Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)

Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)
Prem Kahaniya...

Friday 5 September 2014

लव इज़ ब्लाइंड



निर्मल तेजी से अपने अपार्टमेंट से निकलता हुआ गली के बाहर पहुंचा, वहां से ऑटो पकड़ा और पास के मेट्रो स्टेशन के लिए निकल पड़ा. आज थोड़ी से देर हो गयी थी क्योंकि रात को वह देर से सोया था इसलिए सुबह जल्दी आँख खुल नहीं पाई. घड़ी में 9.45 बज रहे थे और उसे ऑफिस में दस बजे तक पहुँच जाना होता है लेकिन अभी तो वह दिल्ली में था और नॉएडा जाते-जाते एक घंटा लग जायेगा. वह बीच में एक स्टेशन पर दूसरी मेट्रो लाइन बदलने के लिए उतरा तभी उसकी निगाह एक जाने पहचाने चेहरे पर पड़ी, वह उसका पुराना दोस्त सुमित था जो उसके अपने शहर पटना में रहता है और दोनों की कॉलेज लाइफ साथ ही गुज़री है. निर्मल अनजान बनता हुआ वहाँ से आगे बढ़ गया, लाइन में खड़ा होकर अपनी मेट्रो के आने का इंतज़ार करने लगा.
“निर्मल, अरे निर्मल, वाह क्या बात है? क्या हाल चाल है यार? कैसे हो और तुम तो हमको भूल ही गए.” ,सामने वाली लाइन में खड़ा एक आदमी निर्मल के तरफ़ हाथ फैलाकर अपने लाइन से निकल कर आता हुआ बोला.
“अरे सुमित, तू! ओहो भाई, कहाँ था यार? कितना अच्छा संयोग है कि तू मिल गया.” निर्मल अनजान बनता हुए ऐसे बोला जैसे उसने अभी कुछ देर पहले सुमित को देखा ही ना हो.
“हाँ यार, वैसे तुम यह बताओ कि अपने घर मना क्यों कर रखा है कि तुम्हारा नंबर किसी को ना दें और उससे पहले यह बताओ कि साला तुम दिल्ली चले आये और हमको बताया भी नहीं. यार तुमको याद नहीं, हमारा शुरू से मन था कि हम दिल्ली जायेंगे.”,सुमित निर्मल से शिकायत करता हुआ बोला.
“अरे सॉरी यार, वो घर पर थोड़ी सी परेशानियाँ थीं और पापाजी की तबियत भी थोड़ी सी बिगड़ गयी इसलिए बाहर नौकरी पर आना पड़ा और पढाई भी तो पूरी हो ही गयी थी बस फाइनल इयर का ही तो पेपर बचा था इसलिए सोचा कि कब तक माँ-बाप के सर पर बैठे रहेंगे इसलिए जल्दबाज़ी में चला आया और रही बात तुझे बताने कि तो तू उस समय ख़ुद परेशानी में थे.” ,निर्मल सफ़ाई देता हुआ बोला.
“खैर, यह बताओ, अंकल और आंटी कैसे हैं, सब लोग बढ़िया हैं ना? सब से मिले तो सात-आठ साल हो गए” ,निर्मल उसके घर के लोगों के बारे में पूछता हुआ बोला.
तभी मेट्रो आ गयी और दोनों एक ही बोगी में सवार हो गए, पता चला सुमित भी नॉएडा अपने मौसा जी के पास जायेगा.
“सब कोई बढ़िया है पापा ने तो खुद को अपने ऑफिस के कामों में बिजी कर लिया है, मम्मी अभी भी हमेशा बेचैन रहती हैं. तुम बताओ, तुम कैसे हो?” ,सुमित निर्मल का अपने घर का हाल-चाल सुनाता हुआ बोला.
“भला-चंगा हूँ और अभी ऑफिस जा रहा हूँ, शुरू में आया था तो काल सेण्टर में नौकरी की, धीरे-धीरे पहचान बढ़ी और अभी एक विदेशी कंपनी में मार्केटिंग हेड हूँ.”
“सैलरी-वैलरी क्या मिल रही है?”
“ठीक-ठाक है, घर का और यहाँ का ख़र्चा भी चल जाता है और कुछ बचा भी लेता हूँ”
“बचा कर रखो क्योंकि बीवी आएगी तो उसपर तो ख़र्चा करना ही पड़ेगा, रोज़-रोज़ नयी-नयी चीज़ तो लानी ही पड़ेगी”
“अरे नहीं यार, मैं तो जॉब करने वाली लड़की से शादी करूँगा जो अपना ख़र्चा ख़ुद देखेगी और मैं बस घर का ख़र्चा देखूंगा.”
“मतलब भाई साहब ने कोई लड़की भी देख ली है ऑफिस में...नाम क्या है उसका? कोई फोटो-वोटो हो मोबाइल में तो दिखाओ?”
“अरे नहीं यार देखी नहीं है लेकिन किसी ऐसे के ही इंतज़ार में हूँ.”
“चलो यार, अपना तो स्टॉप आ गया, यहीं मुझे उतरना है, फिर मुलाक़ात होगी” ,सुमित उतरने के लिए गेट के पास जाता हुआ बोला.
“अच्छा ठीक है वैसे मेरे यहाँ आओ, मैं साउथ दिल्ली में रहता हूँ, वहीं मुलाक़ात होगी.” ,निर्मल बोला.
“मैं भी धौलाकुआँ के पास ही ठहरा हूँ मामा जी के यहाँ, मिलते हैं कल रविवार है, तुम्हारी तो छुट्टी होगी?” ,सुमित उससे हाथ मिलाता हुआ बोला. तब तक मेट्रो रुकी और उसका दरवाज़ा खुल गया.
“ठीक है कल मिलते हैं बाय, टेक केयर.” ,निर्मल हाथ हिलाता हुआ बोला.
मेट्रो का दरवाज़ा बंद हो गया और गाड़ी गति पकड़ने लगी. तभी निर्मल को लगा कि सुमित उसके तरफ दौड़ रहा है और हाथों से रुकने का इशारा कर रहा है क्योंकि वह उसे शीशे से देख रहा था लेकिन मेट्रो कहाँ रुकने वाली थी. सुमित शायद इसलिए रोक रहा था क्योंकि उसने इतनी देर की बात में उससे उसका नंबर और एड्रेस लेना भूल गया था और जब यही उसके पास नहीं रहेंगे तो वह निर्मल को ढूंढेगा कैसे? निर्मल मन ही मन ख़ुश था कि सुमित ने उसका नंबर नहीं माँगा था वरना उसे देना पड़ता और वह सुमित से दोबारा नहीं मिलना चाहता था.
वह इसलिए नहीं मिलना चाहता था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि सूखे ज़ख्म फिर हरे हों, वह नहीं चाहता था कि पुरानी बातें उसकी जेहन में फिर ताज़ा हो और वह परेशान हो, वह नहीं चाहता था कि उसे फिर अपनी ग़लती का पछतावा हो और वह नहीं चाहता था कि फिर उसे याद करे जिसे वह भूल जाना चाहता था लेकिन आज सात-आठ सालों बाद भी उसका मुस्कुराता हुआ कलियों सा खिला चेहरा अब भी उसकी आँखों में तैरता रहता था.
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“बेटा, आप भी सुमित के क्लास में ही हो ना? और आपकी दोस्ती कैसे हुई? यह तो मस्ती के सिवा कुछ करता ही नहीं है और इसने आपके बारे में बताया है कि आपने फर्स्ट इयर में पूरे कॉलेज को टॉप किया है.” ,सुमित की मम्मी चाय और बिस्किट के ट्रे को निर्मल की ओर बढाती हुई बोलीं. सुमित आज निर्मल को अपनी मम्मी-पापा से मिलाने ले गया था क्योंकि वही पुरे कॉलेज में सुमित का एकलौता दोस्त था.
“अरे नहीं आंटी जी, सुमित भी पढता है और अपने सेक्शन में सबसे तेज़ स्टूडेंट है. मैं भी इसके ही क्लास में हूँ लेकिन इसने ऑनर्स नहीं लिया है और मैंने लिया है. मेरे कुछ विषय इसमें है सो हम कुछ क्लासेस साथ में करते हैं, इस तरह हमारी दोस्ती हो गयी.” ,निर्मल हँसता हुआ बोला.
“इसने गणित लिया है और मैंने गणित नहीं लिया है, मेरी बायोलॉजी है, हम फिजिक्स और केमिस्ट्री साथ में पढ़ते हैं और सुन लिया निर्मल ने क्या कहा, मैं पढता भी हूँ, समझी?” ,सुमित ने अपनी मम्मी से बोला.
“हां क्यों नहीं, पढ़ते हो. आसान सा विषय बायोलॉजी पढ़ते हो, इतना ही पढना है तो मैथ्स पढ़ के दिखाओ तो जाने?” ,पापा चुटकी लेते हुए बोले. इसपर सुमित चिढ गया और कमरे में अन्दर जाता हुआ बोला, “ठीक है, बहुत आसान है न बायोलॉजी, तभी तो मैथ्स पढ़ कर इंजीनियरिंग सब कोई कर लेता है जैसे आपने कर लिया और बायोलॉजी पढ़ कर डॉक्टर बनने में नानी याद आ जाती है ...”
“जैसे तुम्हें याद आ रही है?” एक कमरे अन्दर के कमरे से बाहर निकलकर आती सुमित की बहन शिल्पा हंसती हुई बोली.
सब हंसने लगे और सुमित और तेज़ी से कमरे में चला गया.
बेटा, तुम जाओ और उसे मनाओ. अभी वह अपने पापा और अपनी बहन पर गुस्सा है हम में से किसी से भी नहीं मानेगा.” ,मम्मी निर्मल को कमरे में जाने के लिए कहती हुईं बोलीं.
निर्मल सुमित के कमरे में चला गया. और कुछ देर के मान-मनौवल के सुमित को लेकर आया.
“बेटा, तुम मैथ्स में बहुत तेज़ हो इसमें हमें शक नहीं है क्योंकि सुमित ने तुम्हारे बारे में हमें बताया है. हम चाहते हैं कि तुम हमारी शिल्पा को होम-ट्यूशन देने आया करो और पैसे जो मांगोगे हम देने को तैयार हैं क्योंकि तुम काफ़ी होनहार हो और शिल्पा का दसवीं के बोर्ड की परीक्षा आने वाली है, और हमारे बेटा तो इसे पढ़ा नहीं सकता क्योंकि एक तो इन दोनों में पटती नहीं है और दूसरी हमारे सुमित बाबु तो मैथ्स के प्रोफेसर हैं जो दसवीं के लेवल को डिज़र्व नहीं सकते.” ,सुमित के पापा निर्मल से बोले और साथ में फिर सुमित पर कमेंट किया. इस बार सुमित बर्दाश्त कर गया.
“लेकिन अंकल, मैं...?”
“हाँ, बेटा तुम, पढ़ाओगे न शिल्पा को, पैसे की चिंता मत करो हम तुम्हें अच्छी पेमेंट कर देंगे” ,सुमित की मम्मी निवेदन करती हुई बोलीं.
“आंटी, पैसे की बात नहीं है लेकिन मैंने आज तक किसी को होम ट्यूशन नहीं पढ़ाया.”
“तो क्या हुआ? अब पढ़ा लो तुम्हारी मैथ्स के बेसिक का अभ्यास भी हो जायेगा और कुछ पॉकेट मनी भी निकल आयेगी. मैं तो अपने स्टूडेंट लाइफ में ख़ूब होम ट्यूशन देता था और मज़ा भी आता था क्योंकि रोज़ कुछ नया खाने-पीने को मिलता था स्टूडेंट्स के घरों पर.” ,सुमित के पापा हँसते हुए बोले.
“ओके अंकल! मैं आ जाऊंगा.”
“ओहो, खाने के नाम पर तैयार हो गया भुक्खड़ कहीं का?” ,सुमित ठिठोली करता हुआ बोला. मम्मी ने आँखें तरेरी तो वह शांत हो गया लेकिन निर्मल को मन ही मन बड़ा गुस्सा आया.
आज निर्मल ख़ुश भी था और आश्चर्यचकित भी कि उन्होंने इतनी आसानी से और पहली मुलाक़ात में ही मुझे पढ़ाने के लिए कह दिया. वैसे चलो अच्छा हुआ कुछ तो पॉकेट ख़र्चे का प्रबंध हुआ क्योंकि सारा ख़र्चा तो सुमित ही करता है अब मैं भी कुछ ख़र्च कर लिया करूंगा.
पूर्वनिश्चित समय के अनुसार निर्मल अगले दिन शाम को छह बजे सुमित के घर पहुँच गया. सुमित अपने मोहल्ले के दोस्तों के साथ खेलने बाहर गया हुआ था और घर पर सुमित कि मम्मी और शिल्पा थीं. निर्मल ने आंटी को नमस्ते कहा और बोला कि मैं ट्यूशन पढ़ाने आ गया हूँ. सुमित की मम्मी ने उसे शिल्पा के कमरे में भेज दिया और शिल्पा को आवाज़ लगा दी कि कॉपी-क़िताब खोल कर बैठ जाये निर्मल पढ़ाने आ गया है. जब निर्मल शिल्पा के कमरे में गया तो वो मम्मी के आज्ञा अनुसार पढ़ने के मुद्रा में बैठी हुई थी. निर्मल को शिल्पा का यह रूप अच्छा लगा क्योंकि वह इस समय शिक्षक था और शिक्षक विद्यार्थी को शांत और पढ़ने के लिए तैयार मुद्रा में देखे तो हमेशा ख़ुश होता है. आज इंट्रोडक्टरी क्लास थी सो दोनों ने एक दुसरे का परिचय किया और निर्मल पहला प्रभाव छोड़ने की दिशा में प्रयास करते हुए शिल्पा को डेढ़ घंटे का लेक्चर पिला गया. और लेक्चर दमदार होने के साथ ज्ञानपूर्ण और रोचक भी था. शिल्पा पर तो प्रभाव शुरू में ही जम गया और ज़्यादा देर तक पढ़ा देने और जाते वक़्त उसकी मम्मी को पहले ही दिन शिल्पा की कई सारी कमज़ोरियाँ और मजबूती बता देना पूर्ण प्रभावकारी साबित हुआ. उसी दिन से निर्मल के विद्वता और सूझ-बूझ की तारीफ होने लगी. केवल शिल्पा को पढ़ाने वाला निर्मल अब उस मोहल्ले के तीन और घरों में ट्यूशन पढ़ाने लगा जो उसके ग़रीब बाप के लिए एक राहत की बात थी. वो प्राइवेट फैक्ट्री में सुपरवाइजर थे और आठ से दस हज़ार महीने के कमा लेते थे.
                    इधर शिल्पा अब पढ़ने में मन लगाने लगी थी हालांकि वह होशियार पहले से ही थी. उसके इस परिवर्तन के कारण अब निर्मल सुमित के घर में घर कर गया था. सब उसे बड़ा प्यार और इज्ज़त देते थे. बोर्ड की परीक्षा हुई और फिर छुट्टियाँ शुरू हो गयीं लेकिन निर्मल को बोला गया कि वह अपनी ट्यूशन चालू रखे. शिल्पा भी राज़ी हो गयी जो कभी छुट्टियों में कॉपी-क़िताबों की आलमारी में ताला लगा देती थी. अलबत्ता शिल्पा का राज़ी होना अनायास ही नहीं था, यह उसके किशोर मन में हो रहे बदलाव का नतीज़ा था जो उसे अब नव-यौवन के तरफ ले जा रहा था. कुछ ही महीनों में पढ़ते-पढ़ते उसे कब निर्मल के तरफ खिंचाव महसूस होने लगा था, वह भी नहीं जानती थी. यद्यपि इस उम्र के इस आकर्षण को किशोर प्यार समझते हैं लेकिन मनोवैज्ञानिक इसे बस हार्मोन-परिवर्तन ही कहते हैं और जिसे चलताऊ भाषा में पप्पी लव कहते हैं. शिल्पा भी इसी दौर में थी. जबकि, अपने युवा-अवस्था में आ गया निर्मल शिल्पा के मन की बातों से अनजान था लेकिन उसे एकदिन सच्चाई से साबका पड़ ही गया. हुआ यों कि निर्मल आज थोड़ा सा सज-धज के आया था क्योंकि उसे शाम को सुमित के साथ एक दोस्त की बहन की शादी में जाना था. शिल्पा तो आकर्षण में पड़ने के बाद रोज़ ही सजती-संवरती थी. शिल्पा के कमरे में घुसते ही आज निर्मल को कुछ बदला-बदला सा लगा, सब चीज़ आज बड़ी ही खूबसूरती से रखी गयी थी और बिस्तर पर धुली रंगीन चादर थी और कुर्सी-टेबल अपने जगह पर और टेबल पर की क़िताबें सजी हुई थीं. शिल्पा तो ख़ुद को संवारती ही थी, आज कुछ ज़्यादा ही सजी हुई थी. शायद आज वह अपने आकर्षण को प्यार का शक्ल दे देना चाहती थी. निर्मल इन सब परिवर्तनों का मतलब नहीं समझ पाया था. वह उसे पढ़ाने बैठा. आज कल वह उसे गणित के एडवांस प्रश्नों का हल सिखा रहा था, और अंग्रेज़ी ग्रामर भी पढ़ाता था. इधर शिल्पा का आज कुछ कर गुज़रने का निर्णय और उधर निर्मल का सजा-संवरा दिखना, उसे अपने इज़हार-ए-आशिक़ी के लिए मचला गया.
                                            निर्मल उसे गणित के अलज़ेब्रा की कुछ समस्याएं हल करने का तरीक़ा बताने लगा. आज शिल्पा कॉपी और क़िताबों में कम और निर्मल के चेहरे को ज़्यादा देख रही थी. निर्मल बार-बार उसे क़िताबों पर देखने को कह रहा था. उसे पढ़ते हुए आधे घंटे हुए ही थे कि शिल्पा ने हिम्मत कर ही डाली. उसने निर्मल का हाथ पकड़ लिया. शिल्पा नए ज़माने की लड़की थी जो टीवी और सिनेमा देख कर बड़ी हुई थी जिसके कारण उसकी सोच आज़ाद थी. उसने उसे बीच में ही धीरे से कहा, “निर्मल!...सॉरी मैं अभी आपको निर्मल सर नहीं बोल सकती. मुझे आपसे कुछ कहना है. और आपको जो जवाब देना होगा वो बाद में दे दीजियेगा.” शिल्पा एक धड़क में बोलती गयी. फिर एक गहरी सांस लेते हुए उसने निर्मल के हाथों को कस कर दबाया और बोली ,”मैं आपसे प्यार करती हूँ और तबसे करती हूँ जबसे आपको देखा है. आप बहुत ही प्यारे हैं और सबसे पहले लड़के हैं जो मुझे इतना अच्छा लगा है.”
निर्मल सुनकर सन्न रह गया, उसने सपने में भी ऐसा कुछ नहीं सोचा था. हाँ, यह ज़रूर था कि शिल्पा भी उसे अच्छी लगती थी लेकिन अपने से कम उम्र की और दोस्त की बहन होने के कारण उसने उसके बारे में कुछ ऐसा नहीं सोचा था. लेकिन शिल्पा के इज़हार ने उसको अन्दर तक हिला कर रख दिया. उसका मन हुआ कि वह शिल्पा को हाँ कर दे लेकिन उसने शिल्पा को अपने दिल की बातें न बताते हुए उसे कुछ यूँ टाल गया, “देखो शिल्पा, यह ग़लत है. मैं तुम्हारे भाई का दोस्त हूँ और सीनियर हूँ. तुम्हारे मम्मी-पापा ने बड़े विश्वास से मुझसे तुम्हें पढ़ाने भेजा है और अगर मैं ऐसा करूँगा तो यह बहुत ही बुरा होगा.”
शिल्पा बात की गंभीरता से अनजान बनते हुए बोली, “चिल यार, तुम इतने दब्बू हैं मैंने सोचा नहीं था. आप जानते हैं न कि एवरीथिंग इज़ फ़ेयर इन लव एंड वॉर.” ,शिल्पा की बातों में उम्र का कोई लिहाज़ नहीं था.
“बट, तुम प्यार में हो, मैं नहीं. इसीलिए मैं तुम्हारा कोई जवाब नहीं दे सकता. सो भूल जाओ ये सब. ”
“अरे! तो मैं कहाँ कह रही हूँ कि तुम अभी जवाब दो, जब तुम्हें मन हो तब दे देना बट ऐसे मना ना करो कि नहीं करोगे.”
निर्मल ने इसके आगे कुछ नहीं कहा और वह चुपचाप शिल्पा की कॉपी पर आज का होमवर्क देने लगा. क्योंकि आज उसे एक घंटे भी पढ़ाने का मन नहीं था.
                                   रोज़ कि तरह वह शिल्पा को पढ़ाने गया लेकिन आज शिल्पा का रूप बदला नहीं था वह वैसे ही सज संवर के बैठी थी. इस तरह यह हर दिन की आदत बन गयी. दूसरी ओर निर्मल के भी रंग रूप में निखार आने लगा था. इस बात को क़रीब एक महीने ही बीते थे कि शिल्पा का सब्र जवाब दे गया. आज वह आर या पार का रास्ता चुनना चाहती थी या तो निर्मल उसे साफ़ मना कर दे या हाँ कर दे. परन्तु उसके मन में इस बात का डर भी था कि अगर निर्मल ने मना कर दिया तो वह क्या करेगी. हमेशा कि तरह निर्मल पढ़ाने आया. शिल्पा आज फ़िल्मी अंदाज़ में कुछ करने का मन बना चुकी थी. निर्मल के कमरे के अन्दर आते ही उसने दरवाज़ा बंद किया और उसे ज़ोर से बाहों में जकड़ लिया. अभी वह कुछ कहता इससे पहले उसने उसके होठों पर एक चुम्बन अंकित कर दिया. चुम्बन की समय सीमा लम्बी थी सो उसका प्रभाव भी पड़ा. निर्मल इस अचानक हुए हमले के बाद हक्का-बक्का था. और यह आक्रमण उसे चारों खाने चित करने के लिए काफ़ी था.
“अब बताओ क्या चाहिए तुम्हें? मैं बच्ची नहीं हूँ. अगर किस दे सकती हूँ तो और कुछ भी आता है मुझे. लेकिन मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए निर्मल. रिप्लाई मी.” ,शिल्पा की आवाज़ में उग्रता थी. वह आशिक़ जैसी बात कर रही थी. इस सब का कारण अभी उसका बाली उम्र में होना था.
“शिल्पा, तुम पागल हो. मैं नहीं कर सकता तुमसे प्यार. और मैंने तुम्हें जवाब देने के बारे में सोचा नहीं है.” ,निमल ख़ुद को संभालता हुआ बोला.
“यानि कि तुम किसी और से प्यार करते हो? कोई गर्ल फ्रेंड है तुम्हारी??”
“नहीं मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है पर मैं तुम्हें कैसे हाँ कर दूं.”
“तुम्हें करना पड़ेगा, तुम हाँ बोलो या कल से मुझे पढ़ाने आना छोड़ दोगे. मैं मम्मी से बात कर लुंगी.”
“ठीक है, अभी पढाई कर लें. प्यार की बातें बाद में होंगी.”
“नहीं अभी मुझे पढ़ने का मन नहीं है. तुम जाओ. मेरी तबियत ख़राब है. लेकिन कल या तो हाँ, नहीं तो मत आना.” ,शिल्पा निर्मल को लगभग कमरे से बाहर करती हुई बोली. अभी भी वह गुस्से से लाल थी क्योंकि उसे अफ़सोस इस बात का कम हो रहा था कि निर्मल ने उसे मना कर दिया था बल्कि इसका ज़्यादा था कि अगर वह एक बार अपने स्कूल में किसी के तरफ देखती तो उसकी कई कहानियां इस एक महीने में बन गयी होती लेकिन उसे निर्मल पसंद आया तो उसने उसे भाव ही नहीं दिया.
                                            अगले दिन शाम को शिल्पा की निगाह दरवाज़े पर ही थी. उसे डर था कि अगर निर्मल नहीं आया तो क्या होगा. और पछतावा भी था अपने कल के बुरे बर्ताव का. लेकिन कुछ देर बाद ही उसे ख़ुशी हुई कि कल का उसका फ़िल्मी उपाय काम कर गया था. निर्मल आज उसके लिए चॉकलेट ले आया था और उसने कल के लिए शिल्पा को माफ़ भी कर दिया था. यह मन ही मन शिल्पा के लिए निर्मल का हाँ ही था. फिर यह प्यार की गाड़ी कब स्पीड पकड़ती गयी, ना इन दोनों को मालूम हुआ और ना ही सुमित और उसके मम्मी-पापा को इन दोनों के लफड़े का शक हुआ.
                             अब शिल्पा दसवीं अच्छे नंबरों से पास करके ग्यारहवीं में आ गयी थी. निर्मल अब भी पढ़ाने आता था. क्योंकि उसके बदौलत ही उसने परीक्षा में अच्छे नंबर लाये थे हालांकि वह एक और काम में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही थी वो था प्यार. एक बहुत ही दीगर बात है जो हमेशा मानी जाती है कि जब कोई मनचला आज़ादी पाता है तो वह और भी ज़्यादा मनमौज़ियाँ करता है और जब दो मनचले मिल जाएँ तो सोने पर सुहागा हो जाता है. शिल्पा और निर्मल के साथ यही हुआ. कभी-कभी जब घर पर सुमित नहीं होता और शिल्पा की मम्मी इन दोनों पर घर को छोड़ बाहर चली जातीं तो इनका प्रेम-हंस का जोड़ा मस्तियों के सागर में ख़ूब अठखेलियाँ करता था, जो देखते-देखते इस हद तक बढ़ गया कि दोनों कब मर्यादा की सीमा लाँघ गए मालूम न चला. और जब एक बार चस्का लग जाये तो वह आसानी से नहीं छूटता. जो इन दोनों के साथ भी हुआ. इनके मानसिक सम्बन्ध अब शारीरिक अवस्था में आ गये थे.
                सब ठीक-ठाक ही चल रहा था कि अचानक ग्रह-नक्षत्रों ने अपना चाल बदलना शुरू कर दिया. निर्मल और सुमित के फाइनल इयर के परीक्षा में चार-पाँच महीने ही बाक़ी थे. इसलिए अब सुमित ने निर्मल से शिल्पा को दो घंटे ना पढ़ा कर एक घंटे ही पढ़ाने को कहा क्योंकि उसे ख़ुद के लिए पढ़ना चाहिए था. वैसे निर्मल को यह मंज़ूर नहीं था कि वो शिल्पा का समय काट कर अपनी पढाई करे. पहले तो उसने यह कह कर सुमित को मना कर दिया कि वह मैनेज कर लेगा लेकिन सुमित ज़िद करने लगा. बहरहाल, उसके ज़िद का कारण भी था क्योंकि उसे शक हो गया था कि इन दोनों के बीच कुछ है लेकिन बिना किसी सुबूत के वह अपनी दोस्ती ख़राब नहीं करना चाहता था. जब सुमित के मम्मी ने निर्मल को एक घंटे पढ़ाने के लिए कहा तो उसे मन मसोस कर वही करना पड़ा.
                                       निर्मल एक घंटे पढ़ाता था और इसका दुःख दोनों को था. एक दिन निर्मल जैसे ही कमरे में गया शिल्पा ने दरवाज़ा बंद कर के उसे ज़ोर से जकड़ लिया और सिसक-सिसक कर रोने लगी. निर्मल जब तक कुछ समझता शिल्पा के रोने की आवाज़ थोड़ी और तेज़ होने लगी. निर्मल उसे चुप कराता हुआ उससे रोने का कारण पूछने लगा. लगभग पांच मिनट के मशक्कत के बाद शिल्पा चुप हुई लेकिन उसके बाद जो उसने बताया वह अब निर्मल के पसीने छुड़ाने के लिए काफ़ी था. निर्मल और शिल्पा के प्यार की सीमा पार करने का नतीज़ा था आज उनके बीच कोई तीसरा भी आने को तैयार होने लगा था.
“ऐसा कैसे हो सकता है यार? हमने तो कभी कोई चूक की ही नहीं है. हमें चल कर एक बार डॉक्टर को दिखाना चाहिए. क़िताब में लिखी और तुम्हारी सहेली की कही बात पर क्या भरोसा है?”
“यार तीन महीने हो गए मेरे पीरियड्स को रुके हुए, मैंने अपने एक टीचर से भी पूछा था किसी और का नाम लेकर, वो भी यही कह रही थीं कि डॉक्टर को दिखा लेना ठीक रहेगा वरना दिक्कत हो जाएगी.”,शिल्पा की आवाज़ में चिंता थी.
कुछ देर सोचने के बाद उन दोनों से निर्णय किया कि वो डॉक्टर के पास जायेंगे. शिल्पा स्कूल से बंक कर के डॉक्टर के पास जाएगी और निर्मल उसका वहां इंतज़ार करेगा. वो शहर के एक प्राइवेट क्लिनिक में गए जो ऐसे केसों के लिए मशहूर था. वहां उन्हें जिस चीज़ का शक था वही हुआ. शिल्पा तीन महीने से प्रेग्नेंट थी. दोनों को काटो तो ख़ून नहीं. वहां यह निश्चय हुआ कि वह तीन-चार दिनों बाद दस हज़ार रूपये का प्रबंध कर के आयें, दो तीन घंटे में एबॉर्शन करके छुट्टी दे दी जाएगी. उन्हें थोड़ी सी राहत मिली थी लेकिन अब दस हज़ार रूपये का कहाँ जुगाड़ हो, वो बड़े परेशान थे.
                                               जैसे तैसे जुगाड़ कर के निर्मल ने पैसे इकट्ठे कर लिए. उन्होंने सोमवार के दिन एबॉर्शन कराने को सोचा. अब निर्मल और शिल्पा को कुछ सुकून मिला था. उन्होंने अब ये सोच लिया था कि ऐसी ग़लती वो दुबारा कभी नहीं करेंगे. रविवार के दिन शिल्पा अपनी सहेली निधि के यहाँ अगले दिन के लिए प्रोग्राम बनाने के लिए गयी थी. उसकी मम्मी घर की सफ़ाई करते हुए शिल्पा का कमरा भी साफ करने लगी. कॉपी-क़िताब इधर-उधर बिखरे पड़े थे सो उन्होंने सहेज कर टेबल पर रखना शुरू कर दिया. यह शायद शिल्पा और निर्मल की फूटी क़िस्मत थी जो उसने अपनी कॉपी में ही डॉक्टर की रिपोर्ट रखी थी वो उसकी मम्मी को दिख गयी. उन्होंने जब रिपोर्ट देखी तो उनके पाँव तले ज़मीन खिसक गयी. वो गुस्से से तिलमिला गयीं और उन्होंने उसके पापा को भी बता दिया क्योंकि वो घर पर ही मौजूद थे. अब शिल्पा के लौटने का इंतज़ार होने लगा. इधर शिल्पा इन सब से बेखबर कल के लिए बहाना ढूंढने गयी थी. जब वह लौटी उसपर मम्मी-पापा दोनों के गुस्से का मानों पहाड़ टूट गया. दोनों उसे काटने दौड़े, गनीमत थी सुमित क्रिकेट खेलने गया था. उनका सबसे पहला सवाल था कि ये तूने क्या किया? किसका पाप तूने अपने पेट में रखा है? तूने कुल और परिवार की मर्यादा तोड़ने में डर नहीं लगा? सवालों से घिरी शिल्पा चुप थी. उसे सूझ नहीं रहा था कि वह क्या जवाब दे. उसने धीरे से कहा, “ग़लती हो गयी, मुझे माफ़ कर दो, फिर कभी नहीं होगा.”
उसके पापा गुस्से से उसे एक थप्पड़ लगाते हुए बोले, “ग़लती हो गयी. तू बच्ची है? इसीलिए तुझे महंगे स्कूल में पढ़ा रहे हैं, इसीलिए तुझे कोचिंग लगवाई है? आज तू मेरे हाथों से नहीं बचेगी.”
उसकी मम्मी बीच में आती हुई शिल्पा को ले जाकर उसके कमरे में बंद कर दिया और साथ में यह नसीहत दे दी कि उस लड़के का नाम बता दे जिसने तेरे साथ यह किया है. शिल्पा सब कुछ सह सकती थी लेकिन वह निर्मल का नाम नहीं बता सकती थी. सुमित आया लेकिन उसे यह सब बातें पता नहीं चलीं. शिल्पा को पूरे दिन और रात इस बात के लिए टॉर्चर किया गया कि वह लड़के का नाम बता दे उसे माफ़ कर दिया जायेगा और वो ख़ुद डॉक्टर के पास ले जाकर उसका एबॉर्शन करा देंगे लेकिन शिल्पा राज़ी नहीं हुई.
              अगला दिन भी बीत गया. उसकी सहेली निधि दिन भर ढूंढ कर शाम को शिल्पा के घर उसके आज ना आने और डॉक्टर के पास न जाने का कारण पूछने आई. उसने जब सुना कि घर पर सब कोई जान गया है तो वह उलटे पांव लौटने को हुई तब तक शिल्पा की मम्मी ने उसे पकड़ लिया. उसकी मम्मी ने उससे भी उस लड़के के बारे में पूछा लेकिन वह चालाकी दिखाते हुए बोली, “आंटी, मैं तो ऐसा कुछ जानती ही नहीं, शिल्पा ने मुझे ऐसा कुछ नहीं बताया और हमारे स्कूल में तो बहुत सारे लड़के हैं मैं किसको कह सकती हूँ?”
शिल्पा की मम्मी ने उससे कहा, “बेटा, एक काम कर दो, तुम्हारा बड़ा एहसान होगा, तुम शिल्पा से एक बार चिरौरी कर के उस लड़के के बारे में पूछ लो हम उसको माफ़ कर देंगे और उसे कभी नहीं डांटेंगे, प्लीज़.”
निधि तो सब कुछ जानती थी लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं बताना चाहती थी क्योंकि शिल्पा ने उसे मना किया था. निर्मल को सुमित ने तीन-चार दिन शिल्पा की तबीयत ख़राब का बहाना बना कर नहीं आने को बोल दिया था सो वह इन बातों से अनजान था. निधि जब शिल्पा से मिलने गयी तो वह रोने लगी. शिल्पा परेशान थी कि उसके पास कोई चारा नहीं बचा था सिवाय निर्मल का नाम बताने के. और वह अपने स्कूल के किसी लड़के के इतना करीब भी नहीं थी जो उसका नाम बता दे. साथ ही किसी निर्दोष को फंसाना नहीं चाहती थी. शिल्पा और निधि कुछ उपाय सोच ही रहे थे कि उसके पापा ऑफिस से लौट आये. वो आते ही शिल्पा के कमरे में गए. उन्होंने निधि से गुस्से में बोला, “तुम इसकी सहेली हो न, तुम सब जानती हो इसकी बातें. लेकिन कोई बात नहीं, समझा दो इसे कल तक इसने अगर उसका नाम नहीं बताया न, तो फिर मैं दूसरी दवाई भी जानता हूँ. कैसे भी कर के उसका नाम तो उगलवा ही लूँगा फिर उस लड़के का क्या हश्र होगा कोई नहीं सोच सकता. अभी बता देगी तो वह लड़का भी अपने बुरे नतीज़े से बच जायेगा और ये भी. समझा दो इसे.” वो इतना कहकर चले गए. लेकिन यह शिल्पा और उसके सहेली को डराने के लिए काफ़ी था. उसकी सहेली को ऐसा लगा कि कहीं अंकल मेरे पापा को ना कह दें कि मैं इसमें शिल्पा की कोई मदद कर रही हूँ. अब वह भी उसे बताने के लिए दबाव देने लगी. शिल्पा ने कुछ देर सोचने के बाद अगले दिन सब कुछ बताने के लिए हामी भर दी. उसकी सहेली को लगा कि कल शिल्पा बता देगी तो उसकी टेंशन दूर हो जाएगी सो उसने आकर उसकी मम्मी को बता दिया कि वह कल उस लड़के का नाम-पता बता देगी.
           अगले दिन रोज़ की तरह सुबह शिल्पा के पापा अपने बरामदे में टहल रहे थे और साथ ही वह योजना बना रहे थे कि उस लड़के को कैसे सबक सिखाया जाये कि बदला भी निकल जाये और किसी को कानों-कान ख़बर ना हो. क़रीब आठ बज गए थे लेकिन शिल्पा की तरफ से कोई सुगबुगाहट नहीं थी. इसलिए पापा ने उसकी मम्मी को आवाज़ लगाई कि वह शिल्पा से उस लड़के के बारे में पूछे, उनसे पता चला कि अब तक शिल्पा सोयी हुई है और जब सुबह वह उसके कमरे में सफ़ाई करने गई थी उसने दरवाज़ा नहीं खोला था और कोई जवाब नहीं दिया था. उसके पापा ने गुस्साते हुए शिल्पा के कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी. उन्होंने काफ़ी आवाज़ लगाई लेकिन जब शिल्पा ने दरवाज़ा नहीं खोला तो उन्होंने तोड़ने की कोशिश की. काफ़ी मशक्कत के बाद कुण्डी को उखाड़ने के बाद किवाड़ खुला लेकिन एक बार भी शिल्पा ने उठकर दरवाज़ा नहीं खोला...और खोलती भी कैसे? वह प्यार में ख़ुद को लुटा चुकी थी इसलिए अब उसके पास और होश नहीं बचा था.


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निर्मल इधर बेचैनी में शिल्पा का लिखा ख़त खोल रहा था जो निधि ने अभी कुछ देर पहले दिया था. शिल्पा से निर्मल को बात किये हुए कई दिन हो गये थे. इसलिए वह ख़ुश भी था चलो ख़त के माध्यम से तो उससे बात करने का मौक़ा मिला था. उसने जैसे ही चिट्ठी पढ़नी शुरू की उसे ऐसा लगा कि उसका सब कुछ लुट गया हो और कोई भयंकर सज़ा मिली हो शायद सज़ा-ये-मौत. वह ख़ामोश था आँखें आंसुओं से डबडबा गयी थीं और दिमाग़ में शिल्पा के लिखे सारे शब्द घूम रहे थे.


Dear Nirmal, I love u so much.
                           मैं बहुत परेशान हूँ. मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ? पापा-मम्मी और भैया सबको मेरे pregnant होने की बात मालूम चल गयी है. पापा-मम्मी ने तो कसम खा ली है कि वो उस लड़के को जरूर सबक सिखायेंगे जिसने मेरे साथ ऐसा किया है. But I can’t see कि मेरे सामने तुम्हें बदनाम किया जाये. मेरे पापा का गुस्सा बहुत dangerous है. वो तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते हैं.
लेकिन वो तब करेंगे जब मैं उन्हें तुम्हारा नाम बताउंगी. मैंने सुना है अगर आप किसी को true love करते हो तो उसकी खुशी के लिए आपको कुछ भी करने के लिए तैयार रहना चाहिए. And I love you beyond every boundary. और तुम खुश तभी रहोगे जब मैं तुम्हारा नाम नहीं बताउंगी. इसके लिए मेरे पास एक solution है suicide. I am extremely sorry कि मैं तुम्हें बीच में ही छोड़ के जा रही हूँ, लेकिन इसलिए क्योंकि तुम ख़ुश रहो. साथ ही तुम्हें मुझे promise करना होगा कि कभी तुम खुद को guilty नहीं मानोगे. And जब यह letter पढ़ रहे होगे उसके बाद कभी भी किसी को सच्चाई बताने की कोशिश नहीं करोगे वरना मेरा sacrifice बेकार जाएगा.
मैं तुम्हारे दिल में हमेशा रहूंगी. I will be forever for you my jaanu Nirmal. I LOVE U.
GOOD BYE,                                                                                          
                                                                              Ur sweetheart,  Shilpa.


                                        शिल्पा सही में आज भी निर्मल की है और उसके दिल में ही बसी है. सही कहते हैं प्यार अँधा होता है...’लव इज़ ब्लाइंड.’


                                   -© अरुण तिवारी ‘प्रतीक’



                                                                                              

Thursday 13 February 2014

ये मोहब्बत



भी-अभी रोहित ने गोरखपुर के एक मशहूर कॉलेज सेंट एंड्रूज में स्नातक में दाखिला लिया था. नया कॉलेज, नए लोग और नयी जगह सब कुछ उसे बड़ा अच्छा और सुन्दर लगता था. हाँ, अभी उसके कॉलेज में बहुत दोस्त नहीं थे और अभी वह ज़्यादा दोस्ती करने के मिज़ाज में भी नहीं था क्योंकि जब उसे गाँव से भेजा गया था तो माँ-पिता जी ने सख्त हिदायत दी थी कि शहर के लड़कों से दोस्ती-यारी कम ही रखना. क्योंकि गाँवों में यह आम सोच है कि शहर के लड़के-लड़कियां और वहां की आबो-हवा नए-नए गए गाँव के लड़कों को बिगाड़ देती है. रोहित गाँव से पहली बार शहर गया था सो उसे इस बात का विशेष ख्याल रखना था कि किसी शहरी की बुरी नज़र न लग जाये. गाँव का होने के चलते उसके रहन-सहन और बोल-चाल में ठेठ देहातीपन झलकता था. यह बात जींस-टीशर्ट वालों के लिए हंसी-मज़ाक का विषय बनती थी. रोहित को शुरुआती दिनों में बड़ी दिक्कत हुई और कई बार उसे सबके सामने ज़लील होना पड़ा. जब रोहित ख़ुद को देहाती पुकारे जाने से तंग आ गया तो उसने ख़ुद को शहरी रंग-ढंग के हिसाब से ढालने में ही अपनी भलाई समझी. वह शहरी मिज़ाज में कपड़ों और बोल-चाल से तो बदल गया लेकिन उसके मन और दिमाग़ अभी भी गाँव के जैसे संस्कारिक और कोमल बने रहे.
                         एक साल बीत जाने के बाद रोहित अपनी जीतोड़ मेहनत के चलते अपने क्लास के तेज़ विद्यार्थियों में शुमार होने लगा. इस सफलता से ख़ुश होकर उसके पिता जी ने उसे एक नया मोबाइल दिलाया. नया मोबाइल और उसका उस दौर में बढ़ता चलन और ज़रूरतें, रोहित के लिए सब कुछ एक सपने के जैसा था. अब उसके कई दोस्त थे और वह उनके साथ ख़ुश था लेकिन एक दिन ऐसे ही दोस्तों के बीच हो रही गपशप ने रोहित के एक बात सोचने पर मज़बूर कर दिया. हुआ यों कि उसके पांच दोस्तों की मंडली में से एक दोस्त ने रोहित से एक चीज़ के बारे में बात छेड़ी जिसके बारे में उसने कोई ख़ास ध्यान ही नहीं दिया था.
“अच्छा रोहित, ये बता कि यार तेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है? क्योंकि तुझसे कई बार पूछ चुके और तू बात घुमा-फिरा देता है.” ,उसके एक दोस्त सन्नी ने पूछा.
“अबे होगी ये हमें बताना नहीं चाहता वरना हम इसे उससे मिलाने के लिए ज़िद करेंगे न इसलिए.” ,एक और दोस्त बोला.
“हो सकता है कोई थी और उससे इसका ब्रेकअप हो गया होगा, हा...हा...हा...” दूसरा दोस्त हँसता हुआ बोला.
“अरे नहीं यार, मुझे इन सब चीजों में यकीन नहीं है और मैं प्यार करना भी नहीं चाहता क्योंकि मैंने फ़िल्मों में देखा है उन्हें कितनी दिक्कतें उठानी पड़ती है और ये सब बेकार की चीज़ें हैं इसमें केवल समय की बर्बादी है और कुछ नहीं.” ,रोहित सबका एक बार ही जवाब देता हुआ बोला.
“हाँ भई, जब मिला नहीं तो अंगूर खट्टे ही होंगे.” ,युवराज चुटकी लेता हुआ बोला.
“अच्छा सुन, अगर तुझे कभी लगे कि तेरा मन भी कभी-कभी अपने किसी ख़ास से अपनी फीलिंग्स बताने के लिए करता है लेकिन तू बता नहीं पता क्योंकि वो ऐसी भावनाएं होती हैं जो तू अपने मम्मी-पापा या हम दोस्तों से बताने में हिचकिचाता है तो मुझे संपर्क कर लेना, तुम्हारा लव-गुरु दोस्त हमेशा हाज़िर रहेगा.” ,सन्नी थोड़ा सा गंभीर होता हुआ बोला.
“अबे, हम तो भूल ही गए थे अपने कॉलेज का लव-गुरु तो अपना दोस्त ही है...अच्छा सन्नी, ये बता वो दिव्या वाले मैटर का क्या हुआ तूने उसकी दोस्ती कराई की नहीं उस नकचढ़े इमरान से.” ,उन दोस्तों में से ही एक ने  सन्नी से किसी पुराने केस के बारे में पूछा जो सन्नी के पास दो महीने पहले आया था.
“अबे उसे तो मैंने ही पटा लिया, क्योंकि इमरान से दोस्ती कराते-कराते मुझको दिव्या अच्छी लगने लगी. ये देख उसका नंबर है मेरे फ़ोन में.” ,सन्नी अपना फ़ोन निकालकर सबको दिखाते हुए बोला.
फिर सारे दोस्त आपस में हंसी-मज़ाक में व्यस्त हो गए लेकिन सन्नी के कहे गए वो कुछ अलफ़ाज़ रोहित के कानों में उसके घर जाने तक गूंजते रहे. वह जब रात को सोया तो उसे ना जाने क्यों ऐसा लगने लगा कि आज उसका मिज़ाज कुछ भारी सा है और उसके मन में कुछ बोझ पड़ा है जिसे वह चाहता है कि हल्का करे. रोहित देर रात तक करवटें बदलता रहा और अपने मन में यह गुणा-भाग करता रहा कि क्या सच में उसके दिल में भी ऐसे खयालात आते हैं जिन्हें उसने कई बार कोशिश की कि वह अपने माँ-पिता जी को बताये मगर उनके प्रति डर और सम्मान के चलते नहीं बता पाया. सही में, उसने तो कई बार अपनी बातें अपने चचेरे भाइयों को बतानी चाही, अपने चाचा को बतानी चाही लेकिन वह बता नहीं पाया. वैसे एक बार बताया तो था उसने दुसरे के खेत से दोस्तों के साथ मज़े-मज़े में गाजर चुराकर खाने की बात लेकिन क्या हुआ, बड़ी दीदी ने पिता जी को बता दिया और जम कर मार पड़ी थी. ऐसे कई बार उसने अपने दिल की बातें बतायीं और उसके चचेरे भाइयों ने उसे पुरे गाँव में फैला कर ख़ूब मज़े लिए. ऐसे ही उसे एक बार बगल के गाँव की एक लड़की बहुत अच्छी लगने लगी तो उसने राहुल से बताया और उसने इस बात का ढिंढोरा पीट दिया था और उसकी ख़ूब फज़ीहत हुई थी. इसलिए रोहित ने निश्चय कर लिया था कि अपने दिल की बात किसी को नहीं बताएगा. धीरे-धीरे वह और कामों में इतना मशगूल हो गया कि अपने एहसासों की उसे कभी फ़िक्र ही ना हुई लेकिन सन्नी के उन बातों ने उसे फिर से यह सोचने को विवश कर दिया था कि क्या मुझे भी अपनी बातें बताने के लिए किसी की ज़रूरत है. रोहित इस बात को लेकर कुछ गंभीर हो गया था.
                         रोज़ की तरह वही दिनचर्या चलने लगी. वही पढाई और दोस्तों के साथ मस्ती लेकिन एक दिन किसी बात को लेकर रोहित बड़ा उदास था शायद उसे सर ने प्रोजेक्ट तैयार नहीं होने के कारण डांट दिया था. अपने कमरे में बैठा रोहित ऐसा महसूस कर रहा था कि जैसे अभी उसे रोना आ जायेगा. उसने फ़ोन निकाला और सन्नी को कॉल लगा दिया.
“हेल्लो सन्नी! यार तू सही कह रहा था, मुझे किसी की ज़रूरत है जिसे मैं अपनी फीलिंग्स बता सकूँ, तूने कहा था कि मुझे कभी ऐसा लगे तो मै तुझे कांटेक्ट करूँ तू मेरी मदद करेगा. अब यार...”
“हा...हा...मैं समझ गया कि तुझे अब ऐसा लगता है कि तुझे किसी की ज़रूरत है मतलब किसी दोस्त की, चल मैं तेरा दोस्त हूँ, तू मुझे ही बता दे.” ,सन्नी हँसता हुआ बोला.
“यार मज़ाक मत कर, मेरी हेल्प कर प्लीज़” ,रोहित विनती करता हुआ बोला.
“अच्छा मेरे भाई, ठीक है कल आ मैं तुझे नंबर दूंगा और समझा दूंगा कि कैसे बात करनी है. ओके? मेरी बेस्ट फ्रेंड की एक सहेली है, हमसे सीनियर है और ग्रेजुएशन पास है लेकिन मेरी दोस्त बताती है कि वह बहुत अच्छी है. मैं उससे तेरा जुगाड़ बिठाता हूँ, देख वह आसानी से मानती है कि नहीं.”
“चल ठीक है, जैसा होगा वैसा देख ले, बाय. कल मिलते हैं.” ,रोहित थोड़ा सा ख़ुश होता हुआ बोला. अब जाकर उसने राहत की सांस ली.
     अगले दिन रोहित ख़ुशी-ख़ुशी कॉलेज गया और सबसे पहले सन्नी से मिला. सन्नी ने उसे उस लड़की का नंबर दिया और साथ ही उसने रोहित को यह भी बताया कि उसने अपनी दोस्त से भी बात कर ली है और उस लड़की से बात कर ली है उसने कहा है कि वह रोहित से बात करने को तैयार है लेकिन पहले वह उसे परखेगी कि वह दोस्त बनाने के लायक है या नहीं.
“तो तुम्हें क्या लगता है, मैं उसके दोस्ती के काबिल हूँ कि नहीं?” ,रोहित ने बड़ी उत्सुकता से पूछा.
“तू एकदम अच्छा है यार, टेंशन क्यों लेता है बस थोड़े अच्छे से बात करना और दोस्ती तक ही बात सीमित रखना और अभी फ़ोन मत मिलाना, शाम को मिलाना वह अपने कॉलेज में होगी.” ,सन्नी उसे समझाता हुआ बोला.
“हाँ यार मुझे तो बस दोस्ती ही करनी है और कुछ नहीं. ओके थैंक यू वैरी मच.” ,रोहित सन्नी के धन्यवाद देता हुआ बोला.
       शाम को सात बजे अपने इष्ट देव को याद करके रोहित ने फ़ोन मिलाया. फ़ोन मिलाने से पहले वह बेचैनी में तीन बार टॉयलेट जा चुका था. कॉल पहली बार में ही लग गया.
“हेल्लो, कौन?” ,उधर से एक प्यारी सी आवाज़ आई.
“हेल्लो, कौन बोल रहा है?” ,फिर वह आवाज़ फ़ोन के स्पीकर से आती हुई रोहित के कानों के पर्दों को छू गई.
रोहित ने काफ़ी हिम्मत की लेकिन वह कुछ बोल नहीं सका और उसने फ़ोन काट दिया. वह प्यारी सी आवाज़ वैसे ही उसके कानों में गूंज रही थी. यह रोहित के जीवन में पहला मौक़ा था जब वह किसी लड़की से दोस्ती करने जा रहा था हालांकि अभी तक वह उससे बोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया था. वह अभी सोच रहा था कि कैसे बात की शुरुआत करे तब तक उस नंबर से कॉल आने लगा.
अब रोहित ने भगवान को याद किया और फ़ोन रिसीव कर लिया.
“हेल्लो, आप कविता जी बोल रही हैं पटना से? मैं रोहित बोल रहा हूँ गोरखपुर से, आपका नंबर मुझे सन्नी ने दिया है अपने दोस्त सुप्रिया से लेकर. आप सुप्रिया की सहेली है ना?” ,रोहित ने हड़बड़ी में उसका परिचय पूछते हुए अपना पूरा परिचय भी बता दिया.
“जी हाँ, तो तुम ही रोहित हैं. वैसे आपने बिना पूछे पूरा इतिहास सुना दिया, क्यों, तुम्हें मेरे से बात करने में डर लग रहा है क्या?” ,कविता बड़े सामान्य से स्वर में बोली. उसकी बातों से नहीं लगा कि वह किसी अजनबी से बात कर रही है और ऐसा इसलिए नहीं लगा क्योंकि वह रोहित से सीनियर भी थी और शहर में रहने वाली एक बोल्ड लड़की भी.
“जी नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, वो...मैंने कभी किसी अनजान लड़की से बात नहीं की है ना फ़ोन पर, इसलिए.”
“अच्छा इसका मतलब, फ़ोन पर नहीं की है तो सामने तो की होगी ना, तो फिर क्यों नर्वस हो?”
“क्या पता?”
“अच्छा, यह बताओ अभी कौन सी पढाई कर रहे हो? शायद तुम बीएससी में हो ना? आगे क्या करने का ख्याल है?”
“आगे, सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई करूँगा, एसएससी या पीसीएस की परीक्षा दूंगा.”
“गुड, और बताओ तुम्हें क्या-क्या पसंद है?”
“पढना, क्रिकेट खेलना और घूमना-फिरना.”
“फ़िल्में देखते हो, किस टाइप की फ़िल्में देखना पसंद है?”
“एक्शन वाली फ़िल्में ज्यादा देखता हूँ.”
“और लव स्टोरीज?”
“हाँ, अच्छी लगती हैं, मुझे दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे सबसे ज्यादा पसंद है.”
“अच्छा, यह बताओ किसी से प्यार करते हो?”
“नहीं, किसी से नहीं करता?” ,रोहित बहुत तेज़ी से जवाब देता हुआ बोला.
“क्यों, कोई मिला ही नहीं या किसी ने भाव ही नहीं दिया?”
“नहीं, मुझे कोई पसंद ही नहीं आया.”
“अच्छा ये बताओ, तुमने इंटरव्यू देने के लिए फ़ोन किया है?” ,कविता ने रुख बदलते हुए पूछा.
“नहीं तो, क्यों? क्या हुआ??”
“क्योंकि मैं सवाल पर सवाल पूछे जा रही हूँ और तुम चुपचाप जवाब दिए जा रहे हो. तुम्हारे पास कुछ है भी कि नहीं पूछने को?” ,कविता शिकायती लहज़े में बोली.
“ओह सॉरी, आई एम् वैरी सॉरी.” ,रोहित झेंप सा गया.
“तो पूछो, मेरे बारे में भी कुछ पूछना है या ख़ुद के बारे में ही बताते रहोगे.”
अब रोहित कविता से थोड़ा सा खुला था. हालांकि वह अपनी बेवकूफी पर मन ही मन शर्म से लाल हुआ जा रहा था. रोहित ने भी कुछ बातें पूछीं और फिर आगे फ़ोन करने का वायदा कर फ़ोन रख दिया. दस मिनट तक चली इस बातचीत में रोहित ने अपने बारे में काफ़ी कुछ बता दिया था लेकिन वह कविता के बारे में केवल इतना ही जान पाया था कि वह अभी एम.ए. के पहले साल में है और टीचर बनना चाहती है. वह पटना के वीमेंस कॉलेज में पढ़ती है और उसकी तीन सहेलियां हैं और कोई लड़का दोस्त नहीं है. रोहित अभी ज़िन्दगी के इस फील्ड में कच्चा था लेकिन इतना तो जानता था कि जिस लड़की का कोई लड़का दोस्त ना हो तो उस लड़की का दोस्त बनने में भलाई होती है और यह सूत्र लड़कियों के लिए भी बराबर ही कारगर है. उसे पहली बातचीत में ही कविता के रूप में एक अच्छी दोस्त दिखने लगी थी.
      कविता से बात करने के बाद रोहित अचानक उछल पड़ा था, उसे ऐसा लगा कि आज उसका वजन कुछ कम हो गया है क्योंकि वह इस तरह पहले कभी नहीं उछला था. बहरहाल रोहित को घबराने की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि उसका वजन उसके मन में लदी भावनाओं के चलते अधिक था और अब कविता से मिल लेने के बाद वह कुछ कम हो गया था. अगले दिन वह कॉलेज में सबसे पहले सन्नी से मिला और कविता से बात कराने के लिए शुक्रिया अदा किया. आज से रोहित के लिए खुशनुमा दिन की शुरुआत थी. उसके बाद रोहित को कभी किसी ने उदास नहीं देखा, हमेशा ख़ुद में मुस्कुराते देखा. कभी-कभी वह उदास होता था लेकिन तब; जब उसकी कविता से बात नहीं होती थी या किसी बात को लेकर झगडा हो जाता. एक-दुसरे से बातें शुरू करने के कुछ दिन बाद ही उनकी दोस्ती हो गयी थी, अब यह दोस्ती धीरे-धीरे आदत बनने लगी थी. यह आदत भी कुछ महीनों बाद अपने अगले पड़ाव यानि ज़रूरत बन गयी. और फिर वो दिन भी दूर नहीं रहा जब इनकी दोस्ती को एक नया नाम मिल गया और वह ज़रूरत अब दोनों की ज़िन्दगी बन गयी थी.
                    नए साल के दुसरे महीने यानि फरवरी में दूसरे सप्ताह का कोई दिन था. यह मौसम से भी खुशगवार महिना है और इसमें दो ह्रदय के मिलन का भी शुभ मुहूर्त होता है. अमूमन फरवरी बसंत की सुन्दर ऋतु होने के साथ ही वैलेंटाइन के पर्व के लिए भी महत्वपूर्ण होता है और रोहित भी अब इन शहरी क्रियाकलापों में भी कच्चा नहीं था सो उसका मन भी किसी अनजानी चीज़ के लिए बेचैन था परन्तु इस बात को लेकर भ्रम में था कि क्या कविता में भी ऐसी कुछ ऐसी ही बेचैनी है?
“दो दिन हो गए, कविता का नंबर नहीं लग रहा है और उसने भी फ़ोन नहीं किया है. क्या बात है? कही कोई दिक्कत तो नहीं हो गयी है न उसके साथ??” ,रोहित ख़ुद से पूछता हुआ बोला.
“नहीं यार, शायद उसके घर मेहमान आ गए होंगे इसलिए वह व्यस्त होगी...लेकिन क्या इतना व्यस्त हो गयी कि मुझे फ़ोन करने की भी फुरसत नहीं मिली उसे? वैसे तो बड़ी मेरी चिंता करने वाली बनती है लेकिन दो दिन हो गए और अब तक फ़ोन नहीं किया.”
रोहित पढने बैठा था लेकिन उसका ध्यान कविता के फ़ोन ना करने के कारणों में फंसा था. कुछ देर मन लगाने की कोशिश करता लेकिन फिर घूम-फिर कर वहीं आ जाता.
“कहीं ऐसा तो नहीं, वैलेंटाइन का टाइम चल रहा है और वो किसी और के साथ...धत्त तेरी की, मैं पागल हूँ यार, ना जाने क्या-क्या सोचता हूँ?...लेकिन सन्नी बता रहा था कि उसकी दोस्त कह रही थी कि कविता बड़ी खुबसूरत है. अगर वह खुबसूरत है तो फिर तो उसके कई सारे दोस्त हो सकते हैं.” ,रोहित के दिमाग़ में कई सारी बातें चल रहीं थीं. लेकिन वह बार-बार कोशिश कर रहा था अपना ख्याल उधर से हटाये लेकिन मन को कौन रोक सकता है, उसपर विजय पाने वाला तो फिर मनस्वी हो जाता है और कलयुग में मनस्वी होना तो बड़ा कठिन है. अंत में हारकर रोहित ने अपनी क़िताब बंद की और सोने चला गया. उसने खाना नहीं खाया था और खाने का मन भी नहीं था.
                                           अगले दिन सुबह सात बजे उसकी नींद फ़ोन का रिंगटोन बजने के कारण खुली, देखा कविता का फ़ोन था; तीसरे दिन आया था. रोहित ने लपक कर फ़ोन उठा लिया लेकिन बनावटी गुस्से में बोला, “याद आ गयी हमारी? हमें लगा कि आप तो हमें भूल ही गयीं हैं.
“वो सब बातें बाद में, पहले मुझे तुम्हें एक बात बतानी है, एक काम करो. जल्दी से जाकर नहाओ और आस-पास राधा-कृष्ण का कोई मंदिर हो तो वहां जल्दी पहुँच जाओ आधे घंटे में, मैं तुम्हें आधे घंटे बाद फ़ोन करती हूँ.”
“हाँ मंदिर तो है लेकिन बात क्या है यह तो पहले बताइये.”
“वही तो बता रही हूँ, सवाल मत पूछो, जल्दी से नहा-धोकर पहुँचो आधे घंटे में, इतने देर में मैं भी तैयार हो लेती हूँ.” ,इतना कहकर कविता ने फ़ोन काट दिया.
रोहित सोच में पड़ गया कि यह कविता को क्या हो गया है जो मेरे को नहाकर मंदिर जाने को बोल कर ख़ुद भी तैयार होने चली गयी, कहीं ऐसा तो नहीं कि वह भी गोरखपुर आ गयी है मुझे सरप्राइज करने के लिए. क्योंकि उसके नानी का घर यहीं शहर के बगल में ही तो है. परन्तु रोहित ने आगे कुछ सोचने और जांच-पड़ताल करने से तैयार होना बेहतर समझा और वह जल्दी से नहाने-धोने चला गया.
                ठीक आधे घंटे बाद वह जल्दी-जल्दी मोहल्ले के सामने राधा कृष्ण के मंदिर में पहुँच गया. अभी वह फ़ोन करने वाला था कि उधर से कविता का फ़ोन आ गया.
“पहुँच गए मंदिर?”
“हाँ, बताइए क्या करना है और मंदिर क्यों बुलवाया आपने?”
“पहले जाओ और प्रसाद लेकर मंदिर में चढ़ाओ और मत्था टेको, फिर बताती हूँ.” ,फ़ोन कट गया.
रोहित ने किसी आज्ञाकारी बालक की तरह कविता के आज्ञा का पालन किया और मंदिर में पूजा कर लिया. इस बार रोहित ने फ़ोन किया पर उसका कोई जवाब न मिला. कुछ देर बाद फिर मिलाया तो इसबार कविता ने फ़ोन उठाया.
“हेल्लो, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि आप ये क्या करवा रहीं हैं मुझसे? और कुछ बता भी नहीं रहीं हैं.”
“अभी तक नहीं समझे बुद्धू?”
“नहीं, और क्या नहीं समझा?”
“आज वैलेंटाइन्स डे है?”
“तो क्या हुआ?”
“तुम्हें मुझसे कुछ कहना नहीं है?” ,कविता ने गंभीर होते हुए पूछा.
“क्या? नहीं कुछ भी तो नहीं कहना है.” ,रोहित ने जवाब दिया.
“मतलब आज के दिन तुम्हें कुछ कहना नहीं है, तुम्हारे मन में कोई बात नहीं है?”
“मन में तो बातें बहुत हैं, सबसे पहले सवाल है कि आपने दो दिन से फ़ोन क्यों बंद कर रखा था? और आज मेरी याद आई? वाह! आप तो मेरी बहुत चिंता करती हैं!!
“अच्छा, तो बस यही सवाल हैं मुझसे पूछने के लिए, तुम कितने बेवकूफ हो यार.” ,इतना कहकर कविता ने फ़ोन काट दिया.
रोहित को अजीब लगा लेकिन ख़ुद पर गुस्सा भी आया कि उसे कविता से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी. उसने फिर फ़ोन लगाया.
“हेल्लो, सॉरी कविता जी, मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आपसे सवाल नहीं पूछना चाहिए था.”
“इट्स ओके...रियली तुम मेरे बारे में कुछ नहीं सोचते?”
“क्यों नहीं, मैं आपके बारे में बहुत कुछ सोचता हूँ. सोचता हूँ आप इतनी अच्छी बातें करती हैं तो देखने में कितनी खुबसूरत होंगी. मैं चाहता हूँ कि पूरी ज़िन्दगी आपसे ही बात करता रहूँ...”
“और कुछ...और कुछ नहीं सोचते?”
“और भी ज़्यादा सोचता हूँ. सोचता हूँ कि पूछूँ...”
“क्या पूछूँ? फिर, पूछो ना.”
“यही कि आप मुझसे हमेशा ऐसे ही बात करेंगी ना?”
“बस यही पूछना चाहते हो...ओफ्फोह यार...मुझे ही बोलना पड़ेगा मतलब?” ,कविता ठंडी आह भरते हुए बोली.
“क्या बोलना पड़ेगा?” ,रोहित अपने उसी अंदाज़ में बोला.
“यही कि तुम बुद्धू हो और थोड़े से उल्लू भी. डफर! आज वैलेंटाइन्स डे है, लड़की ने तुम्हें सुबह उठकर मंदिर जाने को बोला और वो भी राधा-कृष्ण के मंदिर, तुमसे तबसे कुछ बोलने को कह रही है और पता नहीं तुम कौन से कौन से ग्रन्थ का वर्णन कर रहे हो जबकि तुम्हें प्रेम-ग्रन्थ का पाठ करना चाहिए.”
“अच्छा, तो यह बात है, मैं समझ नहीं पाया न, इसलिए. कोई बात नहीं चलिए आज वैलेंटाइन मनाएंगे, हैप्पी वैलेंटाइन्स डे!”
“ओह माय गॉड! भगवान् बचाए तुम्हें!! तुम पूछ रहे थे न कि मैंने फ़ोन क्यों किया और परेशान क्यों किया तुम्हें? मैंने यह कहने के लिए फ़ोन किया है कि ‘आई लव यू’, मैं तुम्हें प्यार करती हूँ, तुम करते हो कि नहीं जल्दी बताओ.” ,अंत में हारकर कविता ने ही रोहित को अपने प्यार का इज़हार कर दिया.
“क्या सच में? मैं भी आपसे प्यार करता हूँ लेकिन आप सच में मुझे प्यार करती हैं ना?” ,रोहित लगभग चौंकता हुआ बोला.
“रियली! और जब तुम करते हो तो पहले बोला क्यों नहीं, मैं पागल हूँ जो तब से भोंके जा रही थी मैं यही तो सुनना चाहती थी तुमसे लेकिन तुम पुरे मिटटी के माधो निकले. और सुनो मुझे ये आप-वाप मत बोला करो. तुम बोलो, अच्छा लगता है!”
“लेकिन आपको आप बोलना मुझे अच्छा लगता है.”
“लेकिन अब तुम कभी नहीं बोलोगे, समझे? ऐसा लगता है जैसे मैं कोई मैम साहब हूँ.”
“ठीक है आप को तुम बोलूँगा...मतलब तुमको तुम बोलूँगा, चलो मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ पहले सन्नी को यह खुशखबरी देनी है. आपको एक घंटे बाद फ़ोन करता हूँ.” ,रोहित फ़ोन काटने के बाद पागलों की तरह मुस्कुराते हुए कूद रहा था. आज उसका दिल और दिमाग़ दोनों सातवें आसमान पर थे. उसने रोहित को खुशखबरी दी फिर एक दो दोस्तों को और बताया और फिर पुरे दिन कविता से बात करने में बिता दिए. शाम को वह मंदिर गया और वहां उसने अपने ज़ेब ख़र्च के लिए आये रुपयों में से कुछ रूपये ग़रीब बच्चों में बाँट दिए और कुछ से आस-पड़ोस के लोगों के लिए मिठाई ख़रीद लाया. और उन्हें यह कहकर मिठाई खिलाई कि उसका एक प्रतियोगिता परीक्षा में अच्छा नम्बर आया है. पर ख़ुशी तो कुछ और ही थी और वह रोहित का दिल बखूबी महसूस कर रहा था.
                           रोहित और कविता की प्रेमकहानी चल निकली थी. वैलेंटाइन गिफ्ट के रूप में दोनों ने एक दुसरे की तस्वीर डाक से भेजी थी. दोनों ने एक-दुसरे को फोटो में भी पसंद कर लिया. कहते हैं कि अगर गाड़ी एक बार चलनी शुरू कर दे तो रफ़्तार तो पकड़ती ही जाती है. ऐसा ही हुआ, अब रोहित की कविता और कविता का रोहित हो गया था. रोहित की जब सेकंड इयर की परीक्षा ख़त्म हुई तो यह निश्चय हुआ कि रोहित कविता से मिलने उसके शहर पटना जायेगा और इसमें मदद करेगा रोहित का सबसे अज़ीज दोस्त सन्नी जो ख़ुद अपनी पुरानी क्लासमेट दोस्त सुप्रिया से मिलने जायेगा. दोनों ने एक खुबसूरत बहाना बनाया कि वे अपने इंजीनियर दोस्त से मिलने और पटना के एक कॉलेज में विज्ञान के सेमिनार में भाग लेने साथ जा रहे हैं. इसे उन्होंने अपने घर वालों को सुनाया और घर वाले ख़ुशी-ख़ुशी राज़ी हो गए, खैर छुट्टियाँ भी थीं. ख़र्च के लिए रूपये जो कुछ रोहित ने ज़ेब ख़र्च से बचाए थे और कुछ घर से मंगाकर पटना के लिए सन्नी के साथ चल निकला. दोनों तरफ ख़ुशी का माहौल था क्योंकि वे-एक दुसरे को पहली बार देखने और मिलने जा रहे थे.
                     उत्साहित रोहित सन्नी के साथ स्टेशन पर बहुत पहले ही पहुँच गया. वहां से उन्होंने हाजीपुर के लिए ट्रेन पकड़ी. ट्रेन रात को थी और अगले दिन सुबह हाजीपुर पहुँची. वहां से वह पटना के लिए निकले और सुबह आठ बजे तक एक लॉज में कमरा बुक कर के निश्चिन्त हो गए थे. जब आदमी किसी चीज़ की चाहत में होता है तो उसके पास पहुँचने के रास्ते में आने वाला हर काम और इंतज़ाम बहुत जल्दी-जल्दी करता जाता है. फ़ोन पर निश्चय हुआ कि वे गांधी मैदान के पास में मिलेंगे. फिर फ्रेश होना, नहाना-धोना और फिर सज-संवर के तैयार होना; सब काम एक घंटे के दरमयान पूरे हो गए जो कॉलेज जाने के समय दो-ढाई घंटे लगाते हैं. यह बेताबी नहीं तो और क्या थी कि रोहित ने बस की जगह ऑटो रिज़र्व करके जाने पर आमादा था लेकिन सन्नी के कहने पर वह बस से गए. हालांकि इनके पहुँचने से पहले वह दोनों पहुँच चुकीं थीं जिसकी जानकारी इन्हें मेसेज के रूप में मिल गई. बस की थोड़ी भी धीरे रफ़्तार रोहित को अन्दर तक खौला देती थी. वह मन ही मन लेट होने पर ख़ुद को और सन्नी को कोस रहा था और बस-ड्राईवर को भी भला-बुरा कह रहा था.
                                           इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुईं और वह दोनों गाँधी मैदान पहुँच चुके थे. उन्होंने फ़ोन कर उनके बैठने की जगह पूछी. सुप्रिया उन्हें पार्क के गेट के पास उन्हें लेने पहुँची. सन्नी सुप्रिया से मिल चुका था सो उसे तुरंत पहचान गया और रोहित ने भी कविता का फोटो देखा था इसलिए उसे भी पहचानने में दिक्कत नहीं हुई. कविता एक पेड़ के पास बेंच पर बैठी हुई थी. उसने दोनों से हाथ मिलाते हुए उनका हाल-चाल पूछा. रोहित और सन्नी सामने की बेंच पर बैठ गए. और फिर इनकी बात-चीत शुरू हो गयी. रोहित का ध्यान बात-चीत में कम और कविता को देखने में कुछ ज्यादा ही था क्योंकि वह बातों में केवल हूं-हाँ ही कर रहा था. एक बात उसे कुछ अटपटी सी लग रही थी जो उसके मन में अजीब सा शक भी पैदा कर रही थी लेकिन उसे वह पूछने की हिम्मत भी न होती थी. कुछ देर बाद सुप्रिया अचानक विषय बदलती हुई बोली, “यार, हम भूखे पेट ही यहाँ बकवास करते रहेंगे, कुछ खायेंगे-पीयेंगे नहीं?”
“बोलो, क्या खाया जाये? तू कुछ बोल भाई रोहित, तू तो एक दम शांत ही हो गया है.” ,सन्नी रोहित को हिलाता हुआ बोला.
“शांत नहीं हो गया, यह तो कविता दी को देख रहा है. अब हमारी दीदी हैं ही इतनी खुबसूरत कि कोई भी देखे तो देखता ही रहा जाये. हाय! नज़र ना लगे मेरी दी को.” ,सुप्रिया भी रोहित को छेड़ती हुई बोली.
रोहित और कविता दोनों एक पल को झेंप गए. लेकिन कविता का दुधिया चेहरा शायद शर्म के चलते हल्का लाल भी हो गया.
“कुछ भी ले आओ लेकिन कोल्ड-ड्रिंक ज़रूर लाना और उसमें भी कोक...” ,कविता ख़ुद को संभालती हुई बोली.
“क्योंकि रोहित को यही पसंद है, है ना!” ,सन्नी हँसता हुआ बोला.
“चुप-चाप जा, बकवास बंद कर बेवकूफ कहीं का.” ,रोहित चुप्पी तोड़ता हुआ बोला.
“चलो, मैं भी चलती हूँ.” ,सुप्रिया उठती हुई बोली. और वो दोनों खाने के लिए कुछ लाने जैसे ही आगे बढे थे कि कविता ने सुप्रिया को आवाज़ लगाई और ख़ुद उसके पास जाकर उसके कान में कुछ फुसफुसाकर फिर आकर बेंच पर बैठ गयी.
        अब रोहित का शक यक़ीन में बदल गया था. कविता विकलांग थी, उसकी एक टांग शायद पोलियो का शिकार होने के चलते बेजान थी और उसे अपनी दूसरी टांग के घुटनों पर हाथ का ज़ोर देकर चलना पड़ता था. रोहित कविता को देखने के कुछ देर बाद से यही ग़ौर कर रहा था कि कविता ऐसे क्यों बैठी है जैसे कि उसका एक पाँव ज़मीन पर अच्छी तरह से है और दूसरा पाँव हल्का सा ज़मीन को छू रहा है. कुछ देर के लिए रोहित को मानो सांप सूंघ गया था. एकदम बुत सा रोहित अपने दिमाग़ में जाने क्या नाप-तोल कर रहा था जिसमें केवल उसका मस्तिष्क उसके साथ था और हाथ-पैर सुन्न थे.
फ़ोन पर बिना शर्म और फ़र्राटे से बोलने वाली कविता थोडा सकुचाते हुए रोहित से बोली, “कैसी लग रही हूँ? फोटो की तो बड़ी तारीफ़ की थी अब सामने हूँ तो एक शब्द भी नहीं कहने को?”
“अच्छी लग रही हो.” ,रोहित ने अनमना सा जवाब दिया.
“बस अच्छी लग रही हूँ, क्या हुआ आज तुम्हारा मूड ठीक नहीं है क्या? तुम फ़ोन पर तो मुझसे मिलने को काफ़ी बेचैन थे, अब क्या हुआ? शर्म आ रही है.” ,कविता शिकायती लहज़े में बोली.
“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, बस ऐसे ही...” ,रोहित के आँखों में इस बात की बेरुखी साफ़ दिख रही थी कि कविता ने उसे आज तक नहीं बताया था कि वह पैर से विकलांग है. उसने क्या-क्या सपने बुने थे अपने और कविता के लिए. उसने तो प्यार करने के तुरंत बाद शादी के बारे में भी सोच लिया था यहाँ तक कि वह मनाली हनीमून मनाने जाना चाहता था और बच्चों के नाम भी सोच लिए थे लेकिन यह क्या? अब तो उसका सपना, सपना ही बन कर रह जायेगा. वह जिसे अपने ख्वाबों की शहज़ादी समझकर इश्क़ कर बैठा था, उसे वह कैसे सबके सामने अपनी बीवी बता सकेगा. कविता उसका क्या साथ निभाएगी जब उसे ख़ुद हर समय दुसरे के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है. सब लोग तो उसे पागल ही कहेंगे न कि एक तो उसने नियम के खिलाफ़ प्रेम-विवाह किया और ऊपर से एक विकलांग लड़की से. सब लोग उसकी मुर्खता पर हसेंगे. लेकिन वह फँस चुका था क्योंकि उसने कई वायदे किये थे कविता से. मगर वायदे किये थे उसने तो, उस कविता से किये थे जो बहुत खुबसूरत लड़की थी, यह तो खुबसूरत है लेकिन एक खोट के साथ. मैंने इससे कोई वायदा नहीं किया है, इसे तो मैं जानता ही नहीं. रोहित के दिमाग़ की मशीन काफ़ी तेज़ विचार पैदा कर रही थी और वह सब कविता के खिलाफ़ ही थे लेकिन राहत की बात यह थी कि उसका दिल अभी भी इन विचारों की ख़िलाफ़त कर रहा था.
“ओफ्फोह, यार तुमने तो हद कर दी, क्या बात है, बताओगे? एक तो तुम कुछ बोलते नहीं और कहते हो कि मूड भी बढ़िया हैं? तुम्हें मेरी क़सम कि जो बात है वह तुम बताओगे.” ,अंत में परेशान होकर कविता बोली.
“नहीं कुछ ख़ास नहीं लेकिन यह तुम्हारे पैर में...?” ,रोहित ने अपना वाक्य अधुरा ही छोड़ दिया.
“ओह! आई’म सॉरी! मुझे माफ़ करना कि मैंने तुम्हें आज तक नहीं बताया. तुम इसके लिए ही परेशान हो?” ,कविता हडबडाते हुए बोली उसका गला इसबार कुछ भर्राया हुआ था. शायद उसे अपनी ग़लती का एहसास हो रहा था और साथ ही साथ डर भी था रोहित की आने वाली प्रतिक्रिया का.
“तुमने इतनी बड़ी बात बतायी क्यों नहीं?” ,आवाज़ ऊँची थी रोहित की.
“आई’म रियली सॉरी! रोहित मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है कि तुम्हें बताया नहीं कि मेरे साथ यह दिक्कत है. दरअसल मैं शुरू में ही तुम्हें बताना चाहती थी लेकिन मुझे मौक़ा नहीं मिला फिर धीरे-धीरे तुम मुझे अच्छे लगने लगे और तुम भी मुझे बहुत ज्यादा पसंद करने लगे. मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें बताऊँ और तुम नाराज़ हो जाओ...रोहित! आई लव यू वेरी मच और मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती थी इसलिए तुम्हें बताने की हिम्मत नहीं कर पाई कि मेरे साथ यह दिक्कत है. सॉरी रोहित...आई एम वैरी सॉरी, रियली सॉरी.” ,इतना कहते ही कविता सुबकने लगी. उसकी खुबसूरत आँखों से आंसू चेहरे पर एक लकीर में बहते हुए नीचे कोर तक आ गए. उसके आँखों में लगी काजल की पतली लाइन इन आंसुओं से धुल कर हलकी हो गयी थी.
“लेकिन तुमने झूठ क्यों बोला? तुम्हें मुझे सच बता देना चाहिए था. तुम झूठी हो और धोखेबाज हो. मैं तुमसे प्यार नहीं करता.” ,रोहित अपने रुख पर कायम रहा.
“रोहित, प्लीज ऐसा मत कहो, प्लीज भगवान के लिए मान जाओ. मुझे माफ़ कर दो.” ,कविता रोती जा रही थी.
“सन्नी आएगा तो कह देना कि मुझे कॉल कर लेगा और तुम मेरा नंबर डिलीट कर देना और मुझे कभी कॉल मत करना और साथ ही भूल जाना कि तुमने किसी रोहित से बात भी की थी.” ,रोहित वहाँ से गुस्से में तेज़ी से चला गया लेकिन कुछ दूर आने के बाद उसे ऐसा लगा कि जैसे उसके पाँव भारी हो गए हैं और आगे कि तरफ बढ़ ही नहीं रहे हैं लेकिन वह रुआंसे मन से ऑटो में बैठा और अपने लॉज के तरफ लौट गया. रास्ते में उसका मन अपनी क़िस्मत पर रोने को कर रहा था लेकिन वह ख़ुद को रोकता रहा लेकिन जैसे ही वह लॉज के कमरे में पहुंचा उसके सब्र का बांध टूट गया और वह फूट-फूट कर रोने लगा. उसे कभी ख़ुद पर, कभी कविता पर बहुत ज़ोर का गुस्सा आ रहा था. क़रीब आधे घंटे तक रोने के बाद उसने देखा तो सन्नी के कई मिस्ड कॉल थे. उसने सन्नी को फ़ोन किया और उसे शाम तक आने को बोल दिया क्योंकि अब वह पटना एक मिनट भी नहीं रुकना चाहता था क्योंकि उसे पटना शहर से नफरत होने लगी थी. शाम को सन्नी ने उसे बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी ज़िद पर अड़ा रहा. फिर वह दोनों रात की ट्रेन से गोरखपुर को लौट आये.

तीन महीने बाद

रोहित अपनी पुरानी ज़िन्दगी में फिर एक बार लौटने की कोशिश कर रहा था लेकिन हर जगह उसे एक कमी खलती, वह थी कविता की कमी. वह बिस्तर जिस पर वह लेटकर कविता से रात-रात भर बातें करता, वह प्रेशर कुकर जिसमें कविता ने फ़ोन पर उसे कुकर पनीर और मैगी बनाना सिखाया था. वह  दीवाल की झड़ती पपड़िया छिपाने के लिए लगाये गए अख़बार पर लिखा कोड भाषा में कविता और अपना नाम, सब चीज़ उसे कविता की याद दिलाते थे. रोहित का दिल चाहता कि वह कविता को अपना ले लेकिन उसका दिमाग़ कहता कि ख़ुद इतना अच्छा-भला है कहाँ एक ऐसी लड़की के पीछे पड़ा है जो शरीर से निसहाय है. कविता ने कई बार रोहित को कांटेक्ट करने की कोशिश की लेकिन रोहित हर बार उससे बात करने से कतराता रहा.
                    कॉलेज खुल चुका था और रोहित अगले साल यानि थर्ड इयर में आ चुका था. जब सभी दोस्त मिले तो सबने रोहित से कविता छोड़ने का कारण पूछा. रोहित ऐसे सवालों से बचता रहा लेकिन एक दिन उसकी क्लास उसके दोस्तों ने लगा ही दी. उसे सन्नी से मालूम चला कि वह जिस कविता को कमज़ोर और निसहाय समझता था, वह कविता घर पर एक बड़ी सी कोचिंग क्लास चलाती है और महीने के पचास-साथ हज़ार रूपये उसकी आमदनी हो जाती है वह किसी पर निर्भर नहीं बल्कि वह ख़ुद अपनी मम्मी और छोटे भाई-बहन का ख़र्चा चलाती है उसके पापा प्राइवेट नौकरी में थे, एक एक्सीडेंट में मारे गए तबसे यही सब कुछ देखती है. कविता का पहला प्यार रोहित ही है क्योंकि वह पहले प्यार में विश्वास नहीं करती थी इसलिए उसने लड़कों से दोस्ती करने के बारे में कभी नहीं सोचा था. और, उसे जब इसके भोलेपन के कारण इससे प्यार हो गया तो वह उसे कभी खोना नहीं चाहती थी इसलिए वह इसे कभी सच्चाई बताने की हिम्मत न कर पाई.
सन्नी- तुझे मालूम है तेरे बार-बार कहने के चलते मैंने सुप्रिया से कहा था वह कविता को मनाये कि वह तुझसे बात करे क्योंकि कविता किसी लड़के से बात करना नहीं चाहती थी लेकिन जब उसे पता चला कि तू अच्छा लड़का है तो वह तेरे से बात करने को तैयार हुई. और तूने ये किया उसके साथ? वाह भाई! क्या प्यार करता है तू और ऊपर से कहता है कि तुम गाँव वाले रिश्तो की अहमियत ज्यादा जानते हैं. ख़ूब अहमियत जानता है तू!
                        सब दोस्तों की झिड़क ने रोहित को एक बार सोचने पर मज़बूर कर दिया कि उसका दिमाग़ जो कह रहा था वह ग़लत था और उसका दिल हमेशा से सही था. अगले दिन रोहित कॉलेज नहीं आया. सभी दोस्त परेशान हो गए. सब रोहित के बारे में एक दुसरे से पूछने लगे और उसका फ़ोन भी लगाने लगे. रोहित का फ़ोन बज तो रहा था लेकिन कोई उसे उठा नहीं रहा था. सबको शक हुआ कि कहीं उनके कोसने के कारण रोहित ने कोई ग़लत क़दम तो नहीं उठा लिया. उन्होंने निश्चय किया कि कॉलेज की छुट्टी होने पर उसके कमरे पर जाकर पता करेंगे. दोपहर क़रीब दो बजे रोहित का बैक कॉल सन्नी के फ़ोन पर आया. पता चला, वह पटना में है और कविता के साथ फ़िल्म देखने गया था इसलिए फ़ोन साइलेंट था और कॉल रिसीव नहीं कर पाया. पिछले शाम को ही वह पटना के लिए निकल गया था, वह जल्दबाज़ी में किसी को ख़बर भी नहीं कर पाया था और अपनी ग़लती ख़ुद सुधारना चाहता था. यह सुन सभी दोस्त बड़े ख़ुश हुए.
                             इस कहानी को सात साल हो गए रोहित भैया और कविता भाभी अभी पटना में रहते हैं. रोहित भैया की वहीं बैंक में नौकरी हैं और कविता भाभी अपना कोचिंग एक बड़े पब्लिक स्कूल के रूप में बदल चुकी हैं. उनका एक बेटा अर्नव है और सुना है एक लड़की भी हुई है...
                                                              - © अरुण तिवारी ‘प्रतीक’