Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)

Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)
Prem Kahaniya...

Thursday 13 February 2014

ये मोहब्बत



भी-अभी रोहित ने गोरखपुर के एक मशहूर कॉलेज सेंट एंड्रूज में स्नातक में दाखिला लिया था. नया कॉलेज, नए लोग और नयी जगह सब कुछ उसे बड़ा अच्छा और सुन्दर लगता था. हाँ, अभी उसके कॉलेज में बहुत दोस्त नहीं थे और अभी वह ज़्यादा दोस्ती करने के मिज़ाज में भी नहीं था क्योंकि जब उसे गाँव से भेजा गया था तो माँ-पिता जी ने सख्त हिदायत दी थी कि शहर के लड़कों से दोस्ती-यारी कम ही रखना. क्योंकि गाँवों में यह आम सोच है कि शहर के लड़के-लड़कियां और वहां की आबो-हवा नए-नए गए गाँव के लड़कों को बिगाड़ देती है. रोहित गाँव से पहली बार शहर गया था सो उसे इस बात का विशेष ख्याल रखना था कि किसी शहरी की बुरी नज़र न लग जाये. गाँव का होने के चलते उसके रहन-सहन और बोल-चाल में ठेठ देहातीपन झलकता था. यह बात जींस-टीशर्ट वालों के लिए हंसी-मज़ाक का विषय बनती थी. रोहित को शुरुआती दिनों में बड़ी दिक्कत हुई और कई बार उसे सबके सामने ज़लील होना पड़ा. जब रोहित ख़ुद को देहाती पुकारे जाने से तंग आ गया तो उसने ख़ुद को शहरी रंग-ढंग के हिसाब से ढालने में ही अपनी भलाई समझी. वह शहरी मिज़ाज में कपड़ों और बोल-चाल से तो बदल गया लेकिन उसके मन और दिमाग़ अभी भी गाँव के जैसे संस्कारिक और कोमल बने रहे.
                         एक साल बीत जाने के बाद रोहित अपनी जीतोड़ मेहनत के चलते अपने क्लास के तेज़ विद्यार्थियों में शुमार होने लगा. इस सफलता से ख़ुश होकर उसके पिता जी ने उसे एक नया मोबाइल दिलाया. नया मोबाइल और उसका उस दौर में बढ़ता चलन और ज़रूरतें, रोहित के लिए सब कुछ एक सपने के जैसा था. अब उसके कई दोस्त थे और वह उनके साथ ख़ुश था लेकिन एक दिन ऐसे ही दोस्तों के बीच हो रही गपशप ने रोहित के एक बात सोचने पर मज़बूर कर दिया. हुआ यों कि उसके पांच दोस्तों की मंडली में से एक दोस्त ने रोहित से एक चीज़ के बारे में बात छेड़ी जिसके बारे में उसने कोई ख़ास ध्यान ही नहीं दिया था.
“अच्छा रोहित, ये बता कि यार तेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है? क्योंकि तुझसे कई बार पूछ चुके और तू बात घुमा-फिरा देता है.” ,उसके एक दोस्त सन्नी ने पूछा.
“अबे होगी ये हमें बताना नहीं चाहता वरना हम इसे उससे मिलाने के लिए ज़िद करेंगे न इसलिए.” ,एक और दोस्त बोला.
“हो सकता है कोई थी और उससे इसका ब्रेकअप हो गया होगा, हा...हा...हा...” दूसरा दोस्त हँसता हुआ बोला.
“अरे नहीं यार, मुझे इन सब चीजों में यकीन नहीं है और मैं प्यार करना भी नहीं चाहता क्योंकि मैंने फ़िल्मों में देखा है उन्हें कितनी दिक्कतें उठानी पड़ती है और ये सब बेकार की चीज़ें हैं इसमें केवल समय की बर्बादी है और कुछ नहीं.” ,रोहित सबका एक बार ही जवाब देता हुआ बोला.
“हाँ भई, जब मिला नहीं तो अंगूर खट्टे ही होंगे.” ,युवराज चुटकी लेता हुआ बोला.
“अच्छा सुन, अगर तुझे कभी लगे कि तेरा मन भी कभी-कभी अपने किसी ख़ास से अपनी फीलिंग्स बताने के लिए करता है लेकिन तू बता नहीं पता क्योंकि वो ऐसी भावनाएं होती हैं जो तू अपने मम्मी-पापा या हम दोस्तों से बताने में हिचकिचाता है तो मुझे संपर्क कर लेना, तुम्हारा लव-गुरु दोस्त हमेशा हाज़िर रहेगा.” ,सन्नी थोड़ा सा गंभीर होता हुआ बोला.
“अबे, हम तो भूल ही गए थे अपने कॉलेज का लव-गुरु तो अपना दोस्त ही है...अच्छा सन्नी, ये बता वो दिव्या वाले मैटर का क्या हुआ तूने उसकी दोस्ती कराई की नहीं उस नकचढ़े इमरान से.” ,उन दोस्तों में से ही एक ने  सन्नी से किसी पुराने केस के बारे में पूछा जो सन्नी के पास दो महीने पहले आया था.
“अबे उसे तो मैंने ही पटा लिया, क्योंकि इमरान से दोस्ती कराते-कराते मुझको दिव्या अच्छी लगने लगी. ये देख उसका नंबर है मेरे फ़ोन में.” ,सन्नी अपना फ़ोन निकालकर सबको दिखाते हुए बोला.
फिर सारे दोस्त आपस में हंसी-मज़ाक में व्यस्त हो गए लेकिन सन्नी के कहे गए वो कुछ अलफ़ाज़ रोहित के कानों में उसके घर जाने तक गूंजते रहे. वह जब रात को सोया तो उसे ना जाने क्यों ऐसा लगने लगा कि आज उसका मिज़ाज कुछ भारी सा है और उसके मन में कुछ बोझ पड़ा है जिसे वह चाहता है कि हल्का करे. रोहित देर रात तक करवटें बदलता रहा और अपने मन में यह गुणा-भाग करता रहा कि क्या सच में उसके दिल में भी ऐसे खयालात आते हैं जिन्हें उसने कई बार कोशिश की कि वह अपने माँ-पिता जी को बताये मगर उनके प्रति डर और सम्मान के चलते नहीं बता पाया. सही में, उसने तो कई बार अपनी बातें अपने चचेरे भाइयों को बतानी चाही, अपने चाचा को बतानी चाही लेकिन वह बता नहीं पाया. वैसे एक बार बताया तो था उसने दुसरे के खेत से दोस्तों के साथ मज़े-मज़े में गाजर चुराकर खाने की बात लेकिन क्या हुआ, बड़ी दीदी ने पिता जी को बता दिया और जम कर मार पड़ी थी. ऐसे कई बार उसने अपने दिल की बातें बतायीं और उसके चचेरे भाइयों ने उसे पुरे गाँव में फैला कर ख़ूब मज़े लिए. ऐसे ही उसे एक बार बगल के गाँव की एक लड़की बहुत अच्छी लगने लगी तो उसने राहुल से बताया और उसने इस बात का ढिंढोरा पीट दिया था और उसकी ख़ूब फज़ीहत हुई थी. इसलिए रोहित ने निश्चय कर लिया था कि अपने दिल की बात किसी को नहीं बताएगा. धीरे-धीरे वह और कामों में इतना मशगूल हो गया कि अपने एहसासों की उसे कभी फ़िक्र ही ना हुई लेकिन सन्नी के उन बातों ने उसे फिर से यह सोचने को विवश कर दिया था कि क्या मुझे भी अपनी बातें बताने के लिए किसी की ज़रूरत है. रोहित इस बात को लेकर कुछ गंभीर हो गया था.
                         रोज़ की तरह वही दिनचर्या चलने लगी. वही पढाई और दोस्तों के साथ मस्ती लेकिन एक दिन किसी बात को लेकर रोहित बड़ा उदास था शायद उसे सर ने प्रोजेक्ट तैयार नहीं होने के कारण डांट दिया था. अपने कमरे में बैठा रोहित ऐसा महसूस कर रहा था कि जैसे अभी उसे रोना आ जायेगा. उसने फ़ोन निकाला और सन्नी को कॉल लगा दिया.
“हेल्लो सन्नी! यार तू सही कह रहा था, मुझे किसी की ज़रूरत है जिसे मैं अपनी फीलिंग्स बता सकूँ, तूने कहा था कि मुझे कभी ऐसा लगे तो मै तुझे कांटेक्ट करूँ तू मेरी मदद करेगा. अब यार...”
“हा...हा...मैं समझ गया कि तुझे अब ऐसा लगता है कि तुझे किसी की ज़रूरत है मतलब किसी दोस्त की, चल मैं तेरा दोस्त हूँ, तू मुझे ही बता दे.” ,सन्नी हँसता हुआ बोला.
“यार मज़ाक मत कर, मेरी हेल्प कर प्लीज़” ,रोहित विनती करता हुआ बोला.
“अच्छा मेरे भाई, ठीक है कल आ मैं तुझे नंबर दूंगा और समझा दूंगा कि कैसे बात करनी है. ओके? मेरी बेस्ट फ्रेंड की एक सहेली है, हमसे सीनियर है और ग्रेजुएशन पास है लेकिन मेरी दोस्त बताती है कि वह बहुत अच्छी है. मैं उससे तेरा जुगाड़ बिठाता हूँ, देख वह आसानी से मानती है कि नहीं.”
“चल ठीक है, जैसा होगा वैसा देख ले, बाय. कल मिलते हैं.” ,रोहित थोड़ा सा ख़ुश होता हुआ बोला. अब जाकर उसने राहत की सांस ली.
     अगले दिन रोहित ख़ुशी-ख़ुशी कॉलेज गया और सबसे पहले सन्नी से मिला. सन्नी ने उसे उस लड़की का नंबर दिया और साथ ही उसने रोहित को यह भी बताया कि उसने अपनी दोस्त से भी बात कर ली है और उस लड़की से बात कर ली है उसने कहा है कि वह रोहित से बात करने को तैयार है लेकिन पहले वह उसे परखेगी कि वह दोस्त बनाने के लायक है या नहीं.
“तो तुम्हें क्या लगता है, मैं उसके दोस्ती के काबिल हूँ कि नहीं?” ,रोहित ने बड़ी उत्सुकता से पूछा.
“तू एकदम अच्छा है यार, टेंशन क्यों लेता है बस थोड़े अच्छे से बात करना और दोस्ती तक ही बात सीमित रखना और अभी फ़ोन मत मिलाना, शाम को मिलाना वह अपने कॉलेज में होगी.” ,सन्नी उसे समझाता हुआ बोला.
“हाँ यार मुझे तो बस दोस्ती ही करनी है और कुछ नहीं. ओके थैंक यू वैरी मच.” ,रोहित सन्नी के धन्यवाद देता हुआ बोला.
       शाम को सात बजे अपने इष्ट देव को याद करके रोहित ने फ़ोन मिलाया. फ़ोन मिलाने से पहले वह बेचैनी में तीन बार टॉयलेट जा चुका था. कॉल पहली बार में ही लग गया.
“हेल्लो, कौन?” ,उधर से एक प्यारी सी आवाज़ आई.
“हेल्लो, कौन बोल रहा है?” ,फिर वह आवाज़ फ़ोन के स्पीकर से आती हुई रोहित के कानों के पर्दों को छू गई.
रोहित ने काफ़ी हिम्मत की लेकिन वह कुछ बोल नहीं सका और उसने फ़ोन काट दिया. वह प्यारी सी आवाज़ वैसे ही उसके कानों में गूंज रही थी. यह रोहित के जीवन में पहला मौक़ा था जब वह किसी लड़की से दोस्ती करने जा रहा था हालांकि अभी तक वह उससे बोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया था. वह अभी सोच रहा था कि कैसे बात की शुरुआत करे तब तक उस नंबर से कॉल आने लगा.
अब रोहित ने भगवान को याद किया और फ़ोन रिसीव कर लिया.
“हेल्लो, आप कविता जी बोल रही हैं पटना से? मैं रोहित बोल रहा हूँ गोरखपुर से, आपका नंबर मुझे सन्नी ने दिया है अपने दोस्त सुप्रिया से लेकर. आप सुप्रिया की सहेली है ना?” ,रोहित ने हड़बड़ी में उसका परिचय पूछते हुए अपना पूरा परिचय भी बता दिया.
“जी हाँ, तो तुम ही रोहित हैं. वैसे आपने बिना पूछे पूरा इतिहास सुना दिया, क्यों, तुम्हें मेरे से बात करने में डर लग रहा है क्या?” ,कविता बड़े सामान्य से स्वर में बोली. उसकी बातों से नहीं लगा कि वह किसी अजनबी से बात कर रही है और ऐसा इसलिए नहीं लगा क्योंकि वह रोहित से सीनियर भी थी और शहर में रहने वाली एक बोल्ड लड़की भी.
“जी नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, वो...मैंने कभी किसी अनजान लड़की से बात नहीं की है ना फ़ोन पर, इसलिए.”
“अच्छा इसका मतलब, फ़ोन पर नहीं की है तो सामने तो की होगी ना, तो फिर क्यों नर्वस हो?”
“क्या पता?”
“अच्छा, यह बताओ अभी कौन सी पढाई कर रहे हो? शायद तुम बीएससी में हो ना? आगे क्या करने का ख्याल है?”
“आगे, सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई करूँगा, एसएससी या पीसीएस की परीक्षा दूंगा.”
“गुड, और बताओ तुम्हें क्या-क्या पसंद है?”
“पढना, क्रिकेट खेलना और घूमना-फिरना.”
“फ़िल्में देखते हो, किस टाइप की फ़िल्में देखना पसंद है?”
“एक्शन वाली फ़िल्में ज्यादा देखता हूँ.”
“और लव स्टोरीज?”
“हाँ, अच्छी लगती हैं, मुझे दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे सबसे ज्यादा पसंद है.”
“अच्छा, यह बताओ किसी से प्यार करते हो?”
“नहीं, किसी से नहीं करता?” ,रोहित बहुत तेज़ी से जवाब देता हुआ बोला.
“क्यों, कोई मिला ही नहीं या किसी ने भाव ही नहीं दिया?”
“नहीं, मुझे कोई पसंद ही नहीं आया.”
“अच्छा ये बताओ, तुमने इंटरव्यू देने के लिए फ़ोन किया है?” ,कविता ने रुख बदलते हुए पूछा.
“नहीं तो, क्यों? क्या हुआ??”
“क्योंकि मैं सवाल पर सवाल पूछे जा रही हूँ और तुम चुपचाप जवाब दिए जा रहे हो. तुम्हारे पास कुछ है भी कि नहीं पूछने को?” ,कविता शिकायती लहज़े में बोली.
“ओह सॉरी, आई एम् वैरी सॉरी.” ,रोहित झेंप सा गया.
“तो पूछो, मेरे बारे में भी कुछ पूछना है या ख़ुद के बारे में ही बताते रहोगे.”
अब रोहित कविता से थोड़ा सा खुला था. हालांकि वह अपनी बेवकूफी पर मन ही मन शर्म से लाल हुआ जा रहा था. रोहित ने भी कुछ बातें पूछीं और फिर आगे फ़ोन करने का वायदा कर फ़ोन रख दिया. दस मिनट तक चली इस बातचीत में रोहित ने अपने बारे में काफ़ी कुछ बता दिया था लेकिन वह कविता के बारे में केवल इतना ही जान पाया था कि वह अभी एम.ए. के पहले साल में है और टीचर बनना चाहती है. वह पटना के वीमेंस कॉलेज में पढ़ती है और उसकी तीन सहेलियां हैं और कोई लड़का दोस्त नहीं है. रोहित अभी ज़िन्दगी के इस फील्ड में कच्चा था लेकिन इतना तो जानता था कि जिस लड़की का कोई लड़का दोस्त ना हो तो उस लड़की का दोस्त बनने में भलाई होती है और यह सूत्र लड़कियों के लिए भी बराबर ही कारगर है. उसे पहली बातचीत में ही कविता के रूप में एक अच्छी दोस्त दिखने लगी थी.
      कविता से बात करने के बाद रोहित अचानक उछल पड़ा था, उसे ऐसा लगा कि आज उसका वजन कुछ कम हो गया है क्योंकि वह इस तरह पहले कभी नहीं उछला था. बहरहाल रोहित को घबराने की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि उसका वजन उसके मन में लदी भावनाओं के चलते अधिक था और अब कविता से मिल लेने के बाद वह कुछ कम हो गया था. अगले दिन वह कॉलेज में सबसे पहले सन्नी से मिला और कविता से बात कराने के लिए शुक्रिया अदा किया. आज से रोहित के लिए खुशनुमा दिन की शुरुआत थी. उसके बाद रोहित को कभी किसी ने उदास नहीं देखा, हमेशा ख़ुद में मुस्कुराते देखा. कभी-कभी वह उदास होता था लेकिन तब; जब उसकी कविता से बात नहीं होती थी या किसी बात को लेकर झगडा हो जाता. एक-दुसरे से बातें शुरू करने के कुछ दिन बाद ही उनकी दोस्ती हो गयी थी, अब यह दोस्ती धीरे-धीरे आदत बनने लगी थी. यह आदत भी कुछ महीनों बाद अपने अगले पड़ाव यानि ज़रूरत बन गयी. और फिर वो दिन भी दूर नहीं रहा जब इनकी दोस्ती को एक नया नाम मिल गया और वह ज़रूरत अब दोनों की ज़िन्दगी बन गयी थी.
                    नए साल के दुसरे महीने यानि फरवरी में दूसरे सप्ताह का कोई दिन था. यह मौसम से भी खुशगवार महिना है और इसमें दो ह्रदय के मिलन का भी शुभ मुहूर्त होता है. अमूमन फरवरी बसंत की सुन्दर ऋतु होने के साथ ही वैलेंटाइन के पर्व के लिए भी महत्वपूर्ण होता है और रोहित भी अब इन शहरी क्रियाकलापों में भी कच्चा नहीं था सो उसका मन भी किसी अनजानी चीज़ के लिए बेचैन था परन्तु इस बात को लेकर भ्रम में था कि क्या कविता में भी ऐसी कुछ ऐसी ही बेचैनी है?
“दो दिन हो गए, कविता का नंबर नहीं लग रहा है और उसने भी फ़ोन नहीं किया है. क्या बात है? कही कोई दिक्कत तो नहीं हो गयी है न उसके साथ??” ,रोहित ख़ुद से पूछता हुआ बोला.
“नहीं यार, शायद उसके घर मेहमान आ गए होंगे इसलिए वह व्यस्त होगी...लेकिन क्या इतना व्यस्त हो गयी कि मुझे फ़ोन करने की भी फुरसत नहीं मिली उसे? वैसे तो बड़ी मेरी चिंता करने वाली बनती है लेकिन दो दिन हो गए और अब तक फ़ोन नहीं किया.”
रोहित पढने बैठा था लेकिन उसका ध्यान कविता के फ़ोन ना करने के कारणों में फंसा था. कुछ देर मन लगाने की कोशिश करता लेकिन फिर घूम-फिर कर वहीं आ जाता.
“कहीं ऐसा तो नहीं, वैलेंटाइन का टाइम चल रहा है और वो किसी और के साथ...धत्त तेरी की, मैं पागल हूँ यार, ना जाने क्या-क्या सोचता हूँ?...लेकिन सन्नी बता रहा था कि उसकी दोस्त कह रही थी कि कविता बड़ी खुबसूरत है. अगर वह खुबसूरत है तो फिर तो उसके कई सारे दोस्त हो सकते हैं.” ,रोहित के दिमाग़ में कई सारी बातें चल रहीं थीं. लेकिन वह बार-बार कोशिश कर रहा था अपना ख्याल उधर से हटाये लेकिन मन को कौन रोक सकता है, उसपर विजय पाने वाला तो फिर मनस्वी हो जाता है और कलयुग में मनस्वी होना तो बड़ा कठिन है. अंत में हारकर रोहित ने अपनी क़िताब बंद की और सोने चला गया. उसने खाना नहीं खाया था और खाने का मन भी नहीं था.
                                           अगले दिन सुबह सात बजे उसकी नींद फ़ोन का रिंगटोन बजने के कारण खुली, देखा कविता का फ़ोन था; तीसरे दिन आया था. रोहित ने लपक कर फ़ोन उठा लिया लेकिन बनावटी गुस्से में बोला, “याद आ गयी हमारी? हमें लगा कि आप तो हमें भूल ही गयीं हैं.
“वो सब बातें बाद में, पहले मुझे तुम्हें एक बात बतानी है, एक काम करो. जल्दी से जाकर नहाओ और आस-पास राधा-कृष्ण का कोई मंदिर हो तो वहां जल्दी पहुँच जाओ आधे घंटे में, मैं तुम्हें आधे घंटे बाद फ़ोन करती हूँ.”
“हाँ मंदिर तो है लेकिन बात क्या है यह तो पहले बताइये.”
“वही तो बता रही हूँ, सवाल मत पूछो, जल्दी से नहा-धोकर पहुँचो आधे घंटे में, इतने देर में मैं भी तैयार हो लेती हूँ.” ,इतना कहकर कविता ने फ़ोन काट दिया.
रोहित सोच में पड़ गया कि यह कविता को क्या हो गया है जो मेरे को नहाकर मंदिर जाने को बोल कर ख़ुद भी तैयार होने चली गयी, कहीं ऐसा तो नहीं कि वह भी गोरखपुर आ गयी है मुझे सरप्राइज करने के लिए. क्योंकि उसके नानी का घर यहीं शहर के बगल में ही तो है. परन्तु रोहित ने आगे कुछ सोचने और जांच-पड़ताल करने से तैयार होना बेहतर समझा और वह जल्दी से नहाने-धोने चला गया.
                ठीक आधे घंटे बाद वह जल्दी-जल्दी मोहल्ले के सामने राधा कृष्ण के मंदिर में पहुँच गया. अभी वह फ़ोन करने वाला था कि उधर से कविता का फ़ोन आ गया.
“पहुँच गए मंदिर?”
“हाँ, बताइए क्या करना है और मंदिर क्यों बुलवाया आपने?”
“पहले जाओ और प्रसाद लेकर मंदिर में चढ़ाओ और मत्था टेको, फिर बताती हूँ.” ,फ़ोन कट गया.
रोहित ने किसी आज्ञाकारी बालक की तरह कविता के आज्ञा का पालन किया और मंदिर में पूजा कर लिया. इस बार रोहित ने फ़ोन किया पर उसका कोई जवाब न मिला. कुछ देर बाद फिर मिलाया तो इसबार कविता ने फ़ोन उठाया.
“हेल्लो, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि आप ये क्या करवा रहीं हैं मुझसे? और कुछ बता भी नहीं रहीं हैं.”
“अभी तक नहीं समझे बुद्धू?”
“नहीं, और क्या नहीं समझा?”
“आज वैलेंटाइन्स डे है?”
“तो क्या हुआ?”
“तुम्हें मुझसे कुछ कहना नहीं है?” ,कविता ने गंभीर होते हुए पूछा.
“क्या? नहीं कुछ भी तो नहीं कहना है.” ,रोहित ने जवाब दिया.
“मतलब आज के दिन तुम्हें कुछ कहना नहीं है, तुम्हारे मन में कोई बात नहीं है?”
“मन में तो बातें बहुत हैं, सबसे पहले सवाल है कि आपने दो दिन से फ़ोन क्यों बंद कर रखा था? और आज मेरी याद आई? वाह! आप तो मेरी बहुत चिंता करती हैं!!
“अच्छा, तो बस यही सवाल हैं मुझसे पूछने के लिए, तुम कितने बेवकूफ हो यार.” ,इतना कहकर कविता ने फ़ोन काट दिया.
रोहित को अजीब लगा लेकिन ख़ुद पर गुस्सा भी आया कि उसे कविता से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी. उसने फिर फ़ोन लगाया.
“हेल्लो, सॉरी कविता जी, मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आपसे सवाल नहीं पूछना चाहिए था.”
“इट्स ओके...रियली तुम मेरे बारे में कुछ नहीं सोचते?”
“क्यों नहीं, मैं आपके बारे में बहुत कुछ सोचता हूँ. सोचता हूँ आप इतनी अच्छी बातें करती हैं तो देखने में कितनी खुबसूरत होंगी. मैं चाहता हूँ कि पूरी ज़िन्दगी आपसे ही बात करता रहूँ...”
“और कुछ...और कुछ नहीं सोचते?”
“और भी ज़्यादा सोचता हूँ. सोचता हूँ कि पूछूँ...”
“क्या पूछूँ? फिर, पूछो ना.”
“यही कि आप मुझसे हमेशा ऐसे ही बात करेंगी ना?”
“बस यही पूछना चाहते हो...ओफ्फोह यार...मुझे ही बोलना पड़ेगा मतलब?” ,कविता ठंडी आह भरते हुए बोली.
“क्या बोलना पड़ेगा?” ,रोहित अपने उसी अंदाज़ में बोला.
“यही कि तुम बुद्धू हो और थोड़े से उल्लू भी. डफर! आज वैलेंटाइन्स डे है, लड़की ने तुम्हें सुबह उठकर मंदिर जाने को बोला और वो भी राधा-कृष्ण के मंदिर, तुमसे तबसे कुछ बोलने को कह रही है और पता नहीं तुम कौन से कौन से ग्रन्थ का वर्णन कर रहे हो जबकि तुम्हें प्रेम-ग्रन्थ का पाठ करना चाहिए.”
“अच्छा, तो यह बात है, मैं समझ नहीं पाया न, इसलिए. कोई बात नहीं चलिए आज वैलेंटाइन मनाएंगे, हैप्पी वैलेंटाइन्स डे!”
“ओह माय गॉड! भगवान् बचाए तुम्हें!! तुम पूछ रहे थे न कि मैंने फ़ोन क्यों किया और परेशान क्यों किया तुम्हें? मैंने यह कहने के लिए फ़ोन किया है कि ‘आई लव यू’, मैं तुम्हें प्यार करती हूँ, तुम करते हो कि नहीं जल्दी बताओ.” ,अंत में हारकर कविता ने ही रोहित को अपने प्यार का इज़हार कर दिया.
“क्या सच में? मैं भी आपसे प्यार करता हूँ लेकिन आप सच में मुझे प्यार करती हैं ना?” ,रोहित लगभग चौंकता हुआ बोला.
“रियली! और जब तुम करते हो तो पहले बोला क्यों नहीं, मैं पागल हूँ जो तब से भोंके जा रही थी मैं यही तो सुनना चाहती थी तुमसे लेकिन तुम पुरे मिटटी के माधो निकले. और सुनो मुझे ये आप-वाप मत बोला करो. तुम बोलो, अच्छा लगता है!”
“लेकिन आपको आप बोलना मुझे अच्छा लगता है.”
“लेकिन अब तुम कभी नहीं बोलोगे, समझे? ऐसा लगता है जैसे मैं कोई मैम साहब हूँ.”
“ठीक है आप को तुम बोलूँगा...मतलब तुमको तुम बोलूँगा, चलो मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ पहले सन्नी को यह खुशखबरी देनी है. आपको एक घंटे बाद फ़ोन करता हूँ.” ,रोहित फ़ोन काटने के बाद पागलों की तरह मुस्कुराते हुए कूद रहा था. आज उसका दिल और दिमाग़ दोनों सातवें आसमान पर थे. उसने रोहित को खुशखबरी दी फिर एक दो दोस्तों को और बताया और फिर पुरे दिन कविता से बात करने में बिता दिए. शाम को वह मंदिर गया और वहां उसने अपने ज़ेब ख़र्च के लिए आये रुपयों में से कुछ रूपये ग़रीब बच्चों में बाँट दिए और कुछ से आस-पड़ोस के लोगों के लिए मिठाई ख़रीद लाया. और उन्हें यह कहकर मिठाई खिलाई कि उसका एक प्रतियोगिता परीक्षा में अच्छा नम्बर आया है. पर ख़ुशी तो कुछ और ही थी और वह रोहित का दिल बखूबी महसूस कर रहा था.
                           रोहित और कविता की प्रेमकहानी चल निकली थी. वैलेंटाइन गिफ्ट के रूप में दोनों ने एक दुसरे की तस्वीर डाक से भेजी थी. दोनों ने एक-दुसरे को फोटो में भी पसंद कर लिया. कहते हैं कि अगर गाड़ी एक बार चलनी शुरू कर दे तो रफ़्तार तो पकड़ती ही जाती है. ऐसा ही हुआ, अब रोहित की कविता और कविता का रोहित हो गया था. रोहित की जब सेकंड इयर की परीक्षा ख़त्म हुई तो यह निश्चय हुआ कि रोहित कविता से मिलने उसके शहर पटना जायेगा और इसमें मदद करेगा रोहित का सबसे अज़ीज दोस्त सन्नी जो ख़ुद अपनी पुरानी क्लासमेट दोस्त सुप्रिया से मिलने जायेगा. दोनों ने एक खुबसूरत बहाना बनाया कि वे अपने इंजीनियर दोस्त से मिलने और पटना के एक कॉलेज में विज्ञान के सेमिनार में भाग लेने साथ जा रहे हैं. इसे उन्होंने अपने घर वालों को सुनाया और घर वाले ख़ुशी-ख़ुशी राज़ी हो गए, खैर छुट्टियाँ भी थीं. ख़र्च के लिए रूपये जो कुछ रोहित ने ज़ेब ख़र्च से बचाए थे और कुछ घर से मंगाकर पटना के लिए सन्नी के साथ चल निकला. दोनों तरफ ख़ुशी का माहौल था क्योंकि वे-एक दुसरे को पहली बार देखने और मिलने जा रहे थे.
                     उत्साहित रोहित सन्नी के साथ स्टेशन पर बहुत पहले ही पहुँच गया. वहां से उन्होंने हाजीपुर के लिए ट्रेन पकड़ी. ट्रेन रात को थी और अगले दिन सुबह हाजीपुर पहुँची. वहां से वह पटना के लिए निकले और सुबह आठ बजे तक एक लॉज में कमरा बुक कर के निश्चिन्त हो गए थे. जब आदमी किसी चीज़ की चाहत में होता है तो उसके पास पहुँचने के रास्ते में आने वाला हर काम और इंतज़ाम बहुत जल्दी-जल्दी करता जाता है. फ़ोन पर निश्चय हुआ कि वे गांधी मैदान के पास में मिलेंगे. फिर फ्रेश होना, नहाना-धोना और फिर सज-संवर के तैयार होना; सब काम एक घंटे के दरमयान पूरे हो गए जो कॉलेज जाने के समय दो-ढाई घंटे लगाते हैं. यह बेताबी नहीं तो और क्या थी कि रोहित ने बस की जगह ऑटो रिज़र्व करके जाने पर आमादा था लेकिन सन्नी के कहने पर वह बस से गए. हालांकि इनके पहुँचने से पहले वह दोनों पहुँच चुकीं थीं जिसकी जानकारी इन्हें मेसेज के रूप में मिल गई. बस की थोड़ी भी धीरे रफ़्तार रोहित को अन्दर तक खौला देती थी. वह मन ही मन लेट होने पर ख़ुद को और सन्नी को कोस रहा था और बस-ड्राईवर को भी भला-बुरा कह रहा था.
                                           इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुईं और वह दोनों गाँधी मैदान पहुँच चुके थे. उन्होंने फ़ोन कर उनके बैठने की जगह पूछी. सुप्रिया उन्हें पार्क के गेट के पास उन्हें लेने पहुँची. सन्नी सुप्रिया से मिल चुका था सो उसे तुरंत पहचान गया और रोहित ने भी कविता का फोटो देखा था इसलिए उसे भी पहचानने में दिक्कत नहीं हुई. कविता एक पेड़ के पास बेंच पर बैठी हुई थी. उसने दोनों से हाथ मिलाते हुए उनका हाल-चाल पूछा. रोहित और सन्नी सामने की बेंच पर बैठ गए. और फिर इनकी बात-चीत शुरू हो गयी. रोहित का ध्यान बात-चीत में कम और कविता को देखने में कुछ ज्यादा ही था क्योंकि वह बातों में केवल हूं-हाँ ही कर रहा था. एक बात उसे कुछ अटपटी सी लग रही थी जो उसके मन में अजीब सा शक भी पैदा कर रही थी लेकिन उसे वह पूछने की हिम्मत भी न होती थी. कुछ देर बाद सुप्रिया अचानक विषय बदलती हुई बोली, “यार, हम भूखे पेट ही यहाँ बकवास करते रहेंगे, कुछ खायेंगे-पीयेंगे नहीं?”
“बोलो, क्या खाया जाये? तू कुछ बोल भाई रोहित, तू तो एक दम शांत ही हो गया है.” ,सन्नी रोहित को हिलाता हुआ बोला.
“शांत नहीं हो गया, यह तो कविता दी को देख रहा है. अब हमारी दीदी हैं ही इतनी खुबसूरत कि कोई भी देखे तो देखता ही रहा जाये. हाय! नज़र ना लगे मेरी दी को.” ,सुप्रिया भी रोहित को छेड़ती हुई बोली.
रोहित और कविता दोनों एक पल को झेंप गए. लेकिन कविता का दुधिया चेहरा शायद शर्म के चलते हल्का लाल भी हो गया.
“कुछ भी ले आओ लेकिन कोल्ड-ड्रिंक ज़रूर लाना और उसमें भी कोक...” ,कविता ख़ुद को संभालती हुई बोली.
“क्योंकि रोहित को यही पसंद है, है ना!” ,सन्नी हँसता हुआ बोला.
“चुप-चाप जा, बकवास बंद कर बेवकूफ कहीं का.” ,रोहित चुप्पी तोड़ता हुआ बोला.
“चलो, मैं भी चलती हूँ.” ,सुप्रिया उठती हुई बोली. और वो दोनों खाने के लिए कुछ लाने जैसे ही आगे बढे थे कि कविता ने सुप्रिया को आवाज़ लगाई और ख़ुद उसके पास जाकर उसके कान में कुछ फुसफुसाकर फिर आकर बेंच पर बैठ गयी.
        अब रोहित का शक यक़ीन में बदल गया था. कविता विकलांग थी, उसकी एक टांग शायद पोलियो का शिकार होने के चलते बेजान थी और उसे अपनी दूसरी टांग के घुटनों पर हाथ का ज़ोर देकर चलना पड़ता था. रोहित कविता को देखने के कुछ देर बाद से यही ग़ौर कर रहा था कि कविता ऐसे क्यों बैठी है जैसे कि उसका एक पाँव ज़मीन पर अच्छी तरह से है और दूसरा पाँव हल्का सा ज़मीन को छू रहा है. कुछ देर के लिए रोहित को मानो सांप सूंघ गया था. एकदम बुत सा रोहित अपने दिमाग़ में जाने क्या नाप-तोल कर रहा था जिसमें केवल उसका मस्तिष्क उसके साथ था और हाथ-पैर सुन्न थे.
फ़ोन पर बिना शर्म और फ़र्राटे से बोलने वाली कविता थोडा सकुचाते हुए रोहित से बोली, “कैसी लग रही हूँ? फोटो की तो बड़ी तारीफ़ की थी अब सामने हूँ तो एक शब्द भी नहीं कहने को?”
“अच्छी लग रही हो.” ,रोहित ने अनमना सा जवाब दिया.
“बस अच्छी लग रही हूँ, क्या हुआ आज तुम्हारा मूड ठीक नहीं है क्या? तुम फ़ोन पर तो मुझसे मिलने को काफ़ी बेचैन थे, अब क्या हुआ? शर्म आ रही है.” ,कविता शिकायती लहज़े में बोली.
“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, बस ऐसे ही...” ,रोहित के आँखों में इस बात की बेरुखी साफ़ दिख रही थी कि कविता ने उसे आज तक नहीं बताया था कि वह पैर से विकलांग है. उसने क्या-क्या सपने बुने थे अपने और कविता के लिए. उसने तो प्यार करने के तुरंत बाद शादी के बारे में भी सोच लिया था यहाँ तक कि वह मनाली हनीमून मनाने जाना चाहता था और बच्चों के नाम भी सोच लिए थे लेकिन यह क्या? अब तो उसका सपना, सपना ही बन कर रह जायेगा. वह जिसे अपने ख्वाबों की शहज़ादी समझकर इश्क़ कर बैठा था, उसे वह कैसे सबके सामने अपनी बीवी बता सकेगा. कविता उसका क्या साथ निभाएगी जब उसे ख़ुद हर समय दुसरे के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है. सब लोग तो उसे पागल ही कहेंगे न कि एक तो उसने नियम के खिलाफ़ प्रेम-विवाह किया और ऊपर से एक विकलांग लड़की से. सब लोग उसकी मुर्खता पर हसेंगे. लेकिन वह फँस चुका था क्योंकि उसने कई वायदे किये थे कविता से. मगर वायदे किये थे उसने तो, उस कविता से किये थे जो बहुत खुबसूरत लड़की थी, यह तो खुबसूरत है लेकिन एक खोट के साथ. मैंने इससे कोई वायदा नहीं किया है, इसे तो मैं जानता ही नहीं. रोहित के दिमाग़ की मशीन काफ़ी तेज़ विचार पैदा कर रही थी और वह सब कविता के खिलाफ़ ही थे लेकिन राहत की बात यह थी कि उसका दिल अभी भी इन विचारों की ख़िलाफ़त कर रहा था.
“ओफ्फोह, यार तुमने तो हद कर दी, क्या बात है, बताओगे? एक तो तुम कुछ बोलते नहीं और कहते हो कि मूड भी बढ़िया हैं? तुम्हें मेरी क़सम कि जो बात है वह तुम बताओगे.” ,अंत में परेशान होकर कविता बोली.
“नहीं कुछ ख़ास नहीं लेकिन यह तुम्हारे पैर में...?” ,रोहित ने अपना वाक्य अधुरा ही छोड़ दिया.
“ओह! आई’म सॉरी! मुझे माफ़ करना कि मैंने तुम्हें आज तक नहीं बताया. तुम इसके लिए ही परेशान हो?” ,कविता हडबडाते हुए बोली उसका गला इसबार कुछ भर्राया हुआ था. शायद उसे अपनी ग़लती का एहसास हो रहा था और साथ ही साथ डर भी था रोहित की आने वाली प्रतिक्रिया का.
“तुमने इतनी बड़ी बात बतायी क्यों नहीं?” ,आवाज़ ऊँची थी रोहित की.
“आई’म रियली सॉरी! रोहित मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है कि तुम्हें बताया नहीं कि मेरे साथ यह दिक्कत है. दरअसल मैं शुरू में ही तुम्हें बताना चाहती थी लेकिन मुझे मौक़ा नहीं मिला फिर धीरे-धीरे तुम मुझे अच्छे लगने लगे और तुम भी मुझे बहुत ज्यादा पसंद करने लगे. मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें बताऊँ और तुम नाराज़ हो जाओ...रोहित! आई लव यू वेरी मच और मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती थी इसलिए तुम्हें बताने की हिम्मत नहीं कर पाई कि मेरे साथ यह दिक्कत है. सॉरी रोहित...आई एम वैरी सॉरी, रियली सॉरी.” ,इतना कहते ही कविता सुबकने लगी. उसकी खुबसूरत आँखों से आंसू चेहरे पर एक लकीर में बहते हुए नीचे कोर तक आ गए. उसके आँखों में लगी काजल की पतली लाइन इन आंसुओं से धुल कर हलकी हो गयी थी.
“लेकिन तुमने झूठ क्यों बोला? तुम्हें मुझे सच बता देना चाहिए था. तुम झूठी हो और धोखेबाज हो. मैं तुमसे प्यार नहीं करता.” ,रोहित अपने रुख पर कायम रहा.
“रोहित, प्लीज ऐसा मत कहो, प्लीज भगवान के लिए मान जाओ. मुझे माफ़ कर दो.” ,कविता रोती जा रही थी.
“सन्नी आएगा तो कह देना कि मुझे कॉल कर लेगा और तुम मेरा नंबर डिलीट कर देना और मुझे कभी कॉल मत करना और साथ ही भूल जाना कि तुमने किसी रोहित से बात भी की थी.” ,रोहित वहाँ से गुस्से में तेज़ी से चला गया लेकिन कुछ दूर आने के बाद उसे ऐसा लगा कि जैसे उसके पाँव भारी हो गए हैं और आगे कि तरफ बढ़ ही नहीं रहे हैं लेकिन वह रुआंसे मन से ऑटो में बैठा और अपने लॉज के तरफ लौट गया. रास्ते में उसका मन अपनी क़िस्मत पर रोने को कर रहा था लेकिन वह ख़ुद को रोकता रहा लेकिन जैसे ही वह लॉज के कमरे में पहुंचा उसके सब्र का बांध टूट गया और वह फूट-फूट कर रोने लगा. उसे कभी ख़ुद पर, कभी कविता पर बहुत ज़ोर का गुस्सा आ रहा था. क़रीब आधे घंटे तक रोने के बाद उसने देखा तो सन्नी के कई मिस्ड कॉल थे. उसने सन्नी को फ़ोन किया और उसे शाम तक आने को बोल दिया क्योंकि अब वह पटना एक मिनट भी नहीं रुकना चाहता था क्योंकि उसे पटना शहर से नफरत होने लगी थी. शाम को सन्नी ने उसे बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी ज़िद पर अड़ा रहा. फिर वह दोनों रात की ट्रेन से गोरखपुर को लौट आये.

तीन महीने बाद

रोहित अपनी पुरानी ज़िन्दगी में फिर एक बार लौटने की कोशिश कर रहा था लेकिन हर जगह उसे एक कमी खलती, वह थी कविता की कमी. वह बिस्तर जिस पर वह लेटकर कविता से रात-रात भर बातें करता, वह प्रेशर कुकर जिसमें कविता ने फ़ोन पर उसे कुकर पनीर और मैगी बनाना सिखाया था. वह  दीवाल की झड़ती पपड़िया छिपाने के लिए लगाये गए अख़बार पर लिखा कोड भाषा में कविता और अपना नाम, सब चीज़ उसे कविता की याद दिलाते थे. रोहित का दिल चाहता कि वह कविता को अपना ले लेकिन उसका दिमाग़ कहता कि ख़ुद इतना अच्छा-भला है कहाँ एक ऐसी लड़की के पीछे पड़ा है जो शरीर से निसहाय है. कविता ने कई बार रोहित को कांटेक्ट करने की कोशिश की लेकिन रोहित हर बार उससे बात करने से कतराता रहा.
                    कॉलेज खुल चुका था और रोहित अगले साल यानि थर्ड इयर में आ चुका था. जब सभी दोस्त मिले तो सबने रोहित से कविता छोड़ने का कारण पूछा. रोहित ऐसे सवालों से बचता रहा लेकिन एक दिन उसकी क्लास उसके दोस्तों ने लगा ही दी. उसे सन्नी से मालूम चला कि वह जिस कविता को कमज़ोर और निसहाय समझता था, वह कविता घर पर एक बड़ी सी कोचिंग क्लास चलाती है और महीने के पचास-साथ हज़ार रूपये उसकी आमदनी हो जाती है वह किसी पर निर्भर नहीं बल्कि वह ख़ुद अपनी मम्मी और छोटे भाई-बहन का ख़र्चा चलाती है उसके पापा प्राइवेट नौकरी में थे, एक एक्सीडेंट में मारे गए तबसे यही सब कुछ देखती है. कविता का पहला प्यार रोहित ही है क्योंकि वह पहले प्यार में विश्वास नहीं करती थी इसलिए उसने लड़कों से दोस्ती करने के बारे में कभी नहीं सोचा था. और, उसे जब इसके भोलेपन के कारण इससे प्यार हो गया तो वह उसे कभी खोना नहीं चाहती थी इसलिए वह इसे कभी सच्चाई बताने की हिम्मत न कर पाई.
सन्नी- तुझे मालूम है तेरे बार-बार कहने के चलते मैंने सुप्रिया से कहा था वह कविता को मनाये कि वह तुझसे बात करे क्योंकि कविता किसी लड़के से बात करना नहीं चाहती थी लेकिन जब उसे पता चला कि तू अच्छा लड़का है तो वह तेरे से बात करने को तैयार हुई. और तूने ये किया उसके साथ? वाह भाई! क्या प्यार करता है तू और ऊपर से कहता है कि तुम गाँव वाले रिश्तो की अहमियत ज्यादा जानते हैं. ख़ूब अहमियत जानता है तू!
                        सब दोस्तों की झिड़क ने रोहित को एक बार सोचने पर मज़बूर कर दिया कि उसका दिमाग़ जो कह रहा था वह ग़लत था और उसका दिल हमेशा से सही था. अगले दिन रोहित कॉलेज नहीं आया. सभी दोस्त परेशान हो गए. सब रोहित के बारे में एक दुसरे से पूछने लगे और उसका फ़ोन भी लगाने लगे. रोहित का फ़ोन बज तो रहा था लेकिन कोई उसे उठा नहीं रहा था. सबको शक हुआ कि कहीं उनके कोसने के कारण रोहित ने कोई ग़लत क़दम तो नहीं उठा लिया. उन्होंने निश्चय किया कि कॉलेज की छुट्टी होने पर उसके कमरे पर जाकर पता करेंगे. दोपहर क़रीब दो बजे रोहित का बैक कॉल सन्नी के फ़ोन पर आया. पता चला, वह पटना में है और कविता के साथ फ़िल्म देखने गया था इसलिए फ़ोन साइलेंट था और कॉल रिसीव नहीं कर पाया. पिछले शाम को ही वह पटना के लिए निकल गया था, वह जल्दबाज़ी में किसी को ख़बर भी नहीं कर पाया था और अपनी ग़लती ख़ुद सुधारना चाहता था. यह सुन सभी दोस्त बड़े ख़ुश हुए.
                             इस कहानी को सात साल हो गए रोहित भैया और कविता भाभी अभी पटना में रहते हैं. रोहित भैया की वहीं बैंक में नौकरी हैं और कविता भाभी अपना कोचिंग एक बड़े पब्लिक स्कूल के रूप में बदल चुकी हैं. उनका एक बेटा अर्नव है और सुना है एक लड़की भी हुई है...
                                                              - © अरुण तिवारी ‘प्रतीक’