Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)

Arrun Pratik Tiwari (The Story-teller...)
Prem Kahaniya...

Friday 5 September 2014

लव इज़ ब्लाइंड



निर्मल तेजी से अपने अपार्टमेंट से निकलता हुआ गली के बाहर पहुंचा, वहां से ऑटो पकड़ा और पास के मेट्रो स्टेशन के लिए निकल पड़ा. आज थोड़ी से देर हो गयी थी क्योंकि रात को वह देर से सोया था इसलिए सुबह जल्दी आँख खुल नहीं पाई. घड़ी में 9.45 बज रहे थे और उसे ऑफिस में दस बजे तक पहुँच जाना होता है लेकिन अभी तो वह दिल्ली में था और नॉएडा जाते-जाते एक घंटा लग जायेगा. वह बीच में एक स्टेशन पर दूसरी मेट्रो लाइन बदलने के लिए उतरा तभी उसकी निगाह एक जाने पहचाने चेहरे पर पड़ी, वह उसका पुराना दोस्त सुमित था जो उसके अपने शहर पटना में रहता है और दोनों की कॉलेज लाइफ साथ ही गुज़री है. निर्मल अनजान बनता हुआ वहाँ से आगे बढ़ गया, लाइन में खड़ा होकर अपनी मेट्रो के आने का इंतज़ार करने लगा.
“निर्मल, अरे निर्मल, वाह क्या बात है? क्या हाल चाल है यार? कैसे हो और तुम तो हमको भूल ही गए.” ,सामने वाली लाइन में खड़ा एक आदमी निर्मल के तरफ़ हाथ फैलाकर अपने लाइन से निकल कर आता हुआ बोला.
“अरे सुमित, तू! ओहो भाई, कहाँ था यार? कितना अच्छा संयोग है कि तू मिल गया.” निर्मल अनजान बनता हुए ऐसे बोला जैसे उसने अभी कुछ देर पहले सुमित को देखा ही ना हो.
“हाँ यार, वैसे तुम यह बताओ कि अपने घर मना क्यों कर रखा है कि तुम्हारा नंबर किसी को ना दें और उससे पहले यह बताओ कि साला तुम दिल्ली चले आये और हमको बताया भी नहीं. यार तुमको याद नहीं, हमारा शुरू से मन था कि हम दिल्ली जायेंगे.”,सुमित निर्मल से शिकायत करता हुआ बोला.
“अरे सॉरी यार, वो घर पर थोड़ी सी परेशानियाँ थीं और पापाजी की तबियत भी थोड़ी सी बिगड़ गयी इसलिए बाहर नौकरी पर आना पड़ा और पढाई भी तो पूरी हो ही गयी थी बस फाइनल इयर का ही तो पेपर बचा था इसलिए सोचा कि कब तक माँ-बाप के सर पर बैठे रहेंगे इसलिए जल्दबाज़ी में चला आया और रही बात तुझे बताने कि तो तू उस समय ख़ुद परेशानी में थे.” ,निर्मल सफ़ाई देता हुआ बोला.
“खैर, यह बताओ, अंकल और आंटी कैसे हैं, सब लोग बढ़िया हैं ना? सब से मिले तो सात-आठ साल हो गए” ,निर्मल उसके घर के लोगों के बारे में पूछता हुआ बोला.
तभी मेट्रो आ गयी और दोनों एक ही बोगी में सवार हो गए, पता चला सुमित भी नॉएडा अपने मौसा जी के पास जायेगा.
“सब कोई बढ़िया है पापा ने तो खुद को अपने ऑफिस के कामों में बिजी कर लिया है, मम्मी अभी भी हमेशा बेचैन रहती हैं. तुम बताओ, तुम कैसे हो?” ,सुमित निर्मल का अपने घर का हाल-चाल सुनाता हुआ बोला.
“भला-चंगा हूँ और अभी ऑफिस जा रहा हूँ, शुरू में आया था तो काल सेण्टर में नौकरी की, धीरे-धीरे पहचान बढ़ी और अभी एक विदेशी कंपनी में मार्केटिंग हेड हूँ.”
“सैलरी-वैलरी क्या मिल रही है?”
“ठीक-ठाक है, घर का और यहाँ का ख़र्चा भी चल जाता है और कुछ बचा भी लेता हूँ”
“बचा कर रखो क्योंकि बीवी आएगी तो उसपर तो ख़र्चा करना ही पड़ेगा, रोज़-रोज़ नयी-नयी चीज़ तो लानी ही पड़ेगी”
“अरे नहीं यार, मैं तो जॉब करने वाली लड़की से शादी करूँगा जो अपना ख़र्चा ख़ुद देखेगी और मैं बस घर का ख़र्चा देखूंगा.”
“मतलब भाई साहब ने कोई लड़की भी देख ली है ऑफिस में...नाम क्या है उसका? कोई फोटो-वोटो हो मोबाइल में तो दिखाओ?”
“अरे नहीं यार देखी नहीं है लेकिन किसी ऐसे के ही इंतज़ार में हूँ.”
“चलो यार, अपना तो स्टॉप आ गया, यहीं मुझे उतरना है, फिर मुलाक़ात होगी” ,सुमित उतरने के लिए गेट के पास जाता हुआ बोला.
“अच्छा ठीक है वैसे मेरे यहाँ आओ, मैं साउथ दिल्ली में रहता हूँ, वहीं मुलाक़ात होगी.” ,निर्मल बोला.
“मैं भी धौलाकुआँ के पास ही ठहरा हूँ मामा जी के यहाँ, मिलते हैं कल रविवार है, तुम्हारी तो छुट्टी होगी?” ,सुमित उससे हाथ मिलाता हुआ बोला. तब तक मेट्रो रुकी और उसका दरवाज़ा खुल गया.
“ठीक है कल मिलते हैं बाय, टेक केयर.” ,निर्मल हाथ हिलाता हुआ बोला.
मेट्रो का दरवाज़ा बंद हो गया और गाड़ी गति पकड़ने लगी. तभी निर्मल को लगा कि सुमित उसके तरफ दौड़ रहा है और हाथों से रुकने का इशारा कर रहा है क्योंकि वह उसे शीशे से देख रहा था लेकिन मेट्रो कहाँ रुकने वाली थी. सुमित शायद इसलिए रोक रहा था क्योंकि उसने इतनी देर की बात में उससे उसका नंबर और एड्रेस लेना भूल गया था और जब यही उसके पास नहीं रहेंगे तो वह निर्मल को ढूंढेगा कैसे? निर्मल मन ही मन ख़ुश था कि सुमित ने उसका नंबर नहीं माँगा था वरना उसे देना पड़ता और वह सुमित से दोबारा नहीं मिलना चाहता था.
वह इसलिए नहीं मिलना चाहता था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि सूखे ज़ख्म फिर हरे हों, वह नहीं चाहता था कि पुरानी बातें उसकी जेहन में फिर ताज़ा हो और वह परेशान हो, वह नहीं चाहता था कि उसे फिर अपनी ग़लती का पछतावा हो और वह नहीं चाहता था कि फिर उसे याद करे जिसे वह भूल जाना चाहता था लेकिन आज सात-आठ सालों बाद भी उसका मुस्कुराता हुआ कलियों सा खिला चेहरा अब भी उसकी आँखों में तैरता रहता था.
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“बेटा, आप भी सुमित के क्लास में ही हो ना? और आपकी दोस्ती कैसे हुई? यह तो मस्ती के सिवा कुछ करता ही नहीं है और इसने आपके बारे में बताया है कि आपने फर्स्ट इयर में पूरे कॉलेज को टॉप किया है.” ,सुमित की मम्मी चाय और बिस्किट के ट्रे को निर्मल की ओर बढाती हुई बोलीं. सुमित आज निर्मल को अपनी मम्मी-पापा से मिलाने ले गया था क्योंकि वही पुरे कॉलेज में सुमित का एकलौता दोस्त था.
“अरे नहीं आंटी जी, सुमित भी पढता है और अपने सेक्शन में सबसे तेज़ स्टूडेंट है. मैं भी इसके ही क्लास में हूँ लेकिन इसने ऑनर्स नहीं लिया है और मैंने लिया है. मेरे कुछ विषय इसमें है सो हम कुछ क्लासेस साथ में करते हैं, इस तरह हमारी दोस्ती हो गयी.” ,निर्मल हँसता हुआ बोला.
“इसने गणित लिया है और मैंने गणित नहीं लिया है, मेरी बायोलॉजी है, हम फिजिक्स और केमिस्ट्री साथ में पढ़ते हैं और सुन लिया निर्मल ने क्या कहा, मैं पढता भी हूँ, समझी?” ,सुमित ने अपनी मम्मी से बोला.
“हां क्यों नहीं, पढ़ते हो. आसान सा विषय बायोलॉजी पढ़ते हो, इतना ही पढना है तो मैथ्स पढ़ के दिखाओ तो जाने?” ,पापा चुटकी लेते हुए बोले. इसपर सुमित चिढ गया और कमरे में अन्दर जाता हुआ बोला, “ठीक है, बहुत आसान है न बायोलॉजी, तभी तो मैथ्स पढ़ कर इंजीनियरिंग सब कोई कर लेता है जैसे आपने कर लिया और बायोलॉजी पढ़ कर डॉक्टर बनने में नानी याद आ जाती है ...”
“जैसे तुम्हें याद आ रही है?” एक कमरे अन्दर के कमरे से बाहर निकलकर आती सुमित की बहन शिल्पा हंसती हुई बोली.
सब हंसने लगे और सुमित और तेज़ी से कमरे में चला गया.
बेटा, तुम जाओ और उसे मनाओ. अभी वह अपने पापा और अपनी बहन पर गुस्सा है हम में से किसी से भी नहीं मानेगा.” ,मम्मी निर्मल को कमरे में जाने के लिए कहती हुईं बोलीं.
निर्मल सुमित के कमरे में चला गया. और कुछ देर के मान-मनौवल के सुमित को लेकर आया.
“बेटा, तुम मैथ्स में बहुत तेज़ हो इसमें हमें शक नहीं है क्योंकि सुमित ने तुम्हारे बारे में हमें बताया है. हम चाहते हैं कि तुम हमारी शिल्पा को होम-ट्यूशन देने आया करो और पैसे जो मांगोगे हम देने को तैयार हैं क्योंकि तुम काफ़ी होनहार हो और शिल्पा का दसवीं के बोर्ड की परीक्षा आने वाली है, और हमारे बेटा तो इसे पढ़ा नहीं सकता क्योंकि एक तो इन दोनों में पटती नहीं है और दूसरी हमारे सुमित बाबु तो मैथ्स के प्रोफेसर हैं जो दसवीं के लेवल को डिज़र्व नहीं सकते.” ,सुमित के पापा निर्मल से बोले और साथ में फिर सुमित पर कमेंट किया. इस बार सुमित बर्दाश्त कर गया.
“लेकिन अंकल, मैं...?”
“हाँ, बेटा तुम, पढ़ाओगे न शिल्पा को, पैसे की चिंता मत करो हम तुम्हें अच्छी पेमेंट कर देंगे” ,सुमित की मम्मी निवेदन करती हुई बोलीं.
“आंटी, पैसे की बात नहीं है लेकिन मैंने आज तक किसी को होम ट्यूशन नहीं पढ़ाया.”
“तो क्या हुआ? अब पढ़ा लो तुम्हारी मैथ्स के बेसिक का अभ्यास भी हो जायेगा और कुछ पॉकेट मनी भी निकल आयेगी. मैं तो अपने स्टूडेंट लाइफ में ख़ूब होम ट्यूशन देता था और मज़ा भी आता था क्योंकि रोज़ कुछ नया खाने-पीने को मिलता था स्टूडेंट्स के घरों पर.” ,सुमित के पापा हँसते हुए बोले.
“ओके अंकल! मैं आ जाऊंगा.”
“ओहो, खाने के नाम पर तैयार हो गया भुक्खड़ कहीं का?” ,सुमित ठिठोली करता हुआ बोला. मम्मी ने आँखें तरेरी तो वह शांत हो गया लेकिन निर्मल को मन ही मन बड़ा गुस्सा आया.
आज निर्मल ख़ुश भी था और आश्चर्यचकित भी कि उन्होंने इतनी आसानी से और पहली मुलाक़ात में ही मुझे पढ़ाने के लिए कह दिया. वैसे चलो अच्छा हुआ कुछ तो पॉकेट ख़र्चे का प्रबंध हुआ क्योंकि सारा ख़र्चा तो सुमित ही करता है अब मैं भी कुछ ख़र्च कर लिया करूंगा.
पूर्वनिश्चित समय के अनुसार निर्मल अगले दिन शाम को छह बजे सुमित के घर पहुँच गया. सुमित अपने मोहल्ले के दोस्तों के साथ खेलने बाहर गया हुआ था और घर पर सुमित कि मम्मी और शिल्पा थीं. निर्मल ने आंटी को नमस्ते कहा और बोला कि मैं ट्यूशन पढ़ाने आ गया हूँ. सुमित की मम्मी ने उसे शिल्पा के कमरे में भेज दिया और शिल्पा को आवाज़ लगा दी कि कॉपी-क़िताब खोल कर बैठ जाये निर्मल पढ़ाने आ गया है. जब निर्मल शिल्पा के कमरे में गया तो वो मम्मी के आज्ञा अनुसार पढ़ने के मुद्रा में बैठी हुई थी. निर्मल को शिल्पा का यह रूप अच्छा लगा क्योंकि वह इस समय शिक्षक था और शिक्षक विद्यार्थी को शांत और पढ़ने के लिए तैयार मुद्रा में देखे तो हमेशा ख़ुश होता है. आज इंट्रोडक्टरी क्लास थी सो दोनों ने एक दुसरे का परिचय किया और निर्मल पहला प्रभाव छोड़ने की दिशा में प्रयास करते हुए शिल्पा को डेढ़ घंटे का लेक्चर पिला गया. और लेक्चर दमदार होने के साथ ज्ञानपूर्ण और रोचक भी था. शिल्पा पर तो प्रभाव शुरू में ही जम गया और ज़्यादा देर तक पढ़ा देने और जाते वक़्त उसकी मम्मी को पहले ही दिन शिल्पा की कई सारी कमज़ोरियाँ और मजबूती बता देना पूर्ण प्रभावकारी साबित हुआ. उसी दिन से निर्मल के विद्वता और सूझ-बूझ की तारीफ होने लगी. केवल शिल्पा को पढ़ाने वाला निर्मल अब उस मोहल्ले के तीन और घरों में ट्यूशन पढ़ाने लगा जो उसके ग़रीब बाप के लिए एक राहत की बात थी. वो प्राइवेट फैक्ट्री में सुपरवाइजर थे और आठ से दस हज़ार महीने के कमा लेते थे.
                    इधर शिल्पा अब पढ़ने में मन लगाने लगी थी हालांकि वह होशियार पहले से ही थी. उसके इस परिवर्तन के कारण अब निर्मल सुमित के घर में घर कर गया था. सब उसे बड़ा प्यार और इज्ज़त देते थे. बोर्ड की परीक्षा हुई और फिर छुट्टियाँ शुरू हो गयीं लेकिन निर्मल को बोला गया कि वह अपनी ट्यूशन चालू रखे. शिल्पा भी राज़ी हो गयी जो कभी छुट्टियों में कॉपी-क़िताबों की आलमारी में ताला लगा देती थी. अलबत्ता शिल्पा का राज़ी होना अनायास ही नहीं था, यह उसके किशोर मन में हो रहे बदलाव का नतीज़ा था जो उसे अब नव-यौवन के तरफ ले जा रहा था. कुछ ही महीनों में पढ़ते-पढ़ते उसे कब निर्मल के तरफ खिंचाव महसूस होने लगा था, वह भी नहीं जानती थी. यद्यपि इस उम्र के इस आकर्षण को किशोर प्यार समझते हैं लेकिन मनोवैज्ञानिक इसे बस हार्मोन-परिवर्तन ही कहते हैं और जिसे चलताऊ भाषा में पप्पी लव कहते हैं. शिल्पा भी इसी दौर में थी. जबकि, अपने युवा-अवस्था में आ गया निर्मल शिल्पा के मन की बातों से अनजान था लेकिन उसे एकदिन सच्चाई से साबका पड़ ही गया. हुआ यों कि निर्मल आज थोड़ा सा सज-धज के आया था क्योंकि उसे शाम को सुमित के साथ एक दोस्त की बहन की शादी में जाना था. शिल्पा तो आकर्षण में पड़ने के बाद रोज़ ही सजती-संवरती थी. शिल्पा के कमरे में घुसते ही आज निर्मल को कुछ बदला-बदला सा लगा, सब चीज़ आज बड़ी ही खूबसूरती से रखी गयी थी और बिस्तर पर धुली रंगीन चादर थी और कुर्सी-टेबल अपने जगह पर और टेबल पर की क़िताबें सजी हुई थीं. शिल्पा तो ख़ुद को संवारती ही थी, आज कुछ ज़्यादा ही सजी हुई थी. शायद आज वह अपने आकर्षण को प्यार का शक्ल दे देना चाहती थी. निर्मल इन सब परिवर्तनों का मतलब नहीं समझ पाया था. वह उसे पढ़ाने बैठा. आज कल वह उसे गणित के एडवांस प्रश्नों का हल सिखा रहा था, और अंग्रेज़ी ग्रामर भी पढ़ाता था. इधर शिल्पा का आज कुछ कर गुज़रने का निर्णय और उधर निर्मल का सजा-संवरा दिखना, उसे अपने इज़हार-ए-आशिक़ी के लिए मचला गया.
                                            निर्मल उसे गणित के अलज़ेब्रा की कुछ समस्याएं हल करने का तरीक़ा बताने लगा. आज शिल्पा कॉपी और क़िताबों में कम और निर्मल के चेहरे को ज़्यादा देख रही थी. निर्मल बार-बार उसे क़िताबों पर देखने को कह रहा था. उसे पढ़ते हुए आधे घंटे हुए ही थे कि शिल्पा ने हिम्मत कर ही डाली. उसने निर्मल का हाथ पकड़ लिया. शिल्पा नए ज़माने की लड़की थी जो टीवी और सिनेमा देख कर बड़ी हुई थी जिसके कारण उसकी सोच आज़ाद थी. उसने उसे बीच में ही धीरे से कहा, “निर्मल!...सॉरी मैं अभी आपको निर्मल सर नहीं बोल सकती. मुझे आपसे कुछ कहना है. और आपको जो जवाब देना होगा वो बाद में दे दीजियेगा.” शिल्पा एक धड़क में बोलती गयी. फिर एक गहरी सांस लेते हुए उसने निर्मल के हाथों को कस कर दबाया और बोली ,”मैं आपसे प्यार करती हूँ और तबसे करती हूँ जबसे आपको देखा है. आप बहुत ही प्यारे हैं और सबसे पहले लड़के हैं जो मुझे इतना अच्छा लगा है.”
निर्मल सुनकर सन्न रह गया, उसने सपने में भी ऐसा कुछ नहीं सोचा था. हाँ, यह ज़रूर था कि शिल्पा भी उसे अच्छी लगती थी लेकिन अपने से कम उम्र की और दोस्त की बहन होने के कारण उसने उसके बारे में कुछ ऐसा नहीं सोचा था. लेकिन शिल्पा के इज़हार ने उसको अन्दर तक हिला कर रख दिया. उसका मन हुआ कि वह शिल्पा को हाँ कर दे लेकिन उसने शिल्पा को अपने दिल की बातें न बताते हुए उसे कुछ यूँ टाल गया, “देखो शिल्पा, यह ग़लत है. मैं तुम्हारे भाई का दोस्त हूँ और सीनियर हूँ. तुम्हारे मम्मी-पापा ने बड़े विश्वास से मुझसे तुम्हें पढ़ाने भेजा है और अगर मैं ऐसा करूँगा तो यह बहुत ही बुरा होगा.”
शिल्पा बात की गंभीरता से अनजान बनते हुए बोली, “चिल यार, तुम इतने दब्बू हैं मैंने सोचा नहीं था. आप जानते हैं न कि एवरीथिंग इज़ फ़ेयर इन लव एंड वॉर.” ,शिल्पा की बातों में उम्र का कोई लिहाज़ नहीं था.
“बट, तुम प्यार में हो, मैं नहीं. इसीलिए मैं तुम्हारा कोई जवाब नहीं दे सकता. सो भूल जाओ ये सब. ”
“अरे! तो मैं कहाँ कह रही हूँ कि तुम अभी जवाब दो, जब तुम्हें मन हो तब दे देना बट ऐसे मना ना करो कि नहीं करोगे.”
निर्मल ने इसके आगे कुछ नहीं कहा और वह चुपचाप शिल्पा की कॉपी पर आज का होमवर्क देने लगा. क्योंकि आज उसे एक घंटे भी पढ़ाने का मन नहीं था.
                                   रोज़ कि तरह वह शिल्पा को पढ़ाने गया लेकिन आज शिल्पा का रूप बदला नहीं था वह वैसे ही सज संवर के बैठी थी. इस तरह यह हर दिन की आदत बन गयी. दूसरी ओर निर्मल के भी रंग रूप में निखार आने लगा था. इस बात को क़रीब एक महीने ही बीते थे कि शिल्पा का सब्र जवाब दे गया. आज वह आर या पार का रास्ता चुनना चाहती थी या तो निर्मल उसे साफ़ मना कर दे या हाँ कर दे. परन्तु उसके मन में इस बात का डर भी था कि अगर निर्मल ने मना कर दिया तो वह क्या करेगी. हमेशा कि तरह निर्मल पढ़ाने आया. शिल्पा आज फ़िल्मी अंदाज़ में कुछ करने का मन बना चुकी थी. निर्मल के कमरे के अन्दर आते ही उसने दरवाज़ा बंद किया और उसे ज़ोर से बाहों में जकड़ लिया. अभी वह कुछ कहता इससे पहले उसने उसके होठों पर एक चुम्बन अंकित कर दिया. चुम्बन की समय सीमा लम्बी थी सो उसका प्रभाव भी पड़ा. निर्मल इस अचानक हुए हमले के बाद हक्का-बक्का था. और यह आक्रमण उसे चारों खाने चित करने के लिए काफ़ी था.
“अब बताओ क्या चाहिए तुम्हें? मैं बच्ची नहीं हूँ. अगर किस दे सकती हूँ तो और कुछ भी आता है मुझे. लेकिन मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए निर्मल. रिप्लाई मी.” ,शिल्पा की आवाज़ में उग्रता थी. वह आशिक़ जैसी बात कर रही थी. इस सब का कारण अभी उसका बाली उम्र में होना था.
“शिल्पा, तुम पागल हो. मैं नहीं कर सकता तुमसे प्यार. और मैंने तुम्हें जवाब देने के बारे में सोचा नहीं है.” ,निमल ख़ुद को संभालता हुआ बोला.
“यानि कि तुम किसी और से प्यार करते हो? कोई गर्ल फ्रेंड है तुम्हारी??”
“नहीं मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है पर मैं तुम्हें कैसे हाँ कर दूं.”
“तुम्हें करना पड़ेगा, तुम हाँ बोलो या कल से मुझे पढ़ाने आना छोड़ दोगे. मैं मम्मी से बात कर लुंगी.”
“ठीक है, अभी पढाई कर लें. प्यार की बातें बाद में होंगी.”
“नहीं अभी मुझे पढ़ने का मन नहीं है. तुम जाओ. मेरी तबियत ख़राब है. लेकिन कल या तो हाँ, नहीं तो मत आना.” ,शिल्पा निर्मल को लगभग कमरे से बाहर करती हुई बोली. अभी भी वह गुस्से से लाल थी क्योंकि उसे अफ़सोस इस बात का कम हो रहा था कि निर्मल ने उसे मना कर दिया था बल्कि इसका ज़्यादा था कि अगर वह एक बार अपने स्कूल में किसी के तरफ देखती तो उसकी कई कहानियां इस एक महीने में बन गयी होती लेकिन उसे निर्मल पसंद आया तो उसने उसे भाव ही नहीं दिया.
                                            अगले दिन शाम को शिल्पा की निगाह दरवाज़े पर ही थी. उसे डर था कि अगर निर्मल नहीं आया तो क्या होगा. और पछतावा भी था अपने कल के बुरे बर्ताव का. लेकिन कुछ देर बाद ही उसे ख़ुशी हुई कि कल का उसका फ़िल्मी उपाय काम कर गया था. निर्मल आज उसके लिए चॉकलेट ले आया था और उसने कल के लिए शिल्पा को माफ़ भी कर दिया था. यह मन ही मन शिल्पा के लिए निर्मल का हाँ ही था. फिर यह प्यार की गाड़ी कब स्पीड पकड़ती गयी, ना इन दोनों को मालूम हुआ और ना ही सुमित और उसके मम्मी-पापा को इन दोनों के लफड़े का शक हुआ.
                             अब शिल्पा दसवीं अच्छे नंबरों से पास करके ग्यारहवीं में आ गयी थी. निर्मल अब भी पढ़ाने आता था. क्योंकि उसके बदौलत ही उसने परीक्षा में अच्छे नंबर लाये थे हालांकि वह एक और काम में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही थी वो था प्यार. एक बहुत ही दीगर बात है जो हमेशा मानी जाती है कि जब कोई मनचला आज़ादी पाता है तो वह और भी ज़्यादा मनमौज़ियाँ करता है और जब दो मनचले मिल जाएँ तो सोने पर सुहागा हो जाता है. शिल्पा और निर्मल के साथ यही हुआ. कभी-कभी जब घर पर सुमित नहीं होता और शिल्पा की मम्मी इन दोनों पर घर को छोड़ बाहर चली जातीं तो इनका प्रेम-हंस का जोड़ा मस्तियों के सागर में ख़ूब अठखेलियाँ करता था, जो देखते-देखते इस हद तक बढ़ गया कि दोनों कब मर्यादा की सीमा लाँघ गए मालूम न चला. और जब एक बार चस्का लग जाये तो वह आसानी से नहीं छूटता. जो इन दोनों के साथ भी हुआ. इनके मानसिक सम्बन्ध अब शारीरिक अवस्था में आ गये थे.
                सब ठीक-ठाक ही चल रहा था कि अचानक ग्रह-नक्षत्रों ने अपना चाल बदलना शुरू कर दिया. निर्मल और सुमित के फाइनल इयर के परीक्षा में चार-पाँच महीने ही बाक़ी थे. इसलिए अब सुमित ने निर्मल से शिल्पा को दो घंटे ना पढ़ा कर एक घंटे ही पढ़ाने को कहा क्योंकि उसे ख़ुद के लिए पढ़ना चाहिए था. वैसे निर्मल को यह मंज़ूर नहीं था कि वो शिल्पा का समय काट कर अपनी पढाई करे. पहले तो उसने यह कह कर सुमित को मना कर दिया कि वह मैनेज कर लेगा लेकिन सुमित ज़िद करने लगा. बहरहाल, उसके ज़िद का कारण भी था क्योंकि उसे शक हो गया था कि इन दोनों के बीच कुछ है लेकिन बिना किसी सुबूत के वह अपनी दोस्ती ख़राब नहीं करना चाहता था. जब सुमित के मम्मी ने निर्मल को एक घंटे पढ़ाने के लिए कहा तो उसे मन मसोस कर वही करना पड़ा.
                                       निर्मल एक घंटे पढ़ाता था और इसका दुःख दोनों को था. एक दिन निर्मल जैसे ही कमरे में गया शिल्पा ने दरवाज़ा बंद कर के उसे ज़ोर से जकड़ लिया और सिसक-सिसक कर रोने लगी. निर्मल जब तक कुछ समझता शिल्पा के रोने की आवाज़ थोड़ी और तेज़ होने लगी. निर्मल उसे चुप कराता हुआ उससे रोने का कारण पूछने लगा. लगभग पांच मिनट के मशक्कत के बाद शिल्पा चुप हुई लेकिन उसके बाद जो उसने बताया वह अब निर्मल के पसीने छुड़ाने के लिए काफ़ी था. निर्मल और शिल्पा के प्यार की सीमा पार करने का नतीज़ा था आज उनके बीच कोई तीसरा भी आने को तैयार होने लगा था.
“ऐसा कैसे हो सकता है यार? हमने तो कभी कोई चूक की ही नहीं है. हमें चल कर एक बार डॉक्टर को दिखाना चाहिए. क़िताब में लिखी और तुम्हारी सहेली की कही बात पर क्या भरोसा है?”
“यार तीन महीने हो गए मेरे पीरियड्स को रुके हुए, मैंने अपने एक टीचर से भी पूछा था किसी और का नाम लेकर, वो भी यही कह रही थीं कि डॉक्टर को दिखा लेना ठीक रहेगा वरना दिक्कत हो जाएगी.”,शिल्पा की आवाज़ में चिंता थी.
कुछ देर सोचने के बाद उन दोनों से निर्णय किया कि वो डॉक्टर के पास जायेंगे. शिल्पा स्कूल से बंक कर के डॉक्टर के पास जाएगी और निर्मल उसका वहां इंतज़ार करेगा. वो शहर के एक प्राइवेट क्लिनिक में गए जो ऐसे केसों के लिए मशहूर था. वहां उन्हें जिस चीज़ का शक था वही हुआ. शिल्पा तीन महीने से प्रेग्नेंट थी. दोनों को काटो तो ख़ून नहीं. वहां यह निश्चय हुआ कि वह तीन-चार दिनों बाद दस हज़ार रूपये का प्रबंध कर के आयें, दो तीन घंटे में एबॉर्शन करके छुट्टी दे दी जाएगी. उन्हें थोड़ी सी राहत मिली थी लेकिन अब दस हज़ार रूपये का कहाँ जुगाड़ हो, वो बड़े परेशान थे.
                                               जैसे तैसे जुगाड़ कर के निर्मल ने पैसे इकट्ठे कर लिए. उन्होंने सोमवार के दिन एबॉर्शन कराने को सोचा. अब निर्मल और शिल्पा को कुछ सुकून मिला था. उन्होंने अब ये सोच लिया था कि ऐसी ग़लती वो दुबारा कभी नहीं करेंगे. रविवार के दिन शिल्पा अपनी सहेली निधि के यहाँ अगले दिन के लिए प्रोग्राम बनाने के लिए गयी थी. उसकी मम्मी घर की सफ़ाई करते हुए शिल्पा का कमरा भी साफ करने लगी. कॉपी-क़िताब इधर-उधर बिखरे पड़े थे सो उन्होंने सहेज कर टेबल पर रखना शुरू कर दिया. यह शायद शिल्पा और निर्मल की फूटी क़िस्मत थी जो उसने अपनी कॉपी में ही डॉक्टर की रिपोर्ट रखी थी वो उसकी मम्मी को दिख गयी. उन्होंने जब रिपोर्ट देखी तो उनके पाँव तले ज़मीन खिसक गयी. वो गुस्से से तिलमिला गयीं और उन्होंने उसके पापा को भी बता दिया क्योंकि वो घर पर ही मौजूद थे. अब शिल्पा के लौटने का इंतज़ार होने लगा. इधर शिल्पा इन सब से बेखबर कल के लिए बहाना ढूंढने गयी थी. जब वह लौटी उसपर मम्मी-पापा दोनों के गुस्से का मानों पहाड़ टूट गया. दोनों उसे काटने दौड़े, गनीमत थी सुमित क्रिकेट खेलने गया था. उनका सबसे पहला सवाल था कि ये तूने क्या किया? किसका पाप तूने अपने पेट में रखा है? तूने कुल और परिवार की मर्यादा तोड़ने में डर नहीं लगा? सवालों से घिरी शिल्पा चुप थी. उसे सूझ नहीं रहा था कि वह क्या जवाब दे. उसने धीरे से कहा, “ग़लती हो गयी, मुझे माफ़ कर दो, फिर कभी नहीं होगा.”
उसके पापा गुस्से से उसे एक थप्पड़ लगाते हुए बोले, “ग़लती हो गयी. तू बच्ची है? इसीलिए तुझे महंगे स्कूल में पढ़ा रहे हैं, इसीलिए तुझे कोचिंग लगवाई है? आज तू मेरे हाथों से नहीं बचेगी.”
उसकी मम्मी बीच में आती हुई शिल्पा को ले जाकर उसके कमरे में बंद कर दिया और साथ में यह नसीहत दे दी कि उस लड़के का नाम बता दे जिसने तेरे साथ यह किया है. शिल्पा सब कुछ सह सकती थी लेकिन वह निर्मल का नाम नहीं बता सकती थी. सुमित आया लेकिन उसे यह सब बातें पता नहीं चलीं. शिल्पा को पूरे दिन और रात इस बात के लिए टॉर्चर किया गया कि वह लड़के का नाम बता दे उसे माफ़ कर दिया जायेगा और वो ख़ुद डॉक्टर के पास ले जाकर उसका एबॉर्शन करा देंगे लेकिन शिल्पा राज़ी नहीं हुई.
              अगला दिन भी बीत गया. उसकी सहेली निधि दिन भर ढूंढ कर शाम को शिल्पा के घर उसके आज ना आने और डॉक्टर के पास न जाने का कारण पूछने आई. उसने जब सुना कि घर पर सब कोई जान गया है तो वह उलटे पांव लौटने को हुई तब तक शिल्पा की मम्मी ने उसे पकड़ लिया. उसकी मम्मी ने उससे भी उस लड़के के बारे में पूछा लेकिन वह चालाकी दिखाते हुए बोली, “आंटी, मैं तो ऐसा कुछ जानती ही नहीं, शिल्पा ने मुझे ऐसा कुछ नहीं बताया और हमारे स्कूल में तो बहुत सारे लड़के हैं मैं किसको कह सकती हूँ?”
शिल्पा की मम्मी ने उससे कहा, “बेटा, एक काम कर दो, तुम्हारा बड़ा एहसान होगा, तुम शिल्पा से एक बार चिरौरी कर के उस लड़के के बारे में पूछ लो हम उसको माफ़ कर देंगे और उसे कभी नहीं डांटेंगे, प्लीज़.”
निधि तो सब कुछ जानती थी लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं बताना चाहती थी क्योंकि शिल्पा ने उसे मना किया था. निर्मल को सुमित ने तीन-चार दिन शिल्पा की तबीयत ख़राब का बहाना बना कर नहीं आने को बोल दिया था सो वह इन बातों से अनजान था. निधि जब शिल्पा से मिलने गयी तो वह रोने लगी. शिल्पा परेशान थी कि उसके पास कोई चारा नहीं बचा था सिवाय निर्मल का नाम बताने के. और वह अपने स्कूल के किसी लड़के के इतना करीब भी नहीं थी जो उसका नाम बता दे. साथ ही किसी निर्दोष को फंसाना नहीं चाहती थी. शिल्पा और निधि कुछ उपाय सोच ही रहे थे कि उसके पापा ऑफिस से लौट आये. वो आते ही शिल्पा के कमरे में गए. उन्होंने निधि से गुस्से में बोला, “तुम इसकी सहेली हो न, तुम सब जानती हो इसकी बातें. लेकिन कोई बात नहीं, समझा दो इसे कल तक इसने अगर उसका नाम नहीं बताया न, तो फिर मैं दूसरी दवाई भी जानता हूँ. कैसे भी कर के उसका नाम तो उगलवा ही लूँगा फिर उस लड़के का क्या हश्र होगा कोई नहीं सोच सकता. अभी बता देगी तो वह लड़का भी अपने बुरे नतीज़े से बच जायेगा और ये भी. समझा दो इसे.” वो इतना कहकर चले गए. लेकिन यह शिल्पा और उसके सहेली को डराने के लिए काफ़ी था. उसकी सहेली को ऐसा लगा कि कहीं अंकल मेरे पापा को ना कह दें कि मैं इसमें शिल्पा की कोई मदद कर रही हूँ. अब वह भी उसे बताने के लिए दबाव देने लगी. शिल्पा ने कुछ देर सोचने के बाद अगले दिन सब कुछ बताने के लिए हामी भर दी. उसकी सहेली को लगा कि कल शिल्पा बता देगी तो उसकी टेंशन दूर हो जाएगी सो उसने आकर उसकी मम्मी को बता दिया कि वह कल उस लड़के का नाम-पता बता देगी.
           अगले दिन रोज़ की तरह सुबह शिल्पा के पापा अपने बरामदे में टहल रहे थे और साथ ही वह योजना बना रहे थे कि उस लड़के को कैसे सबक सिखाया जाये कि बदला भी निकल जाये और किसी को कानों-कान ख़बर ना हो. क़रीब आठ बज गए थे लेकिन शिल्पा की तरफ से कोई सुगबुगाहट नहीं थी. इसलिए पापा ने उसकी मम्मी को आवाज़ लगाई कि वह शिल्पा से उस लड़के के बारे में पूछे, उनसे पता चला कि अब तक शिल्पा सोयी हुई है और जब सुबह वह उसके कमरे में सफ़ाई करने गई थी उसने दरवाज़ा नहीं खोला था और कोई जवाब नहीं दिया था. उसके पापा ने गुस्साते हुए शिल्पा के कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी. उन्होंने काफ़ी आवाज़ लगाई लेकिन जब शिल्पा ने दरवाज़ा नहीं खोला तो उन्होंने तोड़ने की कोशिश की. काफ़ी मशक्कत के बाद कुण्डी को उखाड़ने के बाद किवाड़ खुला लेकिन एक बार भी शिल्पा ने उठकर दरवाज़ा नहीं खोला...और खोलती भी कैसे? वह प्यार में ख़ुद को लुटा चुकी थी इसलिए अब उसके पास और होश नहीं बचा था.


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निर्मल इधर बेचैनी में शिल्पा का लिखा ख़त खोल रहा था जो निधि ने अभी कुछ देर पहले दिया था. शिल्पा से निर्मल को बात किये हुए कई दिन हो गये थे. इसलिए वह ख़ुश भी था चलो ख़त के माध्यम से तो उससे बात करने का मौक़ा मिला था. उसने जैसे ही चिट्ठी पढ़नी शुरू की उसे ऐसा लगा कि उसका सब कुछ लुट गया हो और कोई भयंकर सज़ा मिली हो शायद सज़ा-ये-मौत. वह ख़ामोश था आँखें आंसुओं से डबडबा गयी थीं और दिमाग़ में शिल्पा के लिखे सारे शब्द घूम रहे थे.


Dear Nirmal, I love u so much.
                           मैं बहुत परेशान हूँ. मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ? पापा-मम्मी और भैया सबको मेरे pregnant होने की बात मालूम चल गयी है. पापा-मम्मी ने तो कसम खा ली है कि वो उस लड़के को जरूर सबक सिखायेंगे जिसने मेरे साथ ऐसा किया है. But I can’t see कि मेरे सामने तुम्हें बदनाम किया जाये. मेरे पापा का गुस्सा बहुत dangerous है. वो तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते हैं.
लेकिन वो तब करेंगे जब मैं उन्हें तुम्हारा नाम बताउंगी. मैंने सुना है अगर आप किसी को true love करते हो तो उसकी खुशी के लिए आपको कुछ भी करने के लिए तैयार रहना चाहिए. And I love you beyond every boundary. और तुम खुश तभी रहोगे जब मैं तुम्हारा नाम नहीं बताउंगी. इसके लिए मेरे पास एक solution है suicide. I am extremely sorry कि मैं तुम्हें बीच में ही छोड़ के जा रही हूँ, लेकिन इसलिए क्योंकि तुम ख़ुश रहो. साथ ही तुम्हें मुझे promise करना होगा कि कभी तुम खुद को guilty नहीं मानोगे. And जब यह letter पढ़ रहे होगे उसके बाद कभी भी किसी को सच्चाई बताने की कोशिश नहीं करोगे वरना मेरा sacrifice बेकार जाएगा.
मैं तुम्हारे दिल में हमेशा रहूंगी. I will be forever for you my jaanu Nirmal. I LOVE U.
GOOD BYE,                                                                                          
                                                                              Ur sweetheart,  Shilpa.


                                        शिल्पा सही में आज भी निर्मल की है और उसके दिल में ही बसी है. सही कहते हैं प्यार अँधा होता है...’लव इज़ ब्लाइंड.’


                                   -© अरुण तिवारी ‘प्रतीक’



                                                                                              

3 comments:

  1. Name of lead buddy "Niraml" is really so unique and it makes difrnt to othr storis , n u expressed well shilpa's dedication (Y) superb

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