तुमसे दोस्ती कर लेती हूँ लेकिन तुम आगे से इस तरह बीहैव नहीं करोगे.”
“ओये पागल, अब जा, अब क्या खड़ा है? रश्मि ने कह दिया न कि उसने तेरे से दोस्ती कर ली. अब निकल...साला कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं?” ,मनीष के साथ वाला लड़का रोब से बोला.
“अबे पागल किसे बोला बे, पागल किसे बोला तूने, तू पागल-तेरे दोस्त पागल, तेरे माँ की...” हेमंत के सर पर आज जूनून सवार था, वह उस लड़के से उलझता हुआ.
“साले मैं चुप हूँ तो तू बोले जा रहा है, तू इतना उछल क्यों रहा है? जा रश्मि नहीं करेगी तेरे से दोस्ती, अब उखाड़ के दिखा, क्या उखाड़ता है??” मनीष बीच में पड़कर झगडा छुड़ाता हुआ बोला.
“अबे बहन की आँख, तू ज्यादा जानता है, रश्मि मेरे से दोस्ती भी करेगी और प्यार भी क्योंकि मैं रश्मि से प्यार करता हूँ, आई लव रश्मि.” हेमंत लगभग चिल्लाता हुआ बोला.
एक मिनट के लिए पुरे कमरे में ख़ामोशी फैल गयी.
रश्मि कुछ बोलती इससे पहले बेल बज गयी और सारे बच्चे कमरे में आने लगे. सारी बातें यहीं पर रह गयीं. मनीष ने स्कूल की छुट्टी के बाद हेमंत से उलझने की कोशिश की लेकिन रश्मि ने उसे रोक दिया. हेमंत भी अचरज में था कि उसने रश्मि से यह बोल कैसे दिया और उसने तो कभी सोचा नहीं था कि वह रश्मि से प्यार भी करता है. यह पूरी बात एक मिनट में ही आई और गई लेकिन रश्मि को यह बात लग गई. कई दिनों तक रश्मि गुमसुम रही और अब वह मनीष और उसके दोस्तों के साथ भी नहीं घुमती थी, ना ही उसने हेमंत से कुछ कहा. हेमंत ने काफ़ी कोशिश की कि वह उस दिन के बात के लिए रश्मि उसे माफ़ कर दे लेकिन रश्मि तो उससे बात करने को भी तैयार नहीं थी. स्वतंत्रता दिवस आने वाला था. ग्यारहवीं के क्लास टीचर ने सारे स्टूडेंट्स से किसी ना किसी एक्टिविटी में हिस्सा लेने के लिए कहा क्योंकि इसबार का आयोजन उनके जिम्मे ही था. सातवीं और आठवीं घंटी में रिहर्सल होना तय हुआ. बच्चों का नाम बुलाया जाने लगा कि फलां बच्चे ने फलां चीज़ में हिस्सा लिया है. हेमंत का नाम बुलाया गया और साथ में रश्मि का भी, कृष्णा और राधा के डांस शो के लिए. हेमंत आश्चर्यचकित था कि उसने तो नाम लिखवाया नहीं फिर उसका नाम क्यों बोला गया. जल्दी ही उसका आश्चर्य ख़ुशी में बदल गया क्योंकि यह नाम रश्मि ने लिखवाया था. यह रश्मि और हेमंत के बीच प्यार की शुरुआत थी. कभी उनकी दोस्ती के चर्चे स्कूल में गूंजते थे और अब उनके प्यार के बारे में उनके क्लासमेट बातें करने लगे थे. मनीष अब दूर खड़ा हेमंत को देख कर बस जलता-भुनता रहता था क्योंकि उसकी दाल कोई और गला ले गया था. ग्यारहवीं में शुरू हुआ प्यार बारहवीं में आते-आते कब परवान चढ़ गया मालूम ही न चला.
                       कहते हैं इश्क़ और मुश्क़ छुपाये नहीं छुपते, सो छुप नहीं पाए और इसकी ख़बर उनके घर वालों को चली. घर वालों के तरफ से उन्हें समझाने के दौर चलने लगा. जैसा हर मुहब्बत के क़िस्से में होता है पहले डांट-फटकार फिर मान-मन्नौवल और फिर लालच. बात इसपर भी नहीं बनी सो मामला स्कूल तक पहुंचा  और इन्हें दूर-दूर रखा जाने लगा. बारहवीं की बात थी सो स्कूल बदला नहीं जा सकता था इसलिए टीचर ध्यान देने लगे और इन्हें पास बैठने नहीं दिया जाता था, साथ घुमने नहीं दिया जाता था. और एक गाने के अनुसार, ‘जब-जब प्यार पे पहरा हुआ है, प्यार और भी गहरा हुआ है’. ये एक दुसरे को मिलने के लिए और बेकल होने लगे. कभी स्कूल में आसानी से मिल जाने वाले अब बंक मारने के फिराक़ में लग गए. इससे इनकी पढाई भी थोड़ी सी चौपट होने लगी. कहावत है कि पानी को ख़ुद ही बहने दो अगर उसे बांध बनाकर रोकने की कोशिश करोगे तो वो एक दिन बाँध तोड़ेगा ही. ऐसा ही हुआ एक बार वो बंक मार के गए थे और पार्क में पकड़े गए. दोनों का स्कूल बंद और घर पर ही होम ट्यूटर लगवा दिया गया. संवाद के सारे साधन टेलीफोन, मोबाइल इनकी पहुँच से दूर कर दिए गए. लेकिन फिर इनकी चाहत ने एक नया रास्ता ढूंढ निकाला और इन दोनों के घर अख़बार देने वाला इन्हीं की उम्र का एक लड़का इनके प्यार का सन्देश पहुँचाने वाला कबूतर बन गया. वह हेमंत के दिल का हाल रश्मि को और रश्मि के दिल का हाल हेमंत को पहुँचाने लगा. धीरे-धीरे समय बीता, इनकी परीक्षाएं हुईं और इश्वर की दया से यह दोनों पास हो गए. लेकिन अब समय और इनकी क़िस्मत इनके खिलाफ़ हो गयी. वह अख़बार वाला लड़का अब दुसरे एरिया में अख़बार देने लगा था और ये जब एक दुसरे से दूर हुए तो आपस में ये एक दुसरे को बता भी नहीं पाए थे कि ये कहाँ पढने के लिए भेजे जा रहे हैं और ये एक दूसरे को कैसे संपर्क कर पाएंगे. फिर आपस की दूरी और समय के चक्र ने इनके प्यार के उस तेज़ धार को भी कुंद कर दिया जो इन्हें कभी यहाँ तक की क़समें दिलवा चूका था कि वो एक दूजे के बिना मर भी नहीं सकते जिंदा रहना तो दूर रहा .

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“अरे! साढ़े ग्यारह हो गए, अब तो रेस्टोरेंट भी बंद हो गए होंगे.” आज हेमंत को प्यार पाने की ख़ुशी में भूखा ही सोना पड़ेगा.
सुबह देर से नींद खुली. हेमंत जल्दी से तैयार हुआ और ऑफिस को निकल गया. देखा आज मोहिका मैडम कुछ ज़्यादा ख़ुश दिख रही थीं. हेमंत के जाते ही उन्होंने उसे सरप्राइज दिया कि आज सीनियर बॉस ने उन्हें ख़ुश होते हुए बताया कि उनका इन्क्रीमेंट होने वाला है और अगले महीने से वो इस ब्रांच की सीनियर मेनेजर के पोस्ट पर प्रमोट हो जाएँगी. यह वाकई ख़ुशी की बात थी और वह इस ख़ुशी को अपने फेवरेट एम्प्लोयी हेमंत के साथ बाँटना चाहती थीं. उन्होंने उसे ऑफिस के बाद उनका इंतज़ार करने बोला. हेमंत ख़ुश भी हुआ और आश्चर्यचकित भी कि मैम ने मुझे ही क्यों कहा अपने साथ जाने के लिए, ज़रूर कोई बात है. वह मन ही मन बेचैन हो रहा था और अपनी क़िस्मत को दाद भी दे रहा था कि वह तो उसपर पर छप्पर फाड़ कर मेहरबान है क्योंकि उधर मुझे कई सालों बाद रश्मि मिल गयी और इधर कई सालों की मेहनत रंग लाने लगी है. दिन भर हेमंत का मन काम से भटकता रहा.
शाम को वह अपने काम को जल्दी निपटा कर मोहिका मैम का वेट करने लगा. मैम भी बताये समय पर आईं और हेमंत के साथ रेस्टोरेंट को निकल पड़ीं. आज मोहिका मैम काफ़ी खुबसूरत लग रही थीं. हेमंत से रहा नहीं गया और उसने मैम की तारीफ़ कर ही डाली, “मैडम आप अच्छी लग रहीं हैं.”
“थैंक यू. एंड डोंट से मी मैम हियर. कॉल मी मोहिका. ऑफिस में मैं तुम्हारी मैडम हूँ, ओके, गोट ईट?”
“सॉरी मोहिका...” ,हेमंत हँसते हुए बोला.
“हेमंत, डू यू वाना बुज़?” मैडम अचानक रुख चेंज करती हुई बोलीं.
हेमंत एक बार को अचकचा गया कि मैम यह क्या पूछ रही हैं. अपना गला साफ़ करता हुआ बोला, “य..यस...बट व्हाट...?
“डोंट से यस एंड व्हाट. लेट्स एन्जॉय. मेरी ख़ुशी से तुम ख़ुश नहीं हो?” मैम ने इस लहज़े में बोला कि वह जैसे पहले से ही दो बोतल पी कर टुन्न हों. फिर उन्होंने हेमंत को साथ लिया और दिल्ली के कनाट प्लेस के पास एक क्लब को हो लिया. मैडम अपनी प्रोमोशन की ख़ुशी से इतनी उतावली हो रही थीं कि कितना बोतल ख़ाली कर गयीं थीं उन्हें मालूम ना चला.
रात के क़रीब 10 बजने को थे और इधर मैडम पर नशे का ख़ुमार चढ़ रहा था, उनके घर से फ़ोन आया और उन्होंने उसे रिसीव भी नहीं किया.
“मैडम अब चलिए. इट्स एनफ. आप एकदम टुन्न हो गयीं हैं. मुझे आपको आपके घर ड्राप करना पड़ेगा.” ,हेमंत मैडम को झकझोरता हुआ बोला. उसने भी पी थी लेकिन इतना कि होश में रह सके. उसे इधर रश्मि से बात करने की चिंता हो रही थी क्योंकि वह शायद इसी समय ऑनलाइन होती थी.
“हे हेमंत! डोंट कॉल मी मैडम. से मी मोहिका माय डिअर स्वीट हेमू. एंड यू नो आई लाइक यू वैरी मच, वैरी-वैरी मच.” मोहिका मैडम अपने होश में नहीं थी और उलजलूल बातें कर रही थी ऐसा ही कुछ हेमंत को लगा. लेकिन मैडम ने अचानक ख़ुद को संभाला और गंभीर होते हुए बोली, “हेमंत, टेक ईट सीरियस. आई रियली लाइक यू एंड आई विल वांट टू लव यू.”
“मैडम, अभी आप होश में नहीं हैं, चलिए आपको घर छोड़ देता हूँ.” ,हेमंत उन्हें सहारा देते हुए क्लब से बाहर ले आया.
उन्हें वह उनकी कार में ही घर छोड़ आया. ख़ुद उनके घर से ऑटो पकड़ा और जब तक घर पहुंचा रात के बारह बजने वाले थे. वह जल्दी से कपड़े बदल कर फेसबुक में लॉग इन किया. उसने रश्मि के दो मेसेज देखे. एक में उसने उसे ग्रीट किया था और दुसरे में उससे पूछा था कि दिन भर कहाँ ग़ायब थे और अपनी कोई अच्छी सी पिक्चर क्यों नहीं लगते फेसबुक पर. अभी वह ऑफलाइन थी. हेमंत को यह बात अच्छी नहीं लगी आज उसे उसकी रश्मि से बात करने का मौक़ा नहीं मिला लेकिन इस बात को लेकर उसके मन में बेचैनी थी कि क्या मैडम सच में ऐसा सोचती है जैसा वो पीने के बाद उससे कह रही थी. फिर उसे एक फिल्म का सीन याद आ गया जिसमे एक हीरो शराब पी लेने के बाद अपने दिल की सारी बातें कह देता है जो वह होश में कहने से कतराता है. इसी सोच और उहापोह में वह करवटें बदलता रहा और उसे क़रीब रात के ढाई-तीन बजे नींद आई.
अब हेमंत के दिन फ़िरने लगे थे. कभी वह रश्मि के चले जाने के बाद से पांच साल तक बिलकुल अकेला हो गया था वहीँ उसे अब दो-दो खुबसुरत लड़कियों का साथ मिलने लगा था. कहते हैं कि इन्सान एक साथ कई काम बखूबी ढंग से नहीं कर सकता और पुरुष तो और नहीं, वह एक ना एक काम के तरफ़ ज़्यादा झुक ही जाता है. ऐसा ही कुछ हेमंत के साथ हुआ. उसे मोहिका मैडम भी पसंद करने लगीं थीं और रश्मि से उसकी ख़ूब बातें होती थीं. अब इस आपा-धापी में किसी एक का नुकसान तो होना ही था सो हेमंत रश्मि के ध्यान में पड़कर मोहिका मैडम को कम स्पेस देने लगा. अभी कुछ दिन पहले ही शुरू हुए इस अघोषित प्रेमकहानी में एक नया ट्विस्ट आने लगा. पहले मोहिका को लगा कि हेमंत शायद काम को लेकर बिज़ी है इसलिए उसे कम स्पेस दे पा रहा है लेकिन एक दिन जब उन्होंने ख़ुद को इगनोर किये जाने का कारण पूछा तो हेमंत ने यह कहकर उसे समझाने की कोशिश की कि उसे एक लड़की रश्मि से पहले से ही इश्क़ है जो उसके बचपन का प्यार है. यह बात मोहिका मैडम के लिए असहनीय थीं. उन्हें अचानक सब कुछ ख़ाली सा दिखने लगा और यह हेमंत उनका दुश्मन बन गया जो कभी उनका प्यार था. मोहिका ने बड़ी कोशिश करके ख़ुद के दिल से हेमंत को निकालने की कोशिश करने लगीं लेकिन इसमें वह बार-बार नाकामयाब हो जाती थीं लेकिन इन सब बातों का हेमंत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि वह तो किसी और के चाहत था.
 इधर वह रश्मि के लिए सतरंगी सपने बुनने लगा जिसमें वह और रश्मि में थे बाकी और कुछ भी नहीं था. मोहिका को मन करने के क़रीब दो तीन दिनों के बाद की बात है. हेमंत रात को बैठा रश्मि से फेसबुक पर चैट कर रहा था. उसने अपने बातों का रुख मोड़ते हुए रश्मि को अपने और मोहिका मैडम के बीच हुए वाकये को बताने लगा. वह हर बात बताते जाता और रश्मि बड़े ध्यान से सुनती रही.
रश्मि: तो तुमने मोहिका को मना कर दिया कि तुम उसे प्यार नहीं करते. अच्छा झूठ बोल लेते हो. तुमने उसकी फोटो भेजी है और वह सुन्दर तो है. वेल...अगर तुम उसे नहीं पसंद करते तो फिर किसे करते हो?
हेमंत: करता हूँ एक खुबसूरत लड़की को जो मोहिका से भी ज़्यादा सुन्दर है.
रश्मि: ह्म्म...म्म...???
हेमंत: जिससे मैं चैट कर रहा हूँ वो है और कौन है.
रश्मि: व्हाट ???
हेमंत: यस, आई रियली लाइक यू एंड आई लव यू.......
रश्मि: तुम पागल हो, मुझे प्यार करते हो, दिमाग तो नहीं खिसक गया है तुम्हारा.
हेमंत: यह कैसी बात कर रही हो. तुम भी तो मुझे प्यार करती हो?
रश्मि: नो हेमंत, वी आर जस्ट फ्रेंड्स. और मैंने तुम्हारे बारे में कुछ ऐसा नहीं सोचा और फिर मैं तुम्हें क्यों प्यार करने लगी.
हेमंत: तो वो फिर जब हम स्कूल में थे वह क्या था?
रश्मि: डफर, वो हमारे स्कूल डेज थे और उसको लेकर तुम बैठे रहोगे. तुम मेरे दोस्त हो अच्छे वाले.
हेमंत: डोंट टेल अ लाई. यू लव मी और तुम मेरे से मज़ाक कर रही हो.
रश्मि: हेमंत, पागल मत बनो. मैं तुम्हें  प्यार नहीं करती और करती भी थी तो हम नादान थे. नाउ वी आर मेच्यौर.
हेमंत: हाउ कैन यू से कि वो बचपन था. तो फिर तुमने मुझे कांटेक्ट क्यों किया जब तुम्हें  मेरी याद आई तभी तो तुमने मुझे ढूंढा.
रश्मि: ओ एम जी. कोई अपने दोस्त को नहीं ढूंढ सकता बस उसे ही ढूंढेगा जिसे वह प्यार करता है.
रश्मि: शायद मेरी ही ग़लती थी कि मैंने तुम्हें बताया नहीं था.
हेमंत: क्या बताया नहीं था?
रश्मि: तुम मि. राहुल अरोड़ा को जानते हो, जो तुम्हारे कंपनी में नए मार्केटिंग मेनेजर हैं और उनकी अभी पांच- छह महीने पहले ज्वाइनिंग हुई है.
हेमंत: हाँ, उनकी मुझसे बड़ी अच्छी पटती है उनके आने के एक महीने बाद ही तो उनके चलते मेरा प्रमोशन हो गया था. तो उनसे क्या मतलब है??
रश्मि: वो मेरे से एक साल सीनियर थे मेरे कॉलेज में और वो मेरे बॉयफ्रेंड हैं और उन्होंने ने मेरे घर वालों से बात कर ली है बस उनके घर से अप्रूवल आना है फिर हमारी शादी हो जायेगी
हेमंत:__________
रश्मि: क्या हुआ? टेंशन मत लो, तुम्हारे बॉस की बीवी बन कर आ रही हूँ तुम्हारा प्रमोशन तो करवा ही सकती हूँ.
हेमंत: हम्म...म्म...
हेमंत: कान्ग्राचुलेशन...शादी की बधाइयाँ.
रश्मि: थैंक यू डिअर हेमू...
रश्मि: तुम बताओ, तुम्हें कैसी लड़की चाहिए. शायद मेरे जैसी ही पसंद होगी. और तुम कब शादी करने जा रहे हो???
रश्मि: व्हाट हैपेण्ड...ऑफलाइन हो गए क्या??
                  अब हेमंत कोई भी जवाब देने के मूड में नहीं था, उसने लैपटॉप ऑफ किया. जैसे उस दिन वह रश्मि से मिलने की ख़ुशी में बिना खाए सो गया था वैसे ही आज उससे बिछड़ने के ग़म में भी भूखे पेट ही सोने की कोशिश करने लगा. इसी जद्दोजहद में उसने अपने फ़ोन का रेडियो ऑन किया. शायद कोई रेडियो स्टेशन अस्सी के दशक के गाने बजा रहा था. हेमंत आँखे बंद किये गाने को सुनाने लगा, उसे महसूस करने लगा और गुनगुनाने लगा ‘जब हम जवां होंगे, जाने कहाँ होंगे लेकिन जहाँ होंगे...’

                                                                      - © अरुण तिवारी ‘प्रतीक’.




Tuesday 28 January 2014

पहला प्यार


बारिश के दिन थे, जोर की बारिश हो रही थी. माँ ने सुबह ही कहा था,
'' ज़ोया छाता लेकर जाना, अभी बारिश हो तो नहीं रही है लेकिन शायद हो सकती है और हाँ अगर आज फिर दोस्तों के साथ भीगते हुए आई तो तेरे अब्बू से तेरी शिकायत कर दूंगी और कल वही भीगे हुए कपडे पहन के जाना स्कूल, मैं नहीं दूंगी धुले हुए कपडे.''
             माँ की यह हिदायत मैंने एक कान से सुनी और दुसरे से निकाल दी थी. मैंने सोचा, अरे अभी हलकी धूप निकली है बारिश कहाँ होगी, अम्मी का तो काम है चिंता करना और बेवज़ह धमकाना; उन्होंने तो तब भी धमकाया था जब मैं सहेलियों के साथ बिना घर बताये सिनेमा देखने चली गई थी और जाती भी क्यों न ? लव स्टोरी थी. मुझे बचपन से ही शौक है प्यार पर बेस्ड फिल्मे देखने का. लेकिन मेरी निजी ज़िन्दगी में आज तक मुझे कभी किसी से प्यार हुआ ही नहीं और होता भी कैसे ? अब्बा जान ने छोटे से लेकर आज तक केवल लडकियों के स्कूल में ही दाखिला करवाया और आज जब मैं कॉलेज में पढ़ती हूँ तो वो भी वीमेन्स कॉलेज है. कभी किसी अजनबी से मुलाकात ही नहीं हुई जो इतना अच्छा लगे जैसे मैंने अपने सपने में सोच रक्खा हो. हाँ और जो मुझे आस पड़ोस, बाज़ार- मोहल्लों में मिले तो उनकी मेरी कभी बात ही नहीं बनी.
पों...पों...बस का हॉर्न बजा और मैं खयालों के राजकुमार के ख्याल से निकली. मेरी बस आ गई थी जिससे मुझे घर लौटना था यहाँ तो मुझे छाते की खास ज़रूरत नहीं थी लेकिन घर से आधा किलोमीटर दूर मेन रोड पर उतरती तो वहां से भीगते हुए पैदल जाने का डर अभी से मुझे सताए जा रहा था...मैं जल्दी से धक्का मुक्की करती हुई बस में चढ़ गई. मुझे पब्लिक ट्रांसपोर्ट की आदत हो चुकी थी हालांकि पहले ऐसा नहीं था. गनीमत से एक सीट मिल गई और मैं झट से उस सीट पर बैठ गई. कुछ देर बाद कंडक्टर आया और टिकट बनाने लगा. मैंने उसे अहमदनगर का टिकट बनाने के लिए कहा और पैसे निकालने लगी. अचानक मेरा हाथ भीगे पर्स पर गया और फिर गीले नोटों पर; मेरे तो होश उड़ गए. दरअसल, बस स्टॉप पर तो मैंने खुद को भीगने से बचा लिया था मगर एक पतली थी पानी की धार टीन के छोर से गिरती हुई मेरे कॉलेज बैग को भीगा रही थी जिससे मेरे कॉपी किताब के साथ मेरे पैसे भी भीग गए थे. मैं एक पल को सहम गयी. मुझे लगा आज कंडक्टर की झिड़की सुननी पड़ेगी. जैसे ही मैंने भीगे नोट कंडक्टर को बढ़ाये वो बोला, "मैडम जी, सूखी सीट पर बैठी हो और गीले नोट दे रही हो''...सुनकर सभी हंसने लगे.
मुझे बहुत शर्म आई. मैं भी थोड़े गुस्से में बोली, "लेना हो तो लो, मेरे पास तो भीगे नोट ही हैं, अब तुम्हारे लिए नोट को सुखा के लाऊं क्या ?
''नहीं जी, मैं गीले नोटों का क्या करूँगा? दुसरे नोट दो''
हमारी बक-झक हो रही थी कि 20 का नोट पकड़ा हुआ एक हाथ और कड़कती आवाज़ मेरे से होकर गुज़री,
"ले भईया और टिकट बना, ज़्यादा मगज़मारी करने की ज़रूरत नहीं है." मैंने ध्यान नहीं दिया कि मेरे बगल की सीट पर एक गोरा चिट्टा सा हीरो टाइप लड़का बैठा था. चेहरे से लोफ़र लगने वाला लड़का इतने अच्छे दिल का था, आज तक मैंने सोचा भी नहीं था. अच्छा था, सुन्दर, चेहरे पर चमक थी, बाल बड़े करीने से संवारे थे लेकिन खिड़की के पास बैठने के चलते हवा के तेज़ झोंके के कारण बाल चेहरे पर तितर-बितर हो गए थे. मैंने उसे धन्यवाद दिया और खामोश हो गयी.
                कुछ देर बाद चुप्पी उसने ही तोड़ी. जैसे सब पूछते हैं उसने भी पूछा,"जी आपका नाम क्या है ?
"ज़ोया...ज़ोया परवीन..." मैं सोचते और अटकते हुए बोली.
"जी मेरा नाम है साहिल हुस्सैन...मैं अहमदनगर से पहले वाले मोहल्ले में रहता हूँ आपको तो अहमदनगर जाना हैं ना? अभी कारीगर हूँ आपके कॉलेज से अगले वाले कट के पास हैंडलूम का कारखाना है उसी में...आप कौन सी क्लास में हैं? कौन सा इयर है? वह धड़ाधड़ अपने बारे में बताता गया और मुझसे सवाल पूछता गया. मैं सोच में थी कि यह कैसे जानता है कि मैं कॉलेज में पढ़ती हूँ और क्या यह अपने 20 रूपये की मदद के बदले में बस में मेरा दिमाग खाना चाहता है ? मुझे ऐसे लोग पकाऊ लगते हैं जो बेमतलब के ताबड़तोड़ बोलते जाएँ.
''जी फाइनल इयर में हूँ'' ,मैंने बस इतना सा जवाब दिया.
"मैंने बस दसवी तक पढाई की है, अब्बा की लम्बी बीमारी में मौत हो गई इसीलिए बीच में पढाई छोडनी पड़ी. लेकिन मैं अभी खुश हूँ, अपना काम करके पैसे भी कमा रहा हूँ और रोज़ी रोटी के लिए हुनर भी सीख रहा हूँ. ये पढाई कर के लोग क्या करते हैं? कुछ भी तो नहीं, वही रटी-रटाई बातें पढ़ते हैं, बाबर अकबर का बाप और अकबर हुमायूं का बाप था...यार इससे पेट थोड़े न भरेगा, इससे पैसे थोड़े न मिलेंगे. पैसा तो काम और हुनर सीखने से ही मिलेगा और रोटी पैसे से ही मिलेगी और भूख तो रोटी से ही मिटती है न मैडम, नाकि देश की जनसंख्या और क्षेत्रफल याद करने से और इतिहास-भूगोल पढने से.”
चों...एकाएक बस का ब्रेक लगा, सभी लोग आगे की सीट के तरफ झुक गए, मुझे तो ऐसा लगा जैसे मेरी नाक आगे की सीट से टकराकर बीच में टूट गई. बहुत गुस्सा आया, सीटों पर बैठे कई लोगों ने ड्राईवर को ब्रेक लगाने पर गालियां भी बकीं
''जाम...फिर जाम...बताइए लोगों को थोड़ी सी भी तमीज़ नहीं है, बच्चे पर बच्चा पैदा कर रहे हैं, जनसंख्या बढ़ा रहे हैं. तो भुगतो...अब वे बच्चे बड़े होंगे और अपनी गाड़ियां लेकर सडकों पर निकलेंगे तो जाम तो लगेगा ही.'' वह भी बोलते-बोलते अचानक रुक गया, मुझे लगा कि बस के जैसे उसक मुंह में भी ब्रेक लग गया. थोडा गंभीर होता बोला," वैसे मैं भी छः भाई-बहन हूँ.''
और वह ठहाका लगाकर हंसने लगा. मैं भी अपनी हंसी नहीं रोक पाई. इसके बाद मुझे भी उसके बातों में दिलचस्पी आने लगी. बातों-बातों में कब आठ किलोमीटर लम्बा रास्ता कट गया, मालूम नहीं चला. जब मैं बस से उतरी तो ग़नीमत से बारिश रुक गई थी. मुझसे वह दुआ सलाम और फिर मिलने का वादा करके चला गया. लेकिन मेन रोड से घर तक आने वाले रास्ते में मेरे दिमाग़ में उसकी ही बातें ही घुमती रहीं. कितना खुला और आज़ाद था वह; मन से भी और बातों से भी. आई लाइक इट!! बात-बात पर मुझे उस बेमतलब की मगर इंटरेस्टिंग बकवास में शामिल करते हुए ठहाके लगाना, आई लाइक इट! घर पहुँची और अपने रोजाना के कामों में बिजी हो गई फिर कभी उसका ख्याल ही नहीं आया.
                                   एक दिन मैं घर पर चल रही ईद की तैयारियों के चलते थोड़ी लेट हो गई. स्टॉप पर गयी तो बस जा चुकी थी. अब अगले बस के लिए मुझे लगभग एक घंटे का इंतज़ार करना था. मैं इस पशोपेश में थी कि घर लौट जाऊं या कॉलेज जाऊं. तभी एक स्कूटर मेरे पास आकर रुका.
"मैडम जी, एक सवारी...फ्री में...गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज...चलेंगी क्या?''
यह क्या यह तो वही लड़का था जो मुझे बस में मिला था करीब 5-6 महीने पहले. नाम था साहिल.
''अरे आप, यहाँ कैसे और मुझे पहचान लिया ?'' मैं चिहुकते हुए बोली.
"मैडम, भूल गईं, बताया तो था, यहीं सड़क से नीचे की गली में रहता हूँ, चलिए आपको आपके कॉलेज छोड़ देता हूँ अभी दो महीने ही हुए सेकंड हैण्ड खरीदी है, कैसी है ?'' वह स्कूटर की एक्सेलरेटर घुमाता हुआ बोला.
''नहीं, मैं चली जाउंगी, अभी बस आती ही होगी, वैसे भी मैंने उस दिन का वो बीस रुपया आपको नहीं दिया है...एक मिनट रुकिए मैं अभी आपको देती हूँ.'' ,मैं दुपट्टे को संभालती हुई और अपने बैग से हैण्ड पर्स निकालते हुए बोली.
''मैडम, यह क्या कर रहीं हैं, मुझपर पाप मत चढ़ाइए. एक घंटे में आएगी बस...चलिए छोड़ देता हूँ, रमज़ान का महिना है सोचा दुआएं भी कमा लूँ '' वह थोडा सीट पर थोडा आगे की ओर सरकता हुआ बोला मानो मैं उसके पीछे बैठ ही रही हूँ.
                               मैंने भी ज्यादा सोचने समझने की जगह क्या पता किस विश्वास से एक अनजान लड़के के गाडी पर बैठ गई. आज पहली बार मैं किसी लड़के के इतना क़रीब बैठी थी. अजीब सी सिहरन और डर मेरे अन्दर बैठा जा रहा था. उस दिन की तरह वह आज भी बोले जा रहा था, हँसे जा रहा था और मैं चुपचाप उसकी हाँ में हाँ मिलाती जा रही थी. बातों-बातों में मेरा कॉलेज आ गया और वह मुझे उतार कर जाने लगा. उसने मुझे बाय बोला और शाम को मिलने का वायदा करके अपने काम पर चला गया. सच बताऊँ, वह आज बहुत सुन्दर लग रहा था. काली कमीज़ उस पर क्या फब रही थी मानो उसने पहले से  ही काला रंग सोच के पहना हो कि उसकी शख्सियत को देख किसी की नज़र न लगे...मैं क्यों सोच रही हूँ उसके बारे में; खुद को झंकझोरती हुई मैं कॉलेज में चली गई और
पुरे दिन मैं उलझी सी रही और सोचती रही कि कब शाम हो और फिर उससे मुलाक़ात हो ...अरे! मुझे उसका क्यों इंतज़ार है ? ना मैं उसे जानती हूँ, ना मैं उसे पहचानती हूँ, मेरे दिमाग़ ने मुझसे कहा. फिर दिल ने ख़िलाफ़त की, अरे! मैं झूठ बोल रही हूँ खुद से..मैं उसे जानती हूँ कि उसका नाम साहिल है और वह अच्छा लड़का है और पहचानती भी हूँ कि वह बहुत ही सुन्दर और लम्बे कद का लड़का है.
                             शाम पांच बजे अपने लेक्चर्स, मेहंदी और डांस का क्लास निपटा कर जब मैं सहेलियों के साथ बस स्टॉप पर आई तो सहेलियों के हंसी- मज़ाक के बीच भी मेरा मन कहीं और ही घूम रहा था. मेरी नज़र को किसी चीज़ की तलाश थी...शायद स्कूटर की क्योंकि कोई भी स्कूटर सड़क से होकर गुज़रता तो मेरा ध्यान उधर को चला जाता. एक स्कूटर तेज़ी से मेरी तरफ़ बढ़ा और मेरी आँखे चमक उठीं. वह...मतलब साहिल आ रहा था.
"मैडम जी चलिए'' ,वह स्कूटर को रोकता हुआ ऐसे बोला जैसे की यह उसका फ़र्ज़ हो और मैं भी फुर्ती से स्कूटर पर बैठ गई जैसे कि यह मेरा अधिकार हो.
"मैडम जी, मुझे मेरी तनख्वाह मिली है और मुझे घुमने का मन है, अगर आप मेरे साथ चलेंगी तो अच्छा लगेगा और मुझे ख़ुशी भी होगी कि कोई तो है जो मेरी बकवास भी हंस-हंस के सुनता है. चलेंगी ना मैडम जी" ,वह स्कूटर को हवा में उडाता हुआ बोला.
"ये मैडम-मैडम क्या लगा रखा है मेरा नाम ज़ोया है मुझे ज़ोया बुलाइए, ठीक है ?", मैं थोडा गुस्से से बोली.
''सॉरी जी, मतलब ज़ोया जी.
मैं चुपचाप उसका साथ देती गई और वह बोलता गया और बताता गया अपने बारे में. मैं भी बोलती थी और अपने बारे में बताती थी मगर बहुत कम क्योंकि उसके बोलने की रफ़्तार में ख़ुद के लिए पनाह खोजना बड़ा मुश्किल था. हम कई जगहों पर घुमे, खूब खाया-पीया और बातें भी की. यह पहली बार था जब मैं किसी लड़के के साथ कही घुमने आई थी हालांकि सबकुछ पहली बार ही हो रहा था मेरी ज़िन्दगी में. क़रीब सात बजने को हुए तो मेरी ज़िद पर हम घर लौटने लगे. रास्ते में मालूम चला कि उसके गाँव पर पड़ोसियों ने कब्ज़ा कर लिया है और उसके खालाजान को पीट कर भगा दिया है इसलिए वह गाँव जा रहा है. मैं रोड पर, जहाँ से मैं पैदल जाती थी, उतर गई और घर जाने को हुई वैसे घर जाने का तो मन नहीं कर रहा था मगर अब्बू ने घर पर फ़ोन ज़रूर किया होगा और उन्हें मालूम चल गया होगा कि मैं अभी कॉलेज से घर नहीं लौटी हूँ क्योंकि वो दुकान से रात को नौ बजे आते थे सो बीच में शाम को पक्का फ़ोन कर लेते थे.
" ज़ोया जी ...ज़रा रुकिए...यह कलम रखिये मैं आपको तोहफ़ा दे रहा हूँ, बहुत दिनों से संभाल के रक्खा था. मैंने इसे तब ख़रीदा था जब मैं दसवीं में था, सोचा था ग्यारहवी में इसी से लिखूंगा लेकिन मैं तो लिख नहीं पाया, आप ले लीजिये. यह आपके पास रहेगा तो दो फ़ायदे होंगे एक तो इसका इस्तेमाल भी हो जायेगा और दूसरा इसी बहाने आप इस बातूनी को याद कर लेंगी.''
वह चुप हो गया. मैंने सोचा मैं कुछ बोलूं और मैं अभी बोलने ही वाली थी कि
''मैडम जी...वो सॉरी...ज़ोया जी, एक बात और मुझे बहुत अच्छी अंग्रेज़ी नहीं आती लेकिन इतना तो जानता हूँ इसलिए आपसे कहना चाहता हूँ, कि आप बहुत अच्छी हैं,
आई लाइक यू '', वह अपनी निगाहों को नीचे झुकाता हुआ बोला.
मैं भी अपने मन में कुछ ऐसा ही सोच रही थी.
''मैडम जी चलता हूँ कुछ सामान ख़रीदने हैं, कल सुबह ही घर निकलूंगा, ख़ुदा हाफ़िज़, ऊपर वाले ने चाहा तो आपसे ज़रूर मिलूँगा''
फिर पहले की तरह मेरे बोलने से पहले और कुछ कहने से पहले उसका स्कूटर आगे बढ़ गया. और, मैं उससे निकले धुएं को देखती हुई खुद को समझाने और उससे अपने मन की बातें कहने की नाक़ाम कोशिश कर रही थी.
                                       
                                                                      -   © अरुण तिवारी ‘प्रतीक’